For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक ग़ज़ल - ख़ुद को आज़माकर देखूँ

रब ना करे मैं ऐसा मंज़र देखूँ
दोस्त के हाथ में खंज़र देखूँ

सबकी ख़ुशी सलामत रख मौला
ना ही टूटता किसी का घर देखूँ

गम दे तो हिम्मत भी बक्श ख़ुदा
आँखों में किसी की ना डर देखूँ

ख़्वाब पूरे होते नहीं देखने भर से
खुद को भी तो आज़माकर देखूँ

ये हवा भी हारेगी मिरे यकीं से
उम्मीद-ए-चिराग़ जला कर देखूँ

ठान ही ली जब चलने की 'विवेक'
फिर क्यूँ मुश्किल-ए-सफ़र देखूँ
#मौलिक व अप्रकाशित#

Views: 662

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on January 22, 2020 at 8:33pm

बेशकीमती जानकारी के लिए हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब

Comment by Samar kabeer on January 21, 2020 at 9:46pm

 //मत ले मैं आपने मंजर और खंजर इस्तेमाल कर लिया है इसलिए यह ग़ज़ल जर अंत वाले काफिये की कैद में आ गई है जिसका पूरी ग़ज़ल में निर्वाह करना पड़ेगा अर्थात ऐसे ही कवाफी लेने पड़ेगे जिनके अंत मे जर हो//

मनोज जी,ऐसा नहीं है, क़वाफ़ी अर के हैं,मतले में 'मंज़र' में 'ज्' के नीचे बिंदी है जो "ख़ंजर" में नहीं है,इसलिए इस ग़ज़ल में क़वाफ़ी दुरुस्त हैं ।

Comment by Samar kabeer on January 21, 2020 at 9:40pm

जनाब विवेक ठाकुर 'मन' जी आदाब,पहली बार ओबीओ पर आपकी रचना पढ़ रहा हूँ,आपका स्वागत है ।

ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है लेकिन बह्र,शिल्प,व्याकरण की दृष्टि से अभी ये बहुत समय चाहती है, ओबीओ पर मौजूद 'ग़ज़ल की कक्षा' का लाभ लें,अध्यन करें,प्रयासरत रहें,शुभेच्छाएँ ।

Comment by मनोज अहसास on January 21, 2020 at 7:23pm

प्रिय मित्र इस ग़ज़ल की बहर क्या है यह स्पष्ट करें ग़ज़ल की बहर गजल के ऊपर लिख दिया करें इससे गजल को समझने में आसानी रहती है मत ले मैं आपने मंजर और खंजर इस्तेमाल कर लिया है इसलिए यह ग़ज़ल जर अंत वाले काफिये की कैद में आ गई है जिसका पूरी ग़ज़ल में निर्वाह करना पड़ेगा अर्थात ऐसे ही कवाफी लेने पड़ेगे जिनके अंत मे जर हो

सादर

Comment by विवेक ठाकुर "मन" on January 18, 2020 at 10:53pm
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 17, 2020 at 7:00am

आ. भाई विवेक जी, अच्छी गजल हुई है, हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय संजय जी। सादर अभिवादन स्वीकार करें। ग़ज़ल तक आने व प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार"
17 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Sanjay जी, अच्छा प्रयास रहा, बधाई आपको।"
19 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Aazi ji, अच्छी ग़ज़ल रही, बधाई।  सुझाव भी ख़ूब। ग़ज़ल में निखार आएगा। "
25 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकारें बाक़ी गुणीजनों की इस्लाह से और निखर जायेगी"
37 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Mahendra Kumar ji, अच्छी ग़ज़ल रही। बधाई आपको।"
39 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Euphonic Amit जी, ख़ूब ग़ज़ल हुई, बधाई आपको।  "आप के तसव्वुर में एक बार खो जाए फिर क़लम…"
44 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी आ अच्छी ग़ज़ल की बधाई स्वीकार करें गुणीजनों की इस्लाह से और निखर जायेगी"
49 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी आ अच्छी ग़ज़ल की बधाई स्वीकार करें भाई चारा का सही वज्न 2122 या 2222 है ? "
51 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकार करें सातवाँ थोड़ा मरम्मत चाहता है"
55 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत ख़ूब। समझदार को इशारा काफ़ी। आप अच्छा लिखते हैं और जल्दी सीखते हैं। शुभकामनाएँ"
57 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी बहुत बहुत शुक्रिया आ ज़र्रा-नवाज़ी का"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी बहुत बहुत शुक्रिया आ ज़र्रा-नवाज़ी का"
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service