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ग़ज़ल (देते हमें जो ज्ञान का भंडार)

गुरु पूर्णिमा के विशेष अवसर पर:-

बह्र:- 2212*4

देते हमें जो ज्ञान का भंडार वे गुरु हैं सभी,
दुविधाओं का सर से हरें जो भार वे गुरु हैं सभी।

हम आ के भवसागर में हैं असहाय बिन पतवार के,
जो मन की आँखें खोल कर दें पार वे गुरु हैं सभी।

ये सृष्टि क्या है, जन्म क्या है, प्रश्न सारे मौन हैं,
जो इन रहस्यों से करें निस्तार वे गुरु हैं सभी।

छंदों का सौष्ठव, काव्य के रस का न मन में भान है,
साहित्य के साधन का दें आधार वे गुरु हैं सभी।

चर या अचर जो सृष्टि में देते हैं शिक्षा कुछ न कुछ,
जिनसे हमारा ये खिला संसार वे गुरु हैं सभी।

गीता हो, रामायण हो या फिर दूसरे सद्ग्रन्थ हों,
जो सद्विचारों का करें संचार वे गुरु हैं सभी।

गुरुपूर्णिमा के दिन करें गुरु वृंद का वंदन 'नमन',
संसार का जिनसे मिला है सार वे गुरु हैं सभी।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on July 21, 2019 at 11:55am

आदरणीय समर साहिब रचना को आपका अनुमोदन मिला अतीव आभार।

Comment by Samar kabeer on July 20, 2019 at 8:20pm

जनाब बासुदेव जी आदाब,अच्छी रचना हुई,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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