For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिश्तों की चिता--लघुकथा

चिता पर चाचाजी का शरीर लकड़ियों से ढंका हुआ पड़ा था और उसको आग लगाने की तैयारी चल रही थी. चाचाजी उम्र पूरा करके गुजरे थे इसलिए घर में बहुत दुःख का माहौल नहीं था लेकिन उनकी सेहत के हिसाब से अभी कुछ और साल वह सामान्य तरीके से जी सकते थे. अभी भी सारा परिवार एक में था इसलिए पूरा घर वहां मौजूद था. चचेरे भाई ने चिता जलाने के लिए जलती फूस को हाथ में लिया और चिता के चारो तरफ चक्कर लगाने लगा.
कुछ ही पल में चिता ने आग पकड़ ली और वह एक किनारे से एकटक जलती चिता को देखता रहा. चाचाजी से पिछले कई सालों से उसकी बातचीत बंद थी और उनके जिद्दी स्वभाव के चलते आपस में रिश्ता सुधरने की कोई गुन्जाईस भी नहीं थी. घर के लोगों के साथ साथ उसने भी शुरू के सालों में उनके साथ सम्बन्ध सुधारने की कोशिश की लेकिन हर बार बात और खराब होती गयी. सब लोग उसे समझाते कि चाचाजी का स्वभाव ही ऐसा है, उनकी सोच के उलट कुछ भी करने की मत सोचो. लेकिन उसे आत्मसम्मान को लगी ठेस ने उसे उनसे बहुत दूर कर दिया.
आग पूरा जोर पकड़ चुकी थी और अब चाचाजी का जलता शरीर उसे दिखाई दे रहा था. उसके मन में भी चाचाजी को लेकर जो विरोध था, उसपर धीरे धीरे मंथन चल रहा था. अचानक चटाक की आवाज आयी, उसने देखा आग से कोई हड्डी चटक कर टूट गयी. एकदम से उसकी आंख में पानी आ गया, उसके मन में जमी हुई बर्फ भी चटक गयी. धीरे से उसने जलती हुई चिता की तरफ अपने हाथ जोड़े और वापस घरवालों की तरफ चल दिया.


मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 864

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on October 9, 2018 at 2:00pm

रचना के मर्म तक पहुंचकर विस्तृत टिपण्णी करने के लिए बहुत बहुत आभार आ डॉ विजय शंकर साहब

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 8, 2018 at 10:38pm

बात बहुत गहरी है , जीवन में एहसास बहुत जरूरी है , इस एहसास पूर्ण कथा के लिए बधाई, आदरणीय विनय कुमार जी , सादर।

Comment by विनय कुमार on October 8, 2018 at 6:17pm

रचना के मर्म को समझकर टिपण्णी के लिए बहुत बहुत आभार आ नीलम उपाध्याय जी

Comment by विनय कुमार on October 8, 2018 at 6:17pm

रचना के मर्म को समझकर टिपण्णी के लिए बहुत बहुत आभार आ मुहतरम जनाब समर कबीर साहब

Comment by विनय कुमार on October 8, 2018 at 6:16pm

बहुत बहुत आभार आ लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहब

Comment by विनय कुमार on October 8, 2018 at 6:15pm

रचना के मर्म को समझकर उस पर विस्तृत टिपण्णी के लिए बहुत बहुत आभार आ मोहम्मद आरिफ साहब

Comment by विनय कुमार on October 8, 2018 at 6:15pm

रचना के मर्म को समझकर उस पर विस्तृत टिपण्णी के लिए बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी

Comment by विनय कुमार on October 8, 2018 at 6:14pm

रचना के मर्म को समझकर उस पर विस्तृत टिपण्णी के लिए बहुत बहुत आभार आ शेख शहज़ाद उस्मानी साहब

Comment by Neelam Upadhyaya on October 8, 2018 at 12:17pm

आदरणीय विनय कुमार जी, अच्छी भावपूर्ण  लघुकथा हुई है।  इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Mohammed Arif on October 8, 2018 at 11:12am

आदरणीय विनय कुमार जी आदाब,

                             मरणोपरांंत केवल पश्चाताप का ही तो दाह-संस्कार शेष रहता है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ हैंं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
5 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service