For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आत्मीय स्वजन,
मुशायरे ३ की अपार सफलता के बाद एक बार फिर से नई उर्जा के साथ अगले मुशायरे के लिए नया मिसरा लेकर हाज़िर हूँ|

चाहा तो था कि इस बार कोई नया मिसरा तरही के लिए रखूँ, पर आज कल के दौरे हालात को देखते हुए इस मिसरे के अलावा किसी मिसरे पर दिल और दिमाग में सहमति नही बनी| अंततः दिल के हाथों दिमाग गिरफ्त होकर इस मिसरे पर ही जा अटका| और तो और जब वज्न निकालने लगा तो एक बड़ी प्यारी सी बात भी पता चली कि जिस प्रकार से ऊपर वाले में कोई भी भेद नही है उसी प्रकार से "मन्दिर" और "मस्जिद" में भी कोई भेद नही है अर्थात दोनों का वज्न सामान है, है ना खास बात?


तो यह बता दूं कि इस बार का मिसरा पंजाब के मरहूम शायर जनाब सुदर्शन फाकिर जी की एक मशहूर ग़ज़ल से लिया गया है| अस्सी के दशक में जगजीत सिंह की आवाज़ से सजी आपकी कई गज़लें मशहूर हुई "वो कागज की कश्ती" इन्ही कृति थी|

"फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मन्दिर क्यूँ है"
२१२२ ११२२ ११२२ २२
फाएलातुन फएलातुन फएलातुन फालुन

रद्दीफ़: "क्यूँ है"

इतना अवश्य ध्यान रखें कि यह मिसरा पूरी ग़ज़ल में कहीं न कही ( मिसरा ए सानी या मिसरा ए ऊला में) ज़रूर आये|
मुशायरे की शुरुवात अगले महीने की पहली तारीख से की जाएगी| एडमिन टीम से निवेदन है कि रोचकता को बनाये रखने के लिए फ़िलहाल कमेन्ट बॉक्स बंद कर दे जिसे ०१/१०/१० लगते ही खोला जाय| मुशायरे का समापन ०३/१०/१० को किया जायेगा|

विशेष : जो फ़नकार किसी कारण लाइव तरही मुशायरा-3 में शिरकत नही कर पाए हैं
उनसे अनुरोध है कि वह अपना बहूमुल्य समय निकालकर लाइव तरही मुशायरे-4 की रौनक बढाएं|

चलते चलते: बहर पकड़ने के लिए कुछ उदहारण छोड़े जा रहा हूँ|




Views: 6797

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

तमाम OBO मेम्बर्ज़ को दिल की गहराईओं से आदाब और मुबारकबाद आपकी काविशों और आपकी कोशिशों के लिए ! अल्लाह करे जोर-ए-कलम और ज्यादा ! तरही मुशायरे में फिल्बदी ग़जल पेश-ए-खिदमत है !

मेरे होंठों पे भला प्यास का सागर क्यूँ है !
और दरियाओं का हर सिम्त से लश्कर क्यों है !

इस से पहले तो कभी प्यार का तूफ़ान ना था,
आज ये शख्स मुहब्बत का समंदर क्यूँ है !

क्या किसी दौर की तारिख है लिखनी इसको,
हाथ में थामे कलम आज सितमगर क्यूँ है !

हम क़बीलों में तो बांटा नहीं करते रब को
फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदर क्यूँ है !

भूल बैठा है ज़माने कि हर इक नेमत को
दिल मेरा तेरी मुहब्बत में कलंदर क्यों है !

क्या किसी आईना खाए से गुज़र है तेरा,
सोचता हूँ कि तेरे हाथ में पत्थर क्यूँ है !

सूखे पत्ते ही बताएं तो कोई राज़ खुले,
शाख पर बैठा हुआ ज़ख़्मी कबूतर क्यूँ है !

क्यूँ नहीं रास मुझे घर की इमारत आती
पूछता मुझसे नहीं कोई सफ़र पर क्यूँ है !

क्या हुआ शाम का रंगीन चमकता चेहरा
दूर तक सिर्फ उदासी का ही मंज़र क्यूँ है !
जनाब SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI साहब
सबसे पहले तो इन बेहतरीन आशार के लिए दाद कबूल फरमाइए. हर शेर उम्दा है गिरह का शेर भी एकदम नयापन लिए हुए है|
हम कबीलों में तो बांटा नहीं करते रब को..........
बेहतरीन ख्याल
इसके बाद ज़ख़्मी कबूतर, मुहब्बत का समंदर, आइना और कलंदर वाले शेर बहुत पसंद आये|
मुबारकबाद कबूल कीजिये|
मुशायरे में शिरकत के लिए बहुत बहुत धन्यवाद|
rana ji
wafa sahab naam ka guhar bhi hum leke aaye hai aage bhi koshish karunga k obo ko aise naayab gauhar hamesha milte rahein
//सूखे पत्ते ही बताएं तो कोई राज़ खुले,
शाख पर बैठा हुआ ज़ख़्मी कबूतर क्यूँ है ! //

//क्यूँ नहीं रास मुझे घर की इमारत आती
पूछता मुझसे नहीं कोई सफ़र पर क्यूँ है ! //

वाह वाह वफ़ा साहिब, इन दो शेअरों ने दिल जीत किया - बहुत खूब ! इस परवाज़-ए-तखय्युल से सदके !
is se pahle to kabhi pyar ka tufan na utha

aaj yeh shakhs muhabbat ka samandar kyun hai

Kya kisi daur ki tareekh hai likhni is ko

hath main thame qalam aaj sitamgar kyun hai

lajawaab sher hai wafa bhai mubarak baad qubool kijiye aur shukrguzaar hu aapka k aapne meri darkhwast pe ye community join ki aur apne kalam se bhi nawaza

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

surender insan commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। अलग ही रदीफ़ पर शानदार मतले के साथ बेहतरीन गजल हुई है।  बधाई…"
6 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान देने तथा अपने अमूल्य सुझाव से मार्गदर्शन के लिए हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"गंगा-स्नान की मूल अवधारणा को सस्वर करती कुण्डलिया छंद में निबद्ध रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय…"
4 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते थक गई, पाप गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म से…See More
6 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ सत्तरवाँ आयोजन है।.…See More
14 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"सादर प्रणाम🙏 आदरणीय चेतन प्रकाश जी ! अच्छे दोहों के साथ आयोजन में सहभागी बने हैं आप।बहुत बधाई।"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ! सादर अभिवादन 🙏 बहुत ही अच्छे और सारगर्भित दोहे कहे आपने।  // संकट में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service