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इस बार भी (लघुकथा)

“हर साल भाई को राखी डाक से भेज देतीं हूँ,. इस बार सोच रहीं हूँ उसकी कलाई पर बांधने चली जाऊँ.” विमला ने सकुचाते हुए अपने मन की बात पति कही.
पति की चुप्पी को अनुमोदन जान आगे बोल उठी:

“आप चिंता मत करो मैंने कुछ रूपये बचा कर रखें हैं, फल मिठाई और भाई के लिए एक कमीज आराम से आ जायेगी आप बस आने जाने का टिकट करा देना मेरा. सुबह जाकर रात तक वापस आ जाऊँगी.”
पति को अब भी चुप देख पूछ बैठी:

“क्या कहते हो, चली जाऊँ?”
पति ने अपने हाथ में पकड़ा हुआ खत उसकी ओर बढ़ा दिया, जो उसकी नवब्याहता बहन ने अपनी ससुराल से भेजा था.पहली राखी ससुराल में मना रही बहन ने अपने भाई को बुलाया था.
विमला ने उठ कर रोली चावल की पुडिया के साथ राखी का धागा लपेट लिफाफे में रख लिया था.इस बार राखी फिर डाक से भेजने के लिए...

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Seema Singh on August 14, 2016 at 9:11pm
आपकी सराहना से मंत्रमुग्ध हूँ सर। हृदय से आभार।
Comment by Ravi Prabhakar on August 14, 2016 at 7:34pm

बहुत ही सार्थक रचना है सीमा जी । आर्थिक अभावों से जूझते मध्‍यमवर्गीय परिवाराें की यथार्थपरक स्‍िथती को सहज, सरल-स्‍वभाविक शैली में  जिस कसावट से प्रस्‍तुत किया है वह चकित कर गया। हालांकि कथ्‍य नया नहीं है परन्‍तु प्रस्‍तुतिकरण के नयेपन से जो प्रभाव रोपित किया है वह आश्‍वस्‍त करता है। शुभकामनाएं स्‍वीकारें ।

Comment by Seema Singh on August 13, 2016 at 11:01pm
शुक्रिया आप सबका ।
Comment by Nita Kasar on August 13, 2016 at 9:06pm
एक दूजे की संवेदनायें समझती है महिलायें,नायिका की दिलेरी ने मन मोह लिया कथा के लिये बधाई आद०सीमा सिंह जी ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 13, 2016 at 12:46pm
बहुत सुंदर रचना आदरणीया सीमा सिंह जी।खत का महत्व हर दौर में है।भले ही तकनीक ने उसका स्वरूप बदल दिया है।अपनी नवविहाता नन्द की भावनाओं को बखूबी समझते हुए सही फैंसला लिया नायिका ने।हार्दिक बधाई इस सुंदर रचना के लिए।
Comment by Rahila on August 12, 2016 at 9:57pm
बहुत प्यारी सी रचना। ये सावन और राखी के पावन त्यौहार पर जाने कितनी ही बहनें इस दौर से गुजरेंगी।बहुत बधाई इस सुंदर रचना के लिए आदरणीया दीदी!सादर
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 12, 2016 at 5:17pm
अक्सर यही होता है । अच्छी कथा आदरणीया सीमा जी ।बधाई ।

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