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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-64 (विषय: प्रयास)

आदरणीय साथियो,
सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-64 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-64
विषय: "प्रयास"
अवधि : 30-07-2020 से 31-07-2020
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फ़ॉन्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है।
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाए रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाएँ इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद ग़ायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आसपास ही मँडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया क़तई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा ग़लत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फ़ोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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प्रयास

ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'


अख़बार में छपी खबर पढ़ते ही विकास को  रोहन की कही बातों याद आ गई " यार ! तेरे पिताजी ठीक कहते हैं। उनकी बात मान लें।"
" तू भी यही चाहता है ।," रोहन ने कहा था, " मैं अपने पिताजी का व्यापार संभाल लूं। मगर तू जानता है कि मेरा सपना आईएएस बनना है।"
" वह तो मुझे पता है, " विकास ने कहा, " मगर हम 6 बार इस परीक्षा में असफल हो चुके हैं।"
" किसने कहा, मैं असफल हुआ हूं, " रोहन बोला, " मैं हर बार सफल हुआ हूं।" उसके यह कहते ही विकास बोला, " वह कैसे ?"
" वह ऐसे, " रोहन ने कहा, " पहली बार में 90785 वह नंबर पर था ।दूसरी बार मैंने 20000 छात्रों को पीछे छोड़ दिया था।"
" क्या !"
" हां", रोहन बोला, " उस वक्त मुझे 49736 वाँ स्थान मिला था।"
" वह तो है ?"
" वही तो कह रहा हूं, " रोहन ने कहा, " छठी बार में मुझे 9312 स्थान मिला था। देखना इसी तरह एक दिन सफलता का पायदान चढ़ते हुए मैं आईएएस बन जाऊंगा।"
यह याद आते ही विकास ने आवाज लगाते हुए नन्हे ग्राहक की ओर देखा। फिर झुंझलाते हुए कहा, " क्या चाहिए !" इसी के साथ उसने अखबार एक ओर झटके के साथ पटक दिया जिस पर रोहन का फोटो छपा हुआ था।

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मौलिक और अप्रकाशित

सही है, बार-बार प्रयास करने से एक दिन सफलता तो हाथ लगती है। अच्छी लघुकथा है , हार्दिक बधाई। 

आदरणीय मुजफ्फर इकबाल सिद्दीकी जी आपको लघुकथा पसंद आई इसके लिए हार्दिक आभार।

सादर नमस्कार। प्रदत्त विषयांतर्गत युवा प्रतियोगियों की एक अहम समस्या को उभारती दो फैसलों में से एक चुनने की जद्दोजहद व विसंगतियों को उभारती बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई जनाब ओमप्रकाश क्षत्रीय 'प्रकाश' साहिब। इसे दूसरे बेहतर तरीक़े से भी आपकी सधी लेखनी इसे कह सकती है मेरे विचार से।

आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी आपकी इस नेक सलाह के लिए हार्दिक आभार और धन्यवाद

 'करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान 'के मर्म को स्थापित करती शानदार लघुकथा I हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश  क्षत्रिय जी 

आदरणीय प्रतिभा पांडे जी आपको मेरी लघुकथा अच्छी लगी इसके लिए आपका हार्दिक आभार।

आदरणीय ओम प्रकाश जी, 'असफलता में भी सफलता छिपी रहती है 'को प्रतिपादित करती लघुकथा हेतु आपको बढ़ाई।टंकण जनित विचलन ध्यान आकृष्ट करते हैं,सादर।

हार्दिक आभार आदरणीय मनन कुमार जी।

सफलता का मूल मंत्र अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति ही है ।बहुत बढ़िया संदेशात्मक लघुकथा है आदरणीय..।

आदरणीय कनक हरलालका जी आपको मेरे लघुकथा अच्छी लगी इस हेतु आपका हार्दिक आभार।

प्रदत्त विषय 'प्रयास' को अपनी लघुकथा के माध्यम से परिभाषित करने का बेहद अच्छा प्रयास किया है आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय भाई जी. हार्दिक बधाई प्रेषित है.

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"सही कहा आपने। ऐसा बचपन में हमने भी जिया है।"
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