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श्री लता को अचानक ऑय सी यू में भर्ती कराने की ख़बर सुन रानी अपने दफ़्तर से निकल, आनन् फ़ानन में कुछ इस तरह गाड़ी चलाते हुए अस्पताल की तरफ लपकी, जैसे वो अपनी बहन को आखिरी बार देखने जा रही हो। श्री लता कमरा नंबर १० जो की ऑय सी यू वार्ड था में भर्ती थी। दर और घबराहट के साथ रीना रिसेप्शन पर पहुंची और पहुँचते ही उसने डॉक्टर की सुध ली।

मैडम, डॉक्टर साहेब तो जा चुके हैं, आप कल आइएगा। 

ये सुनना था कि रानी का कलेजा मुँह को आ गया। मेरी बहन अभी कुछ समय पहले ही ऑय सी यू में भर्ती हुई है, श्री लता। वो ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रही है और डॉक्टर साहेब ग़ायब हैं। वो गुस्से में बोली - मेरी फ़ोन पर बात कराइये।  अपनी घडी की तरफ़ इशारा करते हुए वो बोली - 'अभी तो आठ भी नहीं बजे भाईसाहब, इतनी जल्दी कैसे डॉक्टर साहेब मरीज़ो को नज़रअंदाज़ करके जा सकते हैं ?'

मैडम ! उनके बेटे का आज जन्मदिन था इसलिए वो  थोड़ा जल्दी चले गए। आप कहें तो मैं आपकी बात जूनियर डॉक्टर से करवा दूँ जो कि आपकी बहन के ट्रीट्मेंट में डॉक्टर साहेब के साथ थे ?

जी हाँ।  जल्दी करवाइये, रीना के मन में भयंकर उथल पुथल चल रही थी, वो अपनी बाकि की दो बहनों और दो भाइयों में सबसे ज़्यादा श्री लता से ही नज़दीक थी। रीना सब जानती थी। अपनी सारी उलझनों के साथ वो डॉक्टर के केबिन में ऊँगली में दुपट्टे का कोना मरोड़ते हुए दाख़िल हुई ।

डॉ सिद्धार्थ राणे अपने केबिन में बैठे किसी एक्स रे का मुआयना कर रहे थे। रीना ने डॉक्टर को अपना परिचय दिया और बड़ी ही बदहवासी से अपनी बहन की स्तिथि के बारे में जानना चाहा। डॉक्टर के हाव भाव निराशाजनक देख रीना उतावली सी हो उठी।  इससे पहले की डॉक्टर साहेब कुछ कह पाते एक नर्स भागती हुई डॉक्टर के केबिन में घुसी।

डॉक्टर - रूम नंबर १० का मरीज़। बस इतना सुनना था कि  रानी की आंखें नम हो गयीं पर आँसू नहीं छलकने दिए उसने।  वो भी नर्स और डॉक्टर के पीछे हो ली। तभी सामने से समीर आता नज़र आया, उसे देखते ही रानी के क़दम अनायास ही रुक गये,उसकी आँखों के सामने जैसे कुछ दृश्य आ गये हों । समीर के पास आने पर उसने पूछा - बेटा ! सच बता मम्मी के साथ क्या किया तुम सबने ? सुहेल कहाँ है ? तुम्हारा बाप कहाँ मर गया जाकर ? उसे तो जेल में सडाऊंगी।

मॉसी, मुझे तो कुछ पता नहीं।  मैं तो दूध लेने गया था। रानी ने छह फुट अपने से भी क़द में ऊँचे भांजे को दो चांटे जड़ दिए। अभी वो खुद को संभाल भी नहीं पायी थी की दो और जूनियर डॉक्टर्स और नर्सेज और अटेंडेंट्स का जमावड़ा कमरा नंबर १० की तरफ लपका।कुछ पलों के लिये जैसे सन्नाटा छा गया। ये क्या था ! एक एक करके पूरी टीम के मेम्बर्स कमरा नंबर १० से ऐसी ख़ामोशी से निकले कि  रानी के पैरों तले ज़मीन ख़िसक गयी और वो वहीं धराशायी हो गयी।

"मौलिक व् अप्रकाशित"  

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Comment

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Comment by Usha on June 4, 2018 at 5:46pm

आदरणीय सुश्री नीलम जी ,
मेरे इस छोटे से लेख पर प्रोत्साहन भरी टिप्पणी के लिये आपका बहुत आभार। बेशक़ हैरान होती हूँ कि आज भी इस तरह की प्रताड़नायें समाज में कम होने का नाम ही नहीं ले रही। आपने मेरे इस भाव को सराहा, उसके लिए आपको हृदय से धन्यवाद ज्ञापित करती हूँ। सादर।

Comment by Neelam Upadhyaya on June 4, 2018 at 12:09pm

महिलाओं के साथ अक्सर ससुराल में दुर्व्यवहार होता है और उनके साथ ही दुर्घटनाएँ घटती हैं । कभी ससुराल की महिलाओं के साथ इस तरह दुर्घटना नहीं होती । सामाजिक कुरीतियों पर बहुत ही करारा व्यंग्य है लघु कथा में । आदरणीया उषा जी, बेहतर रचना के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by Usha on June 2, 2018 at 6:40pm

आदरणीय महेंद्र कुमार जी

आपके सुझाव मेरे लेखन को और सुदृण करने के लिए अति महत्वपूर्ण हैं। जी बिल्कुल, आय सी यू की बात की पुनरावृत्ति हो गयी है। तथा क्या हुआ उस भाव को और सशक्त किया जा सकता था। आप सभी के सुझावों व् अनुभवों से आशान्वित हूँ की भविष्य में और अच्छा लेखन कार्य कर पाऊँगी। आपके हृदय से धन्यवाद करती हूँ सर। सादर।

Comment by Mahendra Kumar on June 2, 2018 at 6:25pm

आपकी लघुकथा पर आदरणीय विजय शंकर जी की समीक्षात्मक टिप्पणी के बाद बहुत कुछ कहना शेष नहीं रह जाता. आपकी लघुकथा अच्छी है और पाठक को अन्त तक बांधे रखती है. आपने ससुराल में महिलाओं के साथ होने वाली दुर्घटनाओं को उठाकर आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था पर अच्छा व्यंग्य किया है. मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. 

1. //श्री लता को अचानक ऑय सी यू में भर्ती कराने की ख़बर सुन// जब यहाँ पर श्रीलता के आईसीयू में भर्ती होने की बात स्पष्ट हो चुकी है तो यहाँ उसके दोहराव की क्या आवश्यकता है? //श्री लता कमरा नंबर १० जो की ऑय सी यू वार्ड था में भर्ती थी।//

2. रानी की बहन श्रीलता के साथ क्या हुआ था या क्या हुआ होगा? इसे थोड़ा और स्पष्ट किया जा सकता है.

सादर.

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 2, 2018 at 5:10pm

अचानक गंभीर बीमारी , अस्पताल और अस्पतालों में आवश्यक गम्भीरताओं के प्रति अभाव पूर्ण व्यवहार कुछ सामान्य से होते जा रहे हैं। आदमी चिकित्सालयों से उलझे या अपने ही परिवार और रिश्तेदारों से ? सबकुछ असंतुलित सा होता जा रहा है। बात आई सी यू की हो या ओ पी डी की , सीनियर डॉक्टर्स पांच मिनट भी देदें तो बड़ी बात। वे मरीज से कम अपने स्टाफ से अधिक बात करते हैं। मरीज के अटेंडेंट्स को तो कोई जवाब भी नहीं देते हैं , बल्कि हिदायतें इतनी देते हैं जैसे सारी जिम्मेदारी उसी की है। रोजमर्रा की जिन्दंगी में आने वाली आपात कालीन स्थिति को एक लघु - कथा के रूप में बहुत ही सशक्त प्रस्तुति मिली है और कथा में जिज्ञासा भी अंत तक बनी रहती है। अंत में लघु- कथा का शीर्षक , 'आखिर कब तक ', एक गंभीर प्रश्न बन हर पाठक के सामने उभर कर रह जाता है।
आदरनीण सुश्री उषा जी इस भावपूर्ण सशक्त प्रस्तुति के लिए बधाई , सादर।

Comment by Usha on June 2, 2018 at 5:02pm

आदरणीय विजय शंकर सर,
मेरी कहानी में जो दूसरा पहलू था वह भी ज़ाहिर हो पाया और आपने सराहा, उसके लिए में आपका सादर धन्यवाद करती हूँ। आपकी बधाई भविष्य में और अच्छी प्रस्तुति देने के लिए प्रेरणास्पद है।
सादर।

Comment by Usha on June 2, 2018 at 4:00pm
आदरणीय बबिता जी ,
आपकी सराहना के लिये दिल से धन्यवाद ज्ञापित करती हूँ।
लघु कथा की श्रेणी में यह मेरा दूसरा प्रयास है। धन्यवाद।
Comment by babitagupta on June 2, 2018 at 3:29pm

मानसिक प्रताड़ना की शिकार श्रीलता की सहनशीलता का परिणाम मौत ही निकला.भावपूर्ण,सम्वेदनात्मक रचना ,प्रस्तुत रचना पर बधाई स्वीकार कीजिएगा.आदरणीया ऊशादी.

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