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मुँहवा फूलवले बाड़ू काहें मोर धनिया |   
एह साल गढ़ईबो गोरी तोहके झूलनिया | 
देख गोरी खेतवा में रहर फूलायल ,
मुँगवा के डलिया में मस्ती आयल | 
तिलिया के फूलवा बोलावे बलजोरी ,
उरद के पतई  में रौनक आईल |
रहरी के फूल बनल तोहरो नथुनिया |
एह साल गढ़ईबो गोरी तोहके झूलनिया | 
उखिया के पोरवा में चढ़ल जवानी ,
नवचा पनका झूमी करे  मनमानी |
सुबहे से काटे खातिर ललचेला मनवा ,
तोहरा के देखी के बढ़ेला परेशानी |
गुर बेची सोनरा से करबो मथनिया |  
एह साल गढ़ईबो गोरी तोहके झूलनिया | 
देख धनी खेतवा में मटर फूलायल ,
गेहूवा के डरिया में मस्ती छायल |
कहीं कहीं जवुवा तिरछी नजर चलावे ,
बथुवा लहरी के बहुत पछतायल |  
सरसों के फूल गोरी तोहरो ओढनिया | 
एह साल गढ़ईबो गोरी तोहके झूलनिया | 
देख गोरी खेतवा में तिसिया फूलायल |
लेतरी के डरिया में रंगत आयल |
चनवा फूलाई दुरे से मन मोहे ,
देख केतना  खेतवा में रौनक आयल |
वर्मा खुश होख अब पास आव रनिया   | 
एह साल गढ़ईबो गोरी तोहके झूलनिया | 
श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Replies to This Discussion

आदरणीय श्याम नारायण जी, राउर इ गीत सीधे खेत खरिहान, गाँव, सीवान में पहुंचा दिहलस, नीमन प्रस्तुति बा, कही कही प्रवाह बाधित होत बा, बधाई एह रचना प.

आदरणीय श्याम नारायण जी, बहुत सी सुन्दर लोक गीत, 

मुँहवा फूलवले बाड़ू काहें मोर धनिया |   
एह साल गढ़ईबो गोरी तोहके झूलनिया | ....वाह हार्दिक बधाई आपको !

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