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ग़ज़ल - हर मयकशी के बीच कई सिलसिले मिले

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हर मयकशी के बीच कई सिलसिले मिले ।
देखा तो मयकदा में कई मयकदे मिले ।।

साकी शराब डाल के हँस कर के यूं कहा।
आ जाइए हुजूर मुकद्दर भले मिले ।।

कैसे कहूँ खुदा की इबादत नहीं वहां ।
रिन्दों के साथ में भी नए फ़लसफ़े मिले ।।

यह बात और है की उसे होश आ गया ।
वरना तमाम रात उसे मनचले मिले ।।

जिसको फ़कीर जान के लिल्लाह कर दिया ।
चर्चा उसी के घर में ख़ज़ाने दबे मिले ।।

मुझ से न पूछिए कि ज़माने से क्या मिला ।
बदले मिज़ाज़ ले के बहुत सिरफ़िरे मिले ।।

पीना गुनाह था तो शराफ़त क्यूँ छोड़ दी ।
कुछ दाग उसूलों में बड़े बेतुके मिले ।।

बेचैनियाँ सबूत हजारों बता गयीं ।
अक्सर ही सिलवटों में तेरे बिस्तरे मिले ।।

क़ातिल तेरी निगाह में कुछ ख़ासियत तो है ।
दीवानगी में लोग बड़े गमज़दे मिले ।।

हुस्नो शबाब भर के जो बोतल उछाल दी ।
साकी शरीफ़ लोग शराफ़त कटे मिले ।।

--- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on October 19, 2016 at 8:03pm

आदरनीय नवीन भाई , अच्छी गज़क कही आपने , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें ।

आदरनीय लिल्लाह वाले शेर के विषय मे आ. समर भाई जी से मै भी सहमत हूँ , देखियेगा !

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 19, 2016 at 6:58pm
आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण साहब तहेदिल से शुक्रिया ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 19, 2016 at 6:55pm
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ कुश क्षत्रप साहब हृदय से आभार
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 18, 2016 at 4:59pm
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी खूबसूरत गजल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by नाथ सोनांचली on October 18, 2016 at 4:28am
आदरणीय नवीन मनी त्रिपाठी जी सादर अभिवादन, अच्छी गजल के लिए मेरी दिली मुबारकबाद कबूल करें।
Comment by Samar kabeer on October 17, 2016 at 7:18pm
भर्ती का शब्द यानी, जो शब्द शैर या मिसरे का वज़्न पूरा करने के लिये इस्तेमाल किया जाये और वो कोई अर्थ न दे रहा हो ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 17, 2016 at 5:44pm
आ0 कबीर साहब सादर नमन ।
जी हाँ काफ़िया दोष आ गया है जल्दबाजी में ध्यान नही दे पाया । आ जाइए हुज़ूर मुकद्दर भले मिले । अब ऐसा पढ़ना है । दूसरी बात सर यह भर्ती का शब्द क्या होता है मैं समझ नही पाया थोडा स्पष्ट कर दीजिये जिस से सुधार करने में मुझे सुगमता हो ।
Comment by Samar kabeer on October 17, 2016 at 5:21pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
दूसरे शैर में क़ाफ़िया दोष है ।
पांचवें शैर में 'लिल्लाह' शब्द भर्ती का है ।
सातवें शैर में 'दफे' शब्द सही नहीं,सही शब्द है "दफ़ा",देखिएगा ।

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