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आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानीजी, सर्वप्रथम इस आयोजन में सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं बधाइयाँ. 
वैसे, आपकी यह प्रस्तुति अनावश्यक व्याख्या तथा आज के समाज केलिए बन पड़े तो सबकुछ समेट लेने के व्यामोह का शिकार हो गयी है. सहिष्णु-असहिष्णु जैसे शब्द इस प्रस्तुति के कलेवर को देखते हुए पूरी तरह अनावश्यक हैं. 
वस्तुतः, आदरणीय, आपने मानों किसी कथा का संक्षेप स्वरूप प्रस्तुत किया है. न कि कोई लघुकथा प्रस्तुत हुई है. विश्वास है, आप इस अंतर को समझ रहे होंगे.
बहरहाल आपकी प्रस्तुति सहभागिता का सार्थक उदाहरण प्रस्तुत कर रही है. 
शुभेच्छाएँ
आदरणीय उस्मानी जी आयोजन में इस प्रस्तुति एवं सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई
कच्चा चिटठा खोल के रख दिया आपने | व्योस्था सच में लचर है और बड़े बड़े संकल्पी इस लचर व्योस्था के आगे नतमस्तक हो जाते या हार कर आंसू बहाते रहते | बढ़िया कथा ..बधाई आपको
मुझे नहीं लगता कि यह प्रस्तुति लघुकथा शैली पर खरी हो सकेगी, इस प्लाट पर बहुत ही काम करने की आवश्यकता है, सादर.
प्रशासन की लचर पचार नीतियों की पोल खोलती लघु कथा |संकल्प की धज्जियाँ उडाती प्रशासनिक व्यवस्था |प्रदत्त विषय पर अच्छी लघु कथा हुई है |बहुत बहुत बधाई आ० उस्मानी जी
सुन्दर प्रतिकात्मक रचना कैलेंडर के साथ.//तय हुआ सबसे वरिष्ठ महिना दिसम्बर नव वर्ष में किये गये संकल्प को फिर याद दिलायेगा.// उत्तम अंत किया रचना का
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