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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-149

विषय : "कैसी रही, अबकी होली ?"

आयोजन अवधि- 11 मार्च 2023, दिन शनिवार से 12 मार्च 2023, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 11 मार्च 2023, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक

ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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Replies to This Discussion

आदरणीय अजय भाईजी

आपकी रचनायें लम्बी होते हुए भी पाठक रोचक लगती हैं। पारिवारिक होली सार्वजनिक होली उत्साह उमंग सब का वर्णन किया है आपने । हार्दिक बधाई एवं होली की शुभकामनाएँ।

भुजंग प्रयात आधारित है इसलिए गलतियाँ महत्वपूर्ण नहीं है फिर भी निम्न पँक्तियों को संशोशित करने में आप पूर्ण सक्षम हैं ..

लिए मोर्चा एक टोली खड़ी थी ,,,, 

डिगाया नहीं हौंसला देवरों ने .....  दिखा खूब ही हौसला देवरों में।
रवैया रखा सख्त ही तेवरों में .... रवैया रखा सख्त ही तेवरों में॥

 सादर 

उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आभार भाई अखिलेश जी। आपके सुझाव उत्तम और अनुकरणीय हैं। बहुत बहुत आभार

कलियुग भी द्वापर काल लगे

-----------------------------------

होली में रंग गुलाल लगे।

सतरंगी सबके गाल लगे॥

 

इस रंग भंग की मस्ती में।

मस्तानी सबकी चाल लगे॥

 

खेलो खाओ खूब खिलाओ।

हमें भी होली कमाल लगे॥

 

वृन्दावन मथुरा बरसाना।

होली यहाँ की धमाल लगे॥

 

जो फाग ढोल पर नाच रहे।

सब गोप गोपियाँ ग्वाल लगे॥

 

कुछ राधा हैं कुछ कृष्ण बनें।

कलियुग भी द्वापर काल लगे॥

......................... 

मौलिक अप्रकाशित

अहा, क्या सुंदर चित्रण। मन मोह लिया एक-एक पंक्ति ने। बहुत खूब रचना अखिलेश जी।

आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुन्दर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

सुखों का छोड़कर सागर

गमों की भूल कर दुनियां 

तू मेरे साथ हो ली है

खुशी हमने संजोली है

यही तो अपनी होली है

मेरा हर रंग तुझपे है

तेरा हर रंग मुझपे है

"तुम्हारे और मेरे" की

जगह 'हम' ने समो ली है

हमारी ऐसी होली है

मेरी चाहत मोहब्बत हो

तेरी चाहत मोहब्बत हो

मोहब्बत सारे रोगों की

सुनो एक मीठी गोली है

यही हम सब की होली है 

मौलिक और अप्रकाशित 

अच्छी रचना हुई है आशीष जी। बहुत सुंदर पंक्तियाँ

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कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

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