For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"लघुकथा कौमुदी"  -  यथार्थ और कल्पना के बीच की ज़मीन पर पनपती लघुकथाएँ. . .

"लघुकथा कौमुदी"  -  यथार्थ और कल्पना के बीच की ज़मीन पर पनपती लघुकथाएँ. . .
वर्तमान में लघुकथा, साहित्य की एक ऐसी विधा बन चुकी है जिसकी कथ्य शैली का विस्तार निरंतर बढ़ रहा है। बहुत से रचनाकार अपनी अभिव्यक्ति को, पहले से तय मानकों से हटकर  लिखने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में भले ही वे किसी विशेष शैली को लेकर नहीं चल पाते लेकिन अपनी बात को प्रभावी ढंग से रखने में सफल अवश्य होते हैं, ये एक अच्छी बात है। ऐसे ही रचनाकारों में एक नाम है; काव्य विधा में स्थापित शकुंतला अग्रवाल 'शकुन' का, जिनका लघुकथा सँग्रह हाल ही में मुझे पढ़ने के लिए मिला।
'सहित्यागार' द्वारा प्रकाशित एवं बहुरंगी हार्डबाउंड कवर से सुसज्जित, 'लघुकथा कौमुदी'  नाम से आकर्षित करते इस सँग्रह में कुल 91 लघुकथाओं को शामिल किया गया है। शामिल लघुकथाओं के विषय सुंदर और सार्थक है। अधिकांश रचनाएँ समाज की विभिन्न विसंगतियों को उभारने का न केवल प्रयास करती हैं बल्कि यथा संभव उनका विश्लेषण भी करती नजर आती हैं। शामिल रचनाएं किसी एक विशेष शैली की न होकर कथ्य के हिसाब से अपनी बात कहती नज़र आती हैं, जिसे लेखिका के लेखन का एक सुंदर पक्ष कहा जा सकता है। इसका एक  उदाहरण संग्रह की प्रथम रचना 'धानी चूनर' में भी देखा जा सकता है जिसमें एक सैनिक-विधवा के आदर्श और उसके समर्पण को, परिवार के लिए प्रभावी ढंग से दर्शाया गया है।
संग्रह की अधिकांश लघुकथाएँ नारी विमर्श पर रची गईं हैं। इनमें 'घानी का बैल', 'भविष्य', 'सशक्त', 'सबको मार दिया' जैसी रचनाएँ सहज ही आकर्षित करती हैं। लघुकथा 'कवच' में एक विधवा द्वारा सजने संवरने के पीछे, उसका समाज की बेचारगी तथा लोलुप नजरों से बचने का कारण बताना विचारणीय है। एक और लघुकथा 'स्त्री' का कथन "बुद्ध और महावीर बनने से ज्यादा मुश्किल है स्त्री बनना" भी सोचने पर विवश करता है। लघुकथा 'आड़' और 'सरप्राइज़' युवा होते बच्चों के भटकते कदमों को दर्शाने के साथ लिव इन रिलेशनशिप के विषय को सामने रखती है। तो 'हवा' लघुकथा में गलत रास्ते पर जाती बेटी के संभलने का संदेश सुंदरता से दिखाया गया है। एक रचना 'गिरगिट' में बिना सोचे समझे ऐसे प्रेम में फंसकर पछताने का (लव ज़िहाद) कथानक बुना गया है।
नैतिकता के कथ्य पर ही रची गई 'काबिल' 'अलविदा' और 'बधाई' जैसी रचनाएं सहज ही ग़लत व्यक्ति के तत्काल विरोध करने का अपना संदेश देने में सफल रही हैं।  ऐसी ही एक रचना 'विष बेल' में मां द्वारा बेटे की चरित्रहीनता पर लिया गया निर्णय "खानदान की विष बेल को और नहीं बढ़ने दूँगी" बहुत बड़ा संदेश दे जाता है। एक और रचना 'दाग' में भी एक माँ द्वारा बेटे के बजाए 'बहू' का साथ देना प्रभावी बना है।
सामाजिक सरोकार से जुड़ी रचनाओं में
एक है 'ओढ़नी का दस्तूर', जिसमें परिवार के मुख्य सदस्य की मृत्यु पर पगड़ी रस्म जैसी प्रथा के समानांतर स्त्री संदर्भ में भी इस प्रथा को अपनाने की पैरवी की गई है। इसी तरह एक लघुकथा 'अरमान' में बेटी के जन्म होने पर भी दादी को 'स्वर्ण सीढ़ी' प्रदान करने का कदम भेदभाव पर सही चोट करता है। 'खून' नामक लघुकथा में अनाथालय से बच्चे लेने के विषय पर अच्छा कथ्य बुना गया है।
वृद्धावस्था में बच्चों की बेरूख़ी के विषय पर मानवेत्तर रचना 'भीत' प्रभावित करती है तो 
लघुकथा 'सफ़र' तथा 'दुआएं' में क्रमशः बेटे के सकारत्मक और नकरात्मक रूख़ का दिखाना अच्छा बना है। कोरोना काल में वेश्यावृत्ति से जुड़े प्रभाव पर रचित लघुकथा 'आग' तथा गरीब नौकर को चोर समझ लेने के कथ्य पर लघुकथा 'चोरी' सहित और भी 'संकल्प', 'सम्मान', 'पुलिस', 'दोषारोपण', 'अनर्थ', 'छतरी', 'प्रस्ताव', 'पत्थर' और बोझ जैसी कई लघुकथाएं सहज ही अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रही हैं।
कुछ लघुकथाएं विषय अच्छा होने बाद भी प्रस्तुति के स्तर पर काफी हल्की रही हैं, ऐसी लघुकथाओं में 'आहुति', 'बारिश की बूंद', भरोसा, 'सब्र', 'अंकुश', 'द्वंद', 'इतिहास', 'पर्दा', 'असर', 'पिंजरे', 'सपने' और 'लकीरें' रचनाओं को देखा जा सकता है।
 
रचनाओं के शीर्षक पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया है। मूली, उथल पुथल, मज़ाक जैसे शीर्षक लघुकथा की गंभीरता को कम करते हैं। सँग्रह में एक दो रचनाओं में कथ्य की समरूपता का आभास (पुलिस/सबको मार दिया, अलविदा/बधाई) भी असहज करता है। लेखिका को इस समरूपता और शीर्षकों के चयन पर भविष्य में और अधिक ध्यान देना चाहिए।
बहरहाल विषयों की विविधता और रचनाओं में यथार्थ के बीच काल्पनिक समावेश के साथ एक सार्थक सोच सहज ही लेखिका के सुंदर लेखन के प्रति आशान्वित करती है।
लेखिका के समृद्ध एवं उज्जवल भविष्य की शुभेच्छा के साथ. . . 
हार्दिक शुभकामनाएं।
विरेंदर ‘वीर’ मेहता
8130607208
लघुकथा संग्रह - लघुकथा कौमुदी
पृष्ठ - 112
मूल्य - ₹ 200/
प्रथम संस्करण - 2022
संग्रह लेखिका - शकुंतला अग्रवाल 'शकुन'
प्रकाशक - सहित्यागार, धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर

Views: 247

Attachments:

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service