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*1212 1212 1212 1212*
सितम की आरजू लिए है वक्त आजमा रहा ।
जो हो सका नहीं मेरा वो रास्ता बता रहा ।।

अजीब दास्ताँ है ये न् कह सका न् लिख सका।
ये हाथ मिल गए मगर वो फासला बना रहा ।।

है हसरतों की क्या ख़ता उन्हें जो ये सजा मिली ।
मैं कातिलों का रात भर गुनाह देखता रहा ।।

बड़ी उदास शब दिखी न् माहताब था कहीं ।
वो कहकशां सहर तलक हमें ही घूरता रहा ।।

जो सिलसिला चला नही उसी का जिक्र फिर सही ।
धुँआ उठा बहुत मगर न आग का पता रहा ।।

शजर शजर में गुफ्तगूं है बगवां को क्या खबर ।
बगावतों का दौर है वो कारवां चला रहा ।।

खुदा समझ सका न् वो अलग हुईं इबादतें ।
है मजहबी दयार ये खुदा जुदा जुदा रहा ।।

नज़र को फेर हमनशीं गुजर गया करीब से ।।
बदल गए मिज़ाज सब वफ़ा का सर झुका रहा ।


हवा ने रुख बदल दिया तो आग भी सुलग गई ।
वतन का खैर ख्वाह ही वतन को अब जला रहा ।।

हजार घर उजड़ गए तमाम लाश जल गयीं ।
सियासतों के नाम पर वो मसअला खड़ा रहा ।।

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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Comment by Naveen Mani Tripathi on June 13, 2017 at 10:17am
आदरणीय आरिफ़ साहब तहे दिल से शुक्रिया ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on June 13, 2017 at 10:16am
आदरणीय गुरुप्रीत जी आपके स्नेह के लिए आभारी हूँ ।
Comment by Gurpreet Singh jammu on June 13, 2017 at 10:00am

आदरणीय नवीन जी बहुत अच्छी ग़ज़ल लगी आपकी,,, इस बह्र में बिना ज़्यादा अक्षरों  का वज़न गिराए जिस तरह से आप ने इसे निभाया है ,,वो बहुत ही प्रभावित क्र रहा है,, बहुत बधाई आपको 

Comment by Mohammed Arif on June 11, 2017 at 10:00pm
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, बहुत अच्छी ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें । कुछ अशुद्धियाँ हैं जैसे-आरजू=आरज़ू,आजमा=आज़मा,वक्त=वक़्त,सजा=सज़ा,कातिलों=का क़ातिलों,नही=नहीं,जिक्र=ज़िक्र,खबर=ख़बर,बगावतों=बग़ावतों,खैर ख्वाह=ख़ैर ख़्वाह इन्हें दुरुस्त कर लें ।

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