For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-38 (विषय: "डर")

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-38 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. गत तीन वर्ष में गोष्ठी के पिछले 37 अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, यह वास्तव में हर्ष का विषय हैI कठिन विषयों पर भी हमारे लघुकथाकारों ने अपनी उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कींI विद्वान् साथिओं ने रचनाओं के साथ साथ उन पर सार्थक चर्चा भी की जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन हुआI इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-38
विषय: "डर" 
अवधि : 30-05-2018  से 31-05-2018 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 9787

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

हार्दिक बधाई आदरणीय विनय जी। बेहतरीन लघुकथा।

बढ़िया लघुकथा हुई है भाई विनय कुमार सिंह जी, बधाई स्वीकार करें.

एडमीन
----
हाँ शुरुआत फेसबुक से हुई।
-कब?
-अरे यही कुछ तीन-चार साल पहले की बात है।
-फिर?
--फिर क्या?लिखा-पढ़ी चलने लगी।
-लिखा-पढ़ी?
-मतलब एक लिखता,दूसरे पढ़ते।यूँ ही एक समूह बन गया।समूह बना,तो एक शासक हुआ।वही एडमिन कह लें।
-अच्छा!वही एडमिन हुआ?मुझे लगता था कि कोई जबर्दस्त जानकार होता होगा यह एडमिन।
समूह को एडमिन चाहिए।उसका जानकार होना जरूरी नहीं ।
-कहें कि इतने सारे एडमिन बहाल किये किसने?
-बुझे न बबुआ, एडमिनगिरी का मतलब?
-जी बाबा',बाबू बोला।
-आ इहो गँठिया लो....कोई चूँ नहीं कसता है एडमिन की कथनी -करनी पर।उ चाहे त हथेली पर दूब उगा सकेला।राई के पहाड़ आ पहाड़ के राई बनाना त ओकरा बाँयें हाथ के खेल होला रे बबुआ।
-आ बाबा एगो संपादको होला नु?
-हँ रे बचवा।उहो होला।पहिले के जमाना में लोग पहिले लेखक होत रहे।ओही में से केहू केहू संपादक हो जात रहे।आ अब त कह मत।
-का बाबा?
-आरे अब लोग पहिले संपादके हो जाता।मान लेहल जाता कि कबहूँ लेखक रहल होइहें।
-हाहाहा!खूब कहानी बाबा।
-सच्चाई इहे बा ये हमार बाबू।
-आ केहू कुछ बोलत काहे नइखे?
-ग्रुप से बेदखलकर दिहल जाई कि ना?
-ओ।
-एही से हँ में हँ मिलावल जाता।आ एडमिन बे अल्प-पूर्णविराम के आपन ज्ञान बघारत बा सब।भाषा के शुद्धि के बात त करवाइन लागता अब।
-बाकिर बाबा, सब एडमिन आ संपादक एके जईसन त नानु बा।
-भल कहल तू।बाकिर शेर बचले कय गो बा?बताव त।',बाबा की बात पर बाबू झूम उठा।
"मौलिकव अप्रकाशित"

बहुत ही उम्दा कटाक्षपूर्ण रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। आरंभ के बारह-तेरह संवादों के बाद शायद भूलवश एकदम से क्षेत्रीय भाषा मेंं संवाद लिखे गये। रोचक व्यंग्यात्मक हैं, यथार्थ भी है सोशल मीडिया  और आजकल के कुछ प्रिंट मीडिया का। किंतु अंतिम संवाद मुझे स्पष्ट नहीं हो सका।

लघुकथा अच्छी है आ० मनन कुमार सिंह जी, बधाई प्रेषित है. लेकिन आपने आधी लघुकथा के बाद एकदम भोजपुरी की तरफ रुख क्यों कर लिया? 

टाइम पास
"अरे बाबू जी काहे इतना सोच रहे है? होता हैं कभी कभी।" दूध वाला हल्का सा मुस्करा दिया।
"नहीं भाई, ये पहली बार नहीं हैं जब वह मुझसे कतरा कर निकल गए। कुछ दिन पहले भी ऐसे ही मुझे देखकर दूर से ही वह किसी और गली की तरफ मुड़ गये थे।" मैं कुछ असमंजस में था।
"अरे भाई कुछ रोकड़ा तो उधारी नहीं दे दिया था।"
"लगता है जनाब का कोई काम करने से मना कर दिया है आपने।"
दूध लेने आये लोगों में एक ने कटाक्ष किया तो दूसरे ने अपना विचार दे दिया, लेकिन इन दोनों ही बातों का उनके मुझे 'इग्नोर' करने से कोई सरोकार नजर नहीं आ रहा था।
"नहीं भाई नही, ऐसी कोई बात नहीं हैं। मुझे लगता हैं, कल सुबह जल्दी आकर ख़ुद ही पूछना होगा मुझे।"
"नहीं-नहीं बाबूजी!" दूध वाला यकायक बोल उठा। "आप जल्दी मत आइयें, और वैसे भी वह अब वह यहां दूध लेने नहीं आते।"
"अरे! ऐसा क्या हो गया? सालों से दूध लेते थे वो तो तुमसे। लगता हैं कोई बात जरूर हुई है और तुम जानते भी हो उनकी नाराजगी की वजह।" मैंने दूध वाले को अपनी बात पर जोर देकर कहा।"
"कोई नाराजगी नहीं है बाबूजी, बस हवा ही कुछ ऐसी चल पड़ी है। ये जो आप लोग सुबह-सुबह फेसबुक,व्हाट्स एप्प और मंदिर-मस्जिद से लेकर भारत-पाक की बातें करते हो न! यही है वह हवा जो डर बनकर माहौल में घुलती जा रही हैं।
"लेकिन वह तो 'जस्ट टाइम पास'....... ।" कहते- कहते मेरे अपने शब्द ही बीच में रह गए। दो दिन पहले की बातों में कहे शब्द मेरे जहन में सरगोशियां करने लगे थे। "अरे, इन विधर्मियों को तो सरहद पार खदेड़ देना चाहिए, आखिर देश मे अब तो अपनी सरकार है। अब भी न कर सके तो कब?"
.......... दूध वाला मेरे बर्तन में दूध डाल रहा था और मैं माहौल में घुलते डर को खत्म करने की शुरुआत आज ही उनके घर जाकर करने का निर्णय कर चुका था।
"मौलिक व अप्रसारित/अप्रकाशित"

बहुत ही गंभीर जन-जागरण और सामाजिक सरोकार की बेहतरीन लघुकथा सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब वीरेन्दर वीर मेहता साहिब। कड़वा सच है, जो मैंने स्कूलों मेंं भी महिलाओं और छात्रों में बहुत ही अनुभव किया है। सत्य है। बच्चा-बच्चा माहौल से कुप्रभावित होकर देश के भावी भविष्य पर सवाल पैदा कर रहा है। ज्वलंत मुद्दे पर सकारात्मक समाधान के सथ उम्दा सृजन। शीर्षक भी सार्थक व सटीक।

रोज़मर्रा के सामजिक सरोकार को केंद्र-बिंदु बनाकर उम्दा लघुकथा कही है भाई वीर मेहता जी. बधाई स्वीकार करें.  

लघुकथा—
डर
'40 प्रतिशत किराया बढ़ाने के लिए बसों की हड़ताल है.बस नहीं आएगी.' जैसे ही किसी ने कहा तो विनीता के होश उड़ गए. उस ने घड़ी देखी. सुबह के 8 बजने वाले थे और 12 बजे तक 52 किलोमीटर दूर नीमच जा कर परीक्षा देनी थी. गरीब मातापिता ने आनेजाने का किराया 120 रूपए ही दिया था. जिस में से 10 रूपए उस के नाश्ते के लिए थे.
अब किस साधन से जाए ? उस ने इधरउधर देखा. कई मातापिता अपनेअपने बच्चे को अपनेअपने साधन से ले कर जा रहे थे. वह असहाय से इधरउधर देख रही थी. कोई मिल जाए और उसे भी ले जा सकें.
' कोई बस नहीं आएगी ?' उस ने पास खड़े व्यक्ति से पूछा.
' नहीं !' वह व्यक्ति् बोला, ' यदि किराया बढ़ोत्तरी सरकार ने मान ली तो बस चल सकती है. अन्यथा नहीं ?'
वह बेचैन हो कर इधरउधर चक्कर काटने लगी. अब क्या होगा ? वह परीक्षा दे पाएगी ? या उस का साल बरबाद हो जाएगा. गरीब मांबापू उसे वैसे ही पढ़ाना नहीं चाहते हैं. यदि यह अंतिम साल बरबाद हो गया तो क्या होगा ? इसी सोच में डूबी किसी साधन के लिए निहार रही थी.
तभी एकाएक एक बस आ कर रूकी, ' चलो ! नीमच !'
उस की जान में जान आई. वह बस में चढ़ गई. मगर, मन में डर था कि बढ़ा हुआ किराया मांगा तो क्या होगा ?
' हां. आप को कहां जाना है ?' कण्डक्टर की आवाज सुन कर बढ़े किराए के भय से उस के दिल की धड़कन बढ़ गई .
'नीमच' कह कर उस ने 100 रूपए कण्डक्टर की ओर बढ़ा दिए.
' ये लीजिए,' कह कर कण्डक्टर ने रूपए लौटाए तो उस की आंखें फटी की फटी रह गई, ' मुझे तो नीमच जाना है. आप ने मुझे 70 रूपए लौटा दिए.' अचानक उस के मुंह से निकल गया.
' इस बस में नीमच के 30 रूपए ही लगेंगे. यह बस मालिक का आदेश है. इसीलिए तो यह हड़ताल के दौरान भी चल रही है.' कडक्टर ने कहा तो विनीता के चेहरे पर आई भय की हड़ताल खत्म् हो गई. वह केवल यही बोल पाई, ' केवल 30 रूपए.'
' हां,' और बस चल दी. मगर उस के डर की हड़ताल खत्म नहीं हुई थी. परीक्षा का भय उस के सिर पर चढ़ कर बोलने लगा था. और बस के साथसाथ उस के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी.

बढ़िया लघुकथा कही है आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय भाई जी. लेकिन शुरू का अरिथमेटिक रचना का प्रवाह बाधित कर रहा है .बहरहाल इसका अप्रत्याशित अंत बहुत पसंद आया जिस हेतु आपको बहुत बहुत बधाई.

वर्तमान परिस्थितियों व परिदृश्यों में डर को परिभाषित करती विचारोत्तेजक और समालोचनात्मक रचना सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार मुहतरम जनाब ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' साहिब। कुछ एक टंकण त्रुटियाँ रह गईंं है। जैसे कि - असहाय के बाद 'से'  की आवश्यकता नहीं है। शीर्षक बढ़िया है।

उपरोक्त अंतिम 6-7 प्रविष्टियों ने इस गोष्ठी को बेहतरीन अंजाम तक पहुंचाया है।.हार्दिक आभार। 

सभी सहभागी रचनाकारों को इस गंभीर विषय पर इस लघुकथा गोष्ठी को सफल बनाने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया और शुमकामनायें।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
15 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service