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ग़ज़ल जला गया जो गली से अभी गुजर के मुझे

1212 1122 1212 22

सिला दिया है मेरे दिल में कुछ उतर के मुझे ।
जला गया जो गली से अभी गुजर के मुझे ।।

किया हवन तो जला हाथ इस कदर अपना ।
मिले हैं दर्द पुराने सभी उभर के मुझे ।।

तमाम जुल्म सहे रोज आजमाइस में ।
चुनौतियों से मिली जिंदगी निखर के मुझे ।।

अजीब दौर है किस किस की आरजू देखूँ ।
बुला रही है क़ज़ा भी यहाँ सँवर के मुझे ।।

मिटा रहे हैं मुहब्बत की हर निशानी को।
दिखा रहे थे जो छाले कभी जिगर के मुझे ।।

नई है बात नहीं हादसों पे क्या डरना ।
हादसे खूब मिले हैं ठहर ठहर के मुझे ।।


बड़ा यकीन था जिस पर मुझे भी मुद्दत तक।
दिखा गया वो शराफत की जद मुकर के मुझे ।।

करीब आना मयस्सर नही हुआ उसको ।
वो देखता ही रहा बस निगाह भर के मुझे ।।


जला रहे थे मेरे घर को जो हवा देकर ।
वो दे रहे हैं सफाई गुनाह कर के मुझे ।।

सुना है हिज्र की तारीख़ आ रही है अब ।
खबर बता के गया है कोई सिहर के मुझे ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on January 18, 2018 at 9:26pm

वाह लाजबाब अशआर, बेहतरीन गजल के लिए बहुत बहुत बधाई आपको 

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