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1-
अर्थ धर्म या काम मोक्ष में, अर्थ प्रथम है आता।
फिर भी पैसा मैल हाथ का,क्योंकर है कहलाता।।
सब कुछ भले न हो यह पैसा, पर कुछ तो है ऐसा।
जिस कारण जीवनभर मानव,करता पैसा-पैसा।।
2-
बिना अर्थ सब व्यर्थ जगत में,क्या होता बिन पैसा।
निर्धन से वर्ताव यहाँ पर, होता कैसा-कैसा।।
धनाभाव ने हरिश्चंद्र को,समय दिखाया कैसा।
बेटे के ही क्रिया-कर्म को, पास नहीं था पैसा।।
3-
इसी धरा पर पग-पग दिखती,पैसे की ही माया।
पैसा-पैसा करते भटके, पंचतत्व की काया।।
हो प्रयास जब तन-मन-धन से,कार्य सफल तब होता।
पैसे के सब रिश्ते-नाते, बेटा-बेटी पोता।।
4-
दाँत रहे तब चने नहीं थे, अक्सर होता ऐसा।
सही वक्त के बाद मिला तो,क्या कर लेगा पैसा।।
वेद पुराण संत ज्ञानीजन, सब कहते हैं ऐसा।
पैसे को साधन ही मानो, साध्य नहीं है पैसा।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

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Comment by Hariom Shrivastava on April 1, 2019 at 6:14pm

आपकी उपस्थिति व उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब।

Comment by Samar kabeer on March 31, 2019 at 11:35am

जनाब हरिओम श्रीवास्तव जी आदाब,अच्छे सारछन्द लिखे आपने,बधाई स्वीकार करें ।

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