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ह्रदय की कोमलता मत खो देना.

जग की कटुता देख, ह्रदय की कोमलता मत खो देना.
मधुमास सुबास सुमन तन की, हर इक सांसों में भर देना.
तेरे होठों की लाली से, उषा का अवतरण हुआ.
तेरी जुल्फों की रंगत से, ज्योति का अपहरण हुआ.
अपने खंजन- नयन में रम्भे, अश्रु कभी मत भर लेना.
मधुमास सुबास सुमन तन का, हर इक साँसों में भर देना.
पाता है रवि रौनक तुमसे, चाँद- सितारे शीतलता.
पवन सुगंध- हिरण चंचलता, रसिक - नयन को मादकता.
जग को मिलता प्राण तुम्हीं से, तुम्हे जगत से क्या लेना.
मधुमास सुबास सुमन तन का, हर इक साँसों से भर देना.
तेरी प्रेरणा से ही हमने, कर में कलम उठाया है.
तेरा चुम्बन तम में लौ बन, मंजिल- मार्ग दिखाया है.
तुम्हीं प्रेयसी- तुम्हीं ख़ुशी हो, हमें अधीर न कर देना.
मधुमास सुबास सुमन तन का, हर इक साँसों में भर देना.
हम-तुम दोनों मिलकर के, एक प्रीत का गाँव बसायेंगे.
मापतपुरी दुखी ये जग, इसको भी कुछ दे जायेंगे.
बैर है बैरी- प्रीत मीत है, सबको सबक सिखा देना.
मधुमास सुबास सुमन तन का, हर इक साँसों में भर देना.
गीतकार- सतीश मापतपुरी
मोबाइल- 9334414611

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Comment

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Comment by baban pandey on June 24, 2010 at 10:55am
तेरी जुल्फों की रंगत से, ज्योति का अपहरण हुआ.
अपने खंजन- नयन में रम्भे, अश्रु कभी मत भर लेना.......waah...kya line hai bhai...main to fida hua bhai...pahli baar ye lines padha hai badhai
Comment by Kanchan Pandey on June 23, 2010 at 10:53pm
Satish jee, aapki pratyek rachna ek sey badhkar ek hai, yey rachna bhi kafi achhi hai, kafi sunder rachna likhey hai aap, Thanks for this post,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 23, 2010 at 10:39pm
पाता है रवि रौनक तुमसे, चाँद- सितारे शीतलता.
पवन सुगंध- हिरण चंचलता, रसिक - नयन को मादकता.
जग को मिलता प्राण तुम्हीं से, तुम्हे जगत से क्या लेना.
मधुमास सुबास सुमन तन का, हर इक साँसों से भर देना.

सतीश भईया तारीफ के लिये शब्द नही मिल रहे है, बहुत ही बेहतरीन रचना है यह, शब्दो का इतना सुंदर प्रयोग हुआ है कि बार बार पढ़ने को मन करता है, बधाई है आपको, और मैं नमन करता हू आपके सृजनता को,
Comment by Rash Bihari Ravi on June 23, 2010 at 5:15pm
हम-तुम दोनों मिलकर के, एक प्रीत का गाँव बसायेंगे.
मापतपुरी दुखी ये जग, इसको भी कुछ दे जायेंगे.

jai ho kya bat hain bahut badhiaa

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