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मनजाये ख़ुदा, और न हाथों से ख़ुदाई जाए,
 आओ मिलजुलके कोई बात बनाई जाए,
 मुजस्सिम हूँ गुनाहों का, अब ख़ुदा ख़ैर करे,
कैसे आमाल की सूरत ये दिखाई जाए.
 जाहिल ही रहा, कोई नहीं तबलीग़ सुनी,
न कोई बात, 'नकीरो मुनकिर' मुझसे बताई जाए।
 ताब सरापा तो रहा, दिल की स्याही न गई।
दगाबाज़ी की ये कालिख़, रो रो के छुटाई जाए.
 'इमरान' क़ायम है अभी तो, दौलते हयात,
पेशानी, तौबा के मुसल्ले पे झुकाई जाए।
♥~*~हर अच्छी ग़ज़ल के लिए मेरी मुबारकबाद यहीं से कुबूल हो ! ~*~♥
राजेन्द्र स्वर्णकार
''मिलजुल के बात बनाई जाए''
इंसान तो गलतियों का एक पुतला होता है
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए l
गर्मी के मौसम में ना बिजली ना पानी
चलो दरिया के पानी में डुबकी लगाई जाए l
आज चाँदनी रूठ कर छिप गई है कहीं पर
चलो चाँद से कहकर वो फिर से बुलाई जाए l
शादी में हो रहा है लड़कियों का मोल-भाव
दहेज की रस्म ''शन्नो''जड़ से हटाई जाए l
-शन्नो अग्रवाल
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