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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-90

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 90 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब आनंद नारायण 'मुल्ला' साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"इस के आगे बस ख़ुदा का नाम है "

2122      2122      212

फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन

(बह्र: रमल मुसद्दस महजूफ)

रदीफ़ :- है
काफिया :- आम (नाम, गाम, काम, आराम  आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 दिसंबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 23 दिसंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

बेहद उम्दा  ..बहुत बधाई

बहुत शुक्रिया आदरणीया  महिमा जी ....

जनाब नादिर साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें। शेर 7 के उला मिसरे में दिल में की जगह दिल पे कर ना सही होगा ।

बढ़िया ग़ज़ल है आ. नादिर जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. आ. अफ़रोज़ जी ने आपको सही सलाह दी है. सादर.

आदरणीय नादिर साहब, अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.सादर 

 

दिल में उसने हाथ मेरे रख दिया

हर परेशानी से अब आराम है

वाह बधाई 

ग़ज़ल 
--------
बे वफ़ाई फितरते गुलफाम है |
हाए लेकिन मेरे सर इल्ज़ाम है|
यूँ हुआ बद ज़न न दिलआराम है |
दोस्तों का मुझ पे यह इकराम है |
मैं हटाऊँ किस तरह अपनी नज़र 
सामने ही दिलरुबा का  बाम है |
इतनी जुरअत थी परायों में कहाँ 
मुझको अपनों ने किया बदनाम है|
क्या यही साक़ी है रस्मे मैकदा  
जिसने माँगा उसका ख़ाली जाम है |
कुछ नहीं है मंज़िले उल्फ़त के बाद 
इस के आगे बस ख़ुदा का नाम है |
साथ दे तू या न दे रह पर मगर 
तेरे रस्ते पर मेरा हर गाम  है |
दीजिए मत मुझको एसा मशवरा 
तर्के उल्फ़त तो तुम्हारा काम  है |
उस बशर से कैसी उम्मीदे वफ़ा 
जो वफ़ा के नाम से ही खाम है |
यूँ नहीं आता तसव्वुर में कोई 
लग रहा है होने वाली  शाम है |
इबतिदाए इश्क़ मत तस्दीक़ कर 
तू अभी ना वाक़िफ़े अंजाम  है |
गुलफाम --माशूक़ , दिलआराम--माशूक़ 
इकराम --करम , खाम -नवाक़िफ़
गाम --क़दम ,रह --रास्ता 
(मौलिक व अप्रकाशित )

हर शेर लाजवाब।

खास तौर पर गिरह का शेर, बेहद उम्दा।

आदरणीय तस्दीक़ जी उम्दा ग़ज़ल पर बहुत मुबारकबाद

हुस्ने मतला में एब ए तनाफ़ुर "ज़न न दिल",8वें शेर में "उल्फ़त तो", मक्ते में

" मत तस्दीक़" देखिएगा,,,

जनाब अफ़रोज़ साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया। अस्ल में मैं ने दो टाइप की थीं लेकिन गलती से वही पोस्ट हो गई , शेर 2 उला,शेर 8 सानी ,और मक़्ते का उला इस तरह है ।

बद गुमां यूँ ही न दिल आराम है ।  तर्के उल्फ़त आप ही का काम है । 

इब्तदा मत इश्क़ की तस्दीक़ कर ।

जनाब अजय गुप्ता साहिब, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल शेर तो शेर मुबारकबाद  कबूल फरमाए

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