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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-128 

विषय - "उजाले की ओर"

आयोजन अवधि- 12 जून 2021, दिन शनिवार से 13 जून 2021, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 12 जून 2021, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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गजल

221/2121/1221/212

हर पीठ कर के बैठा उजाले की ओर क्यों
कहता न कोई जाना उजाले की ओर क्यों।१।
**
करता  मुराद  पूरी  है  दीपक  तले  बहुत
मुँह बाये फिर अँधेरा उजाले की ओर क्यों।२।
**
भीगे हैं तम के हाथ बहुत नित्य खून से
उँगली करे इशारा उजाले की ओर क्यों।३।
**
पाया जो ताज उसने है वो तम की देन है
जायेगा बोल  नेता  उजाले की ओर क्यों।४।
**
तम से मिली है प्यास जो मालूम सबको है
करता न कोई प्याला उजाले की ओर क्यों।५।
**
कहते परेशाँ लोग  हैं  तम  से  बहुत मगर
साथी न कोई आया उजाले की ओर क्यों।६।
**
सुनते हैं उनके देश में जनता खड़ी मगर
केवल नहीं है राजा उजाले की ओर क्यों।७।
**
आता नहीं है वक्त पे करने मदद कभी
ऐसे में कोई होगा उजाले की ओर क्यों।८।
**
तम से भरा सफर है मुसाफिर की जिंदगी
जाता न कोई  रस्ता  उजाले की ओर क्यों।९।

मौलिक अप्रकाशित

आदाब। विषयांतर्गत यथार्थ से परिचित कराती, सवालात पेश करती, कड़वी हक़ीकत की ओर इशारे करती बेहतरीन ग़ज़ल के साथ महाउत्सव का आग़ाज़ करने हेतु हार्दिक बधाई जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब।  

माहौल अनलॉक में भी कुछ ठीक नहीं बन पा रहा है। ईश्वर की जब जैसी इच्छा। हम प्रार्थना ही कर सकते हैं सबकी बेहतरी और उजालों के लिए। सादर।

आ. भाई शेख शहजाद जी, सादर अभिवादन। मंच पर उपस्थिति, स्नेह एवं प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद। 

जी वर्तमान माहौल में प्रार्थना ही विकल्प के रूप में रह गया है। सादर..

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपने उजाले की ओर में क्यों जोड़ कर क्या ही ख़ूब ग़ज़ल कही है ! वाह वाह वाह !! 

आता नहीं है वक्त पे करने मदद कभी .. इस शेर के लिए विशेष दाद !! 

शुभ-शुभ

आ. भाई सौरभ जी, आपकी उपस्थिति और प्रशंसा पा गजल सफल हुई । हार्दिक धन्यवाद ।

सुंदर गजल के लिये सहृदय बधाई आ धामी सर

"कहता न कोई जाना उजाले की ओर क्यों"

समझने में थोड़ी दिक्कत हो रही है

उजाले की ओर विषय पर बेहद सार्थक गजल है हुई है सर

सादर

आ. भाई आज़ी तमाम जी, मंच पर उपस्थिति व प्रस्तुति की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।

प्रदत्त विषय पर शानदार गज़ल हार्दिक बधाई आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी

आ. प्रतिभा बहन, रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

नग़मा

122 122 122 122/12

मिटाकर अंधेरे ग़मों को मिटा दे
ए मौला मुझे कोई सूरज दे ला के

जो माना है दिल से ख़ुदा गर तुझे
तो ले चल उजाले की जानिब मुझे

खुदाया तू मेरी नज़र बनके आ
मिरी जीस्त का हमसफ़र बनके आ

है मुश्किल ज़फाओं भरा ये सफ़र
दुआओं का मेरी असर बनके आ

भटकता है मन मेरा सहराओं में
तू सहरा में कोई शजर बनके आ

मिरी हिम्मतें टूट जाएं अगर
बुझी आशाओं में शरर बनके आ

तुझे मैं ख़ुदा या उजाला कहूँ
तू गर आ तो फिर रहगुज़र बनके आ

मौलिक व अप्रकाशित

आ. भाई आजी तमाम जी, प्रदत्त विषय पर अच्छा प्रयास हुआ है । हार्दिक बधाई।

सराहना के सहृदय शुक्रिया आ धामी सर

सादर प्रणाम

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