For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पुस्तक समीक्षा : “दर्पण .... एक उड़ान कविता की”

संवेदनहीनता की पराकाष्ठा दिखाता काव्य संग्रह

वर्तमान अंकुर के संयोजन में, एकल पुस्तक संग्रह की श्रृंखला के अंतर्गत प्रकाशित काव्यसंग्रह, “दर्पण... एक उड़ान कविता की” रत्ना पांडे जी का एक वैचारिक काव्य संग्रह है। वड़ोदरा गुजरात की रहने वाली रत्ना पांडे की काव्य लेखन में बेहद रूचि है। इस काव्य संग्रह से पूर्व, वह कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं एवं वेब मैगजीन में प्रकाशित हो चुकी है।

   “दर्पण... एक उड़ान कविता की” एक ऐसा काव्य संग्रह है, जो अपने शीर्षक के ही अनुसार समाज एवं समाज के लोगों को आईना दिखाता है। उनके प्रत्येक कविता में व्यक्ति अपने आसपास की तथा अपने अंतरात्मा की बुराइयों को अपने सामने देखता है।

‘अधूरी ख्वाहिश’ कविता में लेखिका अपने समाज में व्याप्त बुराइयों को बदलने के लिए शस्त्र नहीं बल्कि कलम को हथियार बनाना चाहती हैं।

शस्त्र से नहीं समस्याओं को अभिव्यक्ति से हल करना होगा

यही उद्देश्य है मेरा ...यही संकल्प है मेरा...”

‘बेटी को बेटी ही रहने दो’, ‘छोड़ दूंगी वह गली’, ‘अंतिम विदाई’ इत्यादि कविताओं में लेखिका ने स्त्री की संवेदनाओं को बड़े ही मार्मिकता से व्यक्त किया है। एक बेटी, एक युवती, तथा एक वृद्धा की परिस्थितियों का विवरण दिल को छू जाता है। आम आदमी को हताशा के अंधेरे से निकालती उनकी कविता ‘उम्मीद का दामन थाम ले तू’ अवश्य ही पाठकों के मन का द्वार खटखटाएगी।

निराशा मन की कौंध रही थी,

एक आशा का दीप दिख जाए ,

नजरें उसे ही खोज रही थी”।

प्रकृति की सुंदरता का बखान ‘गांव हमारे वापस दो’ पढ़कर हर वह शहरी जो गांव से संबंध रखता है एक बार उसकी आंखें जरूर भर आएंगी । उनकी कई कविताएं जहां धर्म, सामाजिक बुराइयां, परंपराओं इत्यादि की सच्चाइयों से अवगत कराती है वहीं कई कविताएं फौजी, किसान, एन आर आई, बाल श्रमिक, राजनीतिज्ञ, पर्यावरण इत्यादि पर भी प्रकाश डालती है।  ‘चांद और सूरज का दर्द’ भी उनकी लेखनी से निकलकर मानवीय रूप को साकार कर रहा है।

डॉक्टर एवं मीडिया की लापरवाही तथा संवेदनहीनता की पराकाष्ठा दिखती है, उनकी एक कविता ‘मर गया मरीज डॉक्टर बिल फाड़ते रहे’ में। आज अस्पतालों में सचमुच ऐसी ही परिस्थिति है। ऐसा लगता है जैसे मानवता आज लुप्त हो चुकी है। इंसानी जिंदगी की कीमत कागज के चंद टुकड़ों में सिमट कर रह गई हैं।

इसी प्रवाह में कविताएं आगे बढ़ती हुई ‘नाले की पुकार’ पर थोड़ा सा थमती हैं, तो कहीं किसी अदालत में ‘फंस गई गीता सच-झूठ के माया जाल में’ जाकर उसकी पैरोकार भी करती है। कहीं ‘सूर्य का धैर्य’ असहनीय सा प्रतीत होता है तो कहीं ‘कविता ....’ स्वयं को विचारों, भावनाओं एवं हादसों के रूप में किताब के पन्नों में सजी-संवरी दिख जाती है।

कविताओं की यह श्रृंखला समाप्त भी होती है तो ‘इंतजार..’ पर जहां एक पिता अपने बेटों की राह देखता है, तो वहीं पाठक वर्ग के सामने एक ऐसा दर्पण आ जाता है जहां हर व्यक्ति अपना भविष्य ...अपना सांध्यकाल देखता है। कविताएं कवि, के मन का उद्गार होती हैं। यहां हर कविता में रत्ना पांडे जी का अनुभव एवं उनकी संवेदनाएं स्पष्ट दृष्टिगोचर होती हैं। वर्तमान अंकुर एवं रत्ना पांडे जी को इस काव्य संग्रह के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

आरती प्रियदर्शिनी, गोरखपुर

 

 

पुस्तक का नाम

दर्पण.... एक उड़ान कविता की

लेखिका

रत्ना पांडे

रचना-पद्धति

काव्य

प्रकाशक

वर्तमान अंकुर

प्रकाशन माह / वर्ष

सितम्बर, 2018

मूल्य

रूपये 295 /-


Views: 1141

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
2 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service