For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रतिभा का सम्मान--

"सर, ये लिस्ट एक बार देख लीजिए| कमेटी ने तो पास कर दिया है, बस आपका अप्रूवल चाहिए", मुख्य अधिकारी ने तीन पन्ने की लिस्ट उनके सामने रख दी|
"हूँ, अच्छा मैंने जो नाम कहे थे, वो सब तो हैं ना इसमें", एक गहरी नज़र मुख्य अधिकारी के चेहरे पर डाली उन्होंने|
"हाँ सर, वो सब तो हैं ही, आप एक बार देख लीजिए", मुख्य अधिकारी ने हकलाते हुए कहा|
"ठीक है, लिस्ट छोड़ जाओ, मैं देख लूंगा", अभी भी उन्होंने लिस्ट की तरफ नज़र भी डालने की जहमत नहीं उठाई थी|
"ओ के सर" बोलकर मुख्य अधिकारी जाने के लिए मुड़ा|
"वैसे रिजल्ट आज ही निकालना था क्या", उन्हें कुछ याद आया|
"हाँ सर, पिछले तीन दिन से टल रहा है और चार बार बदला जा चुका है", मुख्य अधिकारी को थोड़ी हिम्मत आ गयी|
"तो पहले नहीं ला सकते थे, रात के ९ बज रहे हैं", उनका लहज़ा एक बार फिर सख्त हो गया|
"सर, तीन बार आया था दिन में लेकिन आप लौटे नहीं थे मीटिंग से", मुख्य अधिकारी ने पसीना पोंछते हुए कहा|
"ठीक है, एक घंटे बाद आ जाना", और वो अपनी कुर्सी पर आराम की मुद्रा में हो गए| मुख्य अधिकारी जल्दी से कमरे से बाहर निकल गए|
थोड़ी देर बाद उन्होंने ऑंखें खोली और इण्टरकॉम पर कॉफी के लिए कहा| कॉफी पीते पीते उन्होंने लिस्ट उठाई और एक नज़र डालने लगे| तीन साल होने को आये थे उनको इस संस्था में और सीनियर पोजीशन में जो लोग थे उनके बारे में पता चल चुका था उनको| कुछ को तो व्यक्तिगत रूप से पसंद करते थे और कुछ के लिए मंत्रालय से सिफारिश आई थी, जिनके नाम उन्होंने लिख के दे दिए थे| बाकी लोग भी जाने सुने होंगे, ये सोचते हुए उन्होंने लिस्ट के पहले पन्ने के नामों को पढ़ना शुरू किया| पहले बीस नाम तो उन्हीं के दिए हुए थे लेकिन उसके बाद के नाम उन्होंने जैसे जैसे पढ़ना शुरू किया, उनके चेहरे पर तनाव छाने लगा| दूसरा पन्ना भी उन्होंने देख डाला और जब तीसरे पन्ने को भी पढ़ लिया और बचे हुए अधिकांश नामों से मुश्किल से कुछ नाम याद आये तो उन्हें अजीब लगा|
इण्टरकॉम पर उन्होंने मुख्य अधिकारी को तलब किया और जैसे ही मुख्य अधिकारी आये, वो उबल पड़े| "ये किस किस का नाम लिख रखा है आपने लिस्ट में, मैं तो इनमे से अधिकांश को जानता तक नहीं"|
"सर, मैंने अपने मन से कुछ भी नहीं लिखा है इसमें| ये तो कमेटी ने फाइनल किये हैं", बोलते हुए मुख्य अधिकारी के मन का दर्द उनके चेहरे पर छलक आया| दो नाम उन्होंने भी कहे थे, लेकिन कमेटी ने उनको किनारे कर दिया था| एक तो उनके ससुराल की दूर की रिश्तेदारी का भी था और वो यही सोच रहे थे कि लिस्ट निकलने के बाद घर में श्रीमतीजी को क्या जवाब देंगे|
"अभी कमेटी के कितने लोग हैं यहाँ पर", उन्होंने पूछा|
"सर, एक को छोड़कर सब हैं यहाँ", मुख्य अधिकारी ने अटकते हुए कहा|
"ठीक है, सबको भेजो मेरे पास और जो नहीं है, उसे भी बुला लो तुरंत"|
"राइट सर, अभी भेजता हूँ", और मुख्य अधिकारी बाहर निकल गए| उन्हें अच्छा लग रहा था कि एक बार फिर कुछ फेरबदल होगा लिस्ट में और कहीं उनके एक आदमी का नाम भी घुस जाए तो इज़्ज़त बच जाएगी घर में| वाईस प्रिसिडेंस के केबिन में घुसते हुए उन्होंने बताया कि बॉस ने लिस्ट के बारे में कुछ पूछने के लिए बुलाया है और बाकी लोगों को बताने चल दिए|
वाईस प्रेजिडेंट ने बॉस के कमरे में प्रवेश किया और बॉस के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करने लगे| बॉस ने बैठने का इशारा किया और लिस्ट उनके आगे खिसका दी| वाईस प्रेजिडेंट समझ चुके थे कि माजरा क्या है और उन्होंने लिस्ट उठाते हुए कहा "कोई और नाम जोड़ना है सर, आप बता दीजिये, चेंज कर देते हैं"|
"नहीं, बात वो नहीं है| इसमें से अधिकांश को तो मैं जानता भी नहीं हूँ, किस आधार पर फाइनल किया है आप लोगों ने ये नाम", बॉस के लहज़े में मुलायमियत नहीं थी|
"सर, आप तो जानते ही हैं कि कितनी सिफारिश आती है| अब हर कोई आप से तो कह नहीं सकता, कुछ लोग मुझसे कहते हैं, कुछ कमेटी के बाकी लोगों से| अब उन नामों में से ही हम लोग आपसी सहमति से नाम फाइनल करते हैं", वाईस प्रेजिडेंट ने बात साफ़ कर दी|
"तो क्या कोई नाम ऐसा नहीं होता जिसकी वजह उसकी परफॉरमेंस हो", बॉस के चेहरे पर चिंता की लकीर छा गयी|
"नहीं सर, ऐसा भी नहीं है| हम लोग आपकी लिस्ट के बाद बचे नामों से १० प्रतिशत नाम उन लोगों के लिए रख देते हैं, जो परफॉरमेंस के चलते डिज़र्व करते हैं", वाईस प्रेजिडेंट ने बड़े उत्साहित स्वर में कहा| अब तक कमेटी के बाकी लोग भी आ चुके थे और उन्होंने वाईस प्रेजिडेंट की बातों का समर्थन किया|
बॉस थोड़ी चिंता में डूब गए, सबकी निगाहें उनके चहरे पर टिकी थीं| उनके मन में तमाम विचार आ जा रहे थे, इस तरह से तो काम करने वाले लोग बिलकुल हतोत्साहित हो जायेंगे|
"लेकिन ये लिस्ट जब आप लोग निकालेंगे तो लोगों को तो लग ही जायेगा कि परफॉरमेंस का कोई मतलब नहीं रह जाता| पिछले साल तो कॉफी परफॉर्मर्स को हमने आगे बढ़ाया था", बॉस ने पेपर वेट घुमाते हुए कहा|
"सर, पिछले साल कितनी दिक्कत हुई थी हमें मंत्रालय और तमाम सिफारिश करने वालों को समझाने में| इस बार हम कोई चांस नहीं ले सकते, वैसे भी आपको भी तो दूसरे निकाय में जाना है और उसका निर्णय तो मंत्रालय ही करता है", वाईस प्रेजिडेंट ने अपना तुरुप का इक्का चल दिया| पिछले साल उनके कई लोग रह गए थे और इस साल उन्होंने कॉफी लोगों को एडजस्ट कर दिया था लिस्ट में| कमेटी के बाकी लोग भी लगभग संतुष्ट ही थे, उनके लोग भी ठीक ठाक संख्या में आ गए थे|
बॉस एक बार फिर सोच में डूब गए, कमेटी के लोग बेसब्री से उनके चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रहे थे| अचानक वाईस प्रेजिडेंट को कुछ याद आया और उन्होंने एकदम से कहा "सर लिस्ट को निकालते समय हम लोग एक काम करेंगे, हर सात आठ नाम के बाद एक परफ़ॉर्मर का नाम डाल देंगे जिससे लोगों को पढ़ते समय बहुत अजीब भी नहीं लगेगा| और बाकी नाम भी तो अपने संस्था के ही लोगों के हैं तो कोई ये तो कह नहीं सकता कि हमने बाहरी लोगों को बढ़ावा दिया है"|
बॉस को बात कुछ जम गयी, वो भी मंत्रालय से पंगा लेने के मूड में नहीं थे| आखिर इस साल उनकी भी पोस्टिंग का फैसला होने वाला था और साथ ही साथ उनके लोग भी थे ही लिस्ट में| उन्होंने पानी का ग्लास उठाया और उसे खाली करते हुए बोले "ठीक है, लिस्ट पर मेरी भी सहमति है, लेकिन रात १२ बजे के बाद ही इसे डालना| और कोई रिप्रजेंटेशन आये तो उसे आप लोग ही सम्भाल लेना" कहते हुए उन्होंने लिस्ट पर हस्ताक्षर किये और उठ खड़े हुए| वाईस प्रेजिडेंट और कमेटी के लोग भी खड़े हुए और मुस्कुराते हुए बाहर निकल गए|
मुख्य अधिकारी ने देर रात लिस्ट वेबसाइट पर डाली और ऑफिस से निकल गए| आज की रात तो कट जाएगी लेकिन कल कैसे सामना करेंगे श्रीमतीजी का, यही सोचते हुए वो कार में बैठे और घर की तरफ चल पड़े| कंपनी के तमाम परफॉर्मर्स की किस्मत का फैसला हो चुका था और उसकी वेबसाइट पर रिजल्ट का इंतज़ार करते लोगों ने धड़ाधड़ लिस्ट डाउनलोड करना शुरू कर दिया था|
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 512

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on July 5, 2016 at 12:48am

बहुत बहुत आभार आ राजेश कुमारी जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 4, 2016 at 9:00pm

बहुत कुछ सच्चाई है आपकी इस कहानी में .बहुत अच्छा कथानक चुना है जो विचारणीय है |हार्दिक बधाई विनय कुमार जी 

Comment by विनय कुमार on July 4, 2016 at 1:13pm

बहुत बहुत आभार आ राहिला जी, ये तो हम सब की कथा है 

Comment by Rahila on July 3, 2016 at 11:41am
बहुत सटीक कटाक्ष किया आपने आदरणीय सर जी!हम भुक्त भोगी है।ना जाने किस की नजरअंदाजी की सजा भोग रहे है। बहुत अपनी सी लगी रचना।बहुत बधाई आदरणीय सर जी!सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service