For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-66 की स्वीकृत रचनाओं का संकलन

श्रद्धेय सुधीजनो !

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-66, जोकि दिनांक 10 अप्रैल 2016 को समाप्त हुआ, के दौरान प्रस्तुत एवं स्वीकृत हुई रचनाओं को संकलित कर प्रस्तुत किया जा रहा है. इस बार के आयोजन का विषय था – “रास्ता/मार्ग”.

 

पूरा प्रयास किया गया है, कि रचनाकारों की स्वीकृत रचनाएँ सम्मिलित हो जायँ. इसके बावज़ूद किन्हीं की स्वीकृत रचना प्रस्तुत होने से रह गयी हो तो वे अवश्य सूचित करेंगे.

 

आयोजन के इस अंक के कुशल संचालन के लिए आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर का हार्दिक आभारी हूँ.

 

सादर

मिथिलेश वामनकर

मंच संचालक

(सदस्य कार्यकारिणी)

 

*****************************************************************

1. आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी

 राह : पाँच शब्दोद्गार (क्षणिकाएं)

=========================

१.

’होना या न होना’ की उधेड़बुन

बहुत वेग की भँवर बनाने लगे

तो नदी अपनी धार को

देर तक उलझे रहने नहीं देती..

किसी ओर बहा निकालती है ।

 

२.

राह अपने आप सुगम या दुर्गम नहीं होती..

निर्भर करता है आपकी निष्ठा कैसी है

आपका समर्पण कितना हैं ।

 

३.

राह बुलाती है

जब मंज़िल भ्रम नहीं रह जाता है..

 

४.

वर्षों उन लोगों के तानों ने

कैसी-कैसी राह सुझायी

नहीं तिक्तता, कभी क्षोभ भी..

बस तुम्हें बधाई, बहुत बधाई !

 

५.

पहुँचा तो फिर पाया भी क्या

पाया भी पर तोष नहीं था

जबतक चलते रहे, राह पर,

उम्मीदों में लक्ष्य कहीं था ।

-------------------------------------------------------------------------------

 

2. आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी

 ' रास्ते ' (अतुकांत)

=========================

 

मन को घेरे

वो सारे रास्ते जो कच्चे थे

जहां से मिट्टी उड़ाते

तुम कभी भी चले आते थे इधर

अब पक्के हो गए हैं

इक बारिश गिरी आँखों से

और तर हो जाते थे

ये रास्ते

और देर तक रहते थे गीले 

धूप का मुखौटा ओढ़े

मन पर छींटे उड़ाते हुए

तुम भी  खूब खेले

इस पानी में

अब ये कच्चे रास्ते

पट गए हैं कोलतार से

तुम्हारी संवेदनहीनता से बना

गर्म कोलतार

और बन गई है

पक्की काली नीरस सड़क

जहाँ आँसूओं का पानी

उड़ जाता है गर्मी से

सड़क के नीचे कच्चे रास्ते

सिसकते  हैं अब भी

अपना कच्चापन खोकर

बारिश के बाद उगने वाली हरियाली खोकर

पर चुनाव भी ज़रूरी है

कच्चे और पक्के रास्तों के बीच   

-------------------------------------------------------------------------------------------

 

3. आदरणीय डॉ टी.आर. शुक्ल जी

 ' पथ' (गीत)

=========================

 

ए एकाकी पथिक! तू मेरा अन्त नहीं पायेगा,

तू जहाँ रखेगा पाँव, मेरा अस्तित्व वहीं पायेगा।।

 

तू रुककर चाहे करे प्रतीक्षा साथी की,

तू बढ़कर चाहे करे परीक्षा जाति की,

तेरे आगे मैं विस्त्रित हो बढ़ता जाऊंगा,

तू मुड़ा अगर दायें बांयें, मुझको वैसा ही पायेगा।।

 

अपनों से विमुख हुए, अपनाये मैंने,

सपनों से रुदित हुए, बहलाये मैं ने,

चल आज तेरे त्रासों को अपना लूं मैं अब,

ना कर रे संकोच, मित्र तू मेरा हो जायेगा।।

 

अब नीर बहाना छोड़ अरे! आखों से,

पहचान मुझे, आ लग जा इन बाहों से,

तू मेरा है, मैं तेरा हॅूं , कोई मतभेद नहीं है,

मैं.. पथ हॅूं, बस तॅूं पथिक सदा मेरा कहलायेगा।

 

---------------------------------------------------------------------------

 

4. आदरणीय तस्दीक अहमद ख़ान जी

 (ग़ज़ल)

=========================

 

मंज़िलों का था किस को पता रास्ता |

उनके ही नक़्शे पा से मिला  रास्ता |

 

पा सका अपनी मंज़िल को वह कारवां

तै किया जिसने बिन रहनुमा रास्ता |

 

सूनी सूनी सड़क पर कोई भी न था

तेरा किस से भला पूछता  रास्ता |

 

लौट आने का वादा तो कर हमनशीं

उम्र भर देख लूंगा  तेरा  रास्ता |

 

मौत ही सिर्फ मंज़िल है उस शख़्स की

जिसने भी नफरतों का चुना रास्ता |

 

तर्के उल्फ़त का मत दीजिये मश्वरा

यह है जाने जहाँ आपका रास्ता |

 

जब ख़यालात ही अपने मिलते नहीं

यह तेरा रास्ता वह मेरा रास्ता |

 

कोई मरना नहीं चाहता है मगर

चाहे है हर कोई  खुल्द का रास्ता |

 

नेक बन्दे चले तेरे जिस राह पर

सिर्फ यारब मुझे वह दिखा रास्ता |

 

यह गवारा है तस्दीक़ दुनिया को कब

हम चलें मिल के उल्फ़त भरा रास्ता |

 

-------------------------------------------------------------------

 

5. आदरणीय पंकज कुमार मिश्रा ‘वात्सायन’ जी

 (छंदमुक्त)

=========================

 

सपनों की पालकी

मन का सवार

डोली को लेकर

चले हैं कहांर

 

"उत्साह-आशा, भय और निराशा"।।1।।

 

पथरीला रास्ता

सौर किरणों का वार

उस पर से जीवन का

अतिशय सा भार

 

"बेचैनी-उलझन व पीड़ा-हताशा"।।2।।

 

सुकुमार सपनों पर

लू का प्रहार

बेबस मन पर्दे से

करता दीदार

 

मजबूरी-लाचारी, कैसी पिपासा?3।।

 

प्रत्याशा जीने की

पुष्पन-विचार

ढँक कर स्वयं को

ढूंढें बहार!

 

बंधन औ क्रन्दन, कैसी हताशा?4।।

 

-----------------------------------------------------------

 

6. आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी

 बस एक मार्ग (कुण्डलिया छंद)

====================================

 

राह बेहतर है वही, पहुँचा दे गोलोक।

भक्ति मार्ग अपनाइये, मिले न फिर भूलोक॥

मिले न फिर भूलोक, न होगा जनम दुबारा।   

मिले कृष्ण का धाम, यही हो लक्ष्य हमारा॥  

दर्शन का शुभ लाभ, वहीं है और ना कहीं।

करो कृष्ण की भक्ति, राह बेहतर है वही॥          (संशोधित)

 

पश्चिम की नकल का कड़वा सच (ताटंक छंद)

=====================================

युवा वर्ग को होश कहाँ है, राह भटक वो जाते हैं।

आकर्षण को प्यार समझकर, गलत मार्ग अपनाते हैं॥

कैसी शिक्षा नीति देश की, युवा बिगड़ते जादा हैं।

लक्ष्मण रेखा कहीं नहीं है, ना कोई मर्यादा है॥

 

कुछ नशे कुछ होश में रहती, सुबह लौट घर आती हैं।

माँ से सच्ची बात छुपाकर, सखियों को बतलाती हैं॥

हे मम्मा हे डैड सोचिए, धन किसलिए कमाना है ?

किये न बच्चों को संस्कारित, कहते नया जमाना है॥

 

स्वच्छंदता रोग ऐसा है, जिसकी नहीं दवाई है।

बिन ब्याहे रहने लगती पर, अंत बहुत दुखदाई है॥        (संशोधित)

रखैल सी हो गई जिन्दगी, रो रो कर पछ्ताएगी।

बंद एक दिन दरवाजा कर, छोड़ सभी को जाएगी।।

--------------------------------------------------------------------------

 

7. आदरणीय शिज्जू ‘शकूर’ जी

 (ग़ज़ल)

====================================

था यहीं तक मेरी साँसों का सफ़र

अब तो मैं हूँ और यादों का सफ़र

 

कितनी ही सदियाँ ग़ुज़र जाती हैं पर

खत्म कब होता है राहों का सफ़र

 

‘मिल’ के अंदर की मशीनों पर हुआ

ख़त्म कल के हम जुलाहों का सफ़र

 

पाँव अब जलने लगे दोनों मेरे

मुख़्तसर था वो बहारों का सफ़र

 

दरमियाँ ख़तरों के होता है तमाम

कश्तियों, बेड़ों, जहाजों का सफ़र

 

ख़्वाब को सीढ़ी बना मैंने किया

घर की छत से आसमानों का सफ़र

 

दूसरों के दर्द पर ज़िंदा हैं जो

उनको रास आये दवाओं का सफ़र

----------------------------------------------------------------------

 

8. आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी

रास्ते और भीड़ (अतुकांत)

====================================

रास्ते , कैसे कैसे ,

कितने और

कितने अजीब होते हैं ,

लोग भी कैसे-कैसे

और कितने साहसी होते हैं ,

अकेले ही निकल पड़ते हैं ,

कोई दुनियाँ खोज लाया ,

कोई नई दुनियाँ खोज लाया ,

कोई दुनियाँ के पार हो आया .....

 

बस ! नहीं पार पाया

 

तो कोई अपने

आगे बढ़ने का रास्ता ,

कितने लोग हैं , ऐसे ,

भटके हुए ,

एक रास्ते की तलाश में ,

पर खोज लेते हैं ,

ऐसे सब , अपने जैसे ,

एक दूसरे को ,

साथ हो लेते हैं ,

भीड़ बन जाते हैं ,

और भीड़ बन कर भी

चाहते हैं कि कोई उन्हें

रास्ता दिखाये ,

उन्हें उनकीं मंजिल तक पंहुचाये।

 

----------------------------------------------------------------------

 

9. आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी

रास्ता/मार्ग (कुण्डलिया छंद)

====================================

 

कोई भी जाना नहीं, कैसी है यह राह |

उत्कंठा है एक बस, कल होने की चाह ||

कल होने की चाह, कहाँ तक साथ निभाये,

आता है जब काल, जिंदगी थम ही जाये,

कितने सारे लक्ष्य, लिए माटी की लोई,

करती है कुछ पूर्ण, कभी रह जाता कोई ||

 

 

जीवन का हर मार्ग हो, मानव उन्नति द्वार |

पग-पग हो सबके लिए , खुशियाँ कई हजार ||

खुशियाँ कई हजार , और थोड़े से गम हों,

आपस का हो प्यार, फासले कुछ कम-कम हों,

रिश्तों का हो मान, ज्ञान हर इक बंधन का,

तब ही हो साकार, स्वप्न मानव जीवन का ||

 

 

जाने कितने लक्ष्य हैं , जीवन है जंजाल |

सद्कर्मों की राह चल, कहता है कलिकाल ||

कहता है कलिकाल, मोल हर पल का जानो,

कैसी है कब चाल , वक्त की यह पहिचानो,

तब ही होंगे पूर्ण , लक्ष्य जो तुमने ठाने,

रहने दो कुछ मार्ग, रहें फिरभी अनजाने ||

----------------------------------------------------------------------

 

10. आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी

प्रेम-मार्ग अपनाऊँ कैसे ? (गीत)

====================================

 

प्रेम-मार्ग अपनाऊँ कैसे  ?

मन में प्रीति बसाऊं कैसे ?

 

राग नियंत्रण में कब होता

वशीभूत होते सब उसके

स्वप्न कभी कब पूरे होते

चंचल चंचरीक मानुष के ?

 

अपनी नियति मनाऊँ कैसे ?

 

मनसिज होता  फिर भी  जग में

चक्षु-राग ही गौरव पाता

जिससे जिसकी नियति जुडी हो

वही असमशर सम हो जाता

 

इस सच को झुठलाऊँ कैसे ?

 

कब अनंग के धनु की जीवा

मोहक मारक सायक छोड़े

प्राणों की वेसुध सी क्रीडा

अंतस से अंतस को जोड़े

 

ऐसे स्वप्न सजाऊँ कैसे ?

 

नेह अनुग्रह है उस विभु का

जो जीवन में रस भर देता

मानव अपना स्वत्व लुटाता

त्याग समर्पण सब कर देता

 

कृपा दृष्टि को पाऊँ कैसे ?

 

सजनी मुझसे नैन मिलाये

उसका आमंत्रण भी आये

मन में प्रेमा-भक्ति समाये

प्राण प्राण में लय हो जाये

 

निर्भर प्रेम निभाऊं कैसे  ?

----------------------------------------------------------------------

 

11. आदरणीय लक्ष्मण धामी जी

(ग़ज़ल)

====================================

 

बन गई हो जिसको ठोकर रास्ता

उसका रोके कौन सा डर रास्ता।1।

 

करके साहस जो उतारे नाव को

यार उसको  दे  समन्दर रास्ता।2।

 

शूल सहने की हो हिम्मत तो चलो

फूल तो  रखता  न  अक्सर रास्ता।3।

 

सिर्फ देते  हैं दगा बस पाँव ही

रोकता कब यार पत्थर रास्ता।4।

 

कैसे मंजिल तक पहँचते बोलिए

हो गया हमको  तो नटवर रास्ता।5।

 

बस गए सब शहर में आ गाँव से

ताकता   सूना  पड़ा  घर  रास्ता।6।

 

युद्ध से होती समस्या हल नहीं

बात से निकला करे हर रास्ता।7।

 

----------------------------------------------------------------------

 

12. आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी

'नौनिहाल हो रहे निहाल'  (अतुकांत)

====================================

 

नौनिहाल हो रहे निहाल

बाइक, मोबाइल, कम्प्यूटर

की लेकर ढाल

लघु पथ की चाल

छद्म प्रतियोगिता का ख़्याल

कुसंस्कृति का रास्ता

आधुनिकता का वास्ता

कुशाग्र, चंचल, वाचाल

फिर भी नई पीढ़ी बेहाल

नौनिहाल हो रहे निहाल।

 

नौकरी, गृहस्थी या व्यापार

व्यस्तता का वास्ता

बच्चों को बस

स्कूल, होस्टल, कोचिंग

संस्थानों का रास्ता

अंग्रेज़ी की दासता

करियर,

जीविकोपार्जन का वास्ता।

रिश्ते-नाते, संस्कार बेहाल

नौनिहाल हो रहे निहाल।

 

आधुनिक रीतियां

पाठ्येत्तर गतिविधियाँ

छद्म सुनीति या कुरीतियां

अंधानुकरण की दासता

लघु पथ की आस्था

पश्चिमीकरण का रास्ता

व्यक्तित्व विकास का वास्ता

पारिवारिक

अर्थ-व्यवस्था बेहाल

नौनिहाल हो रहे निहाल।

 

 

नित्य नवीन व्यंजन

देसी त्याज्य, विदेशी वंदन

गुणवत्ता अतिरंजन

घर से बाहर मनोरंजन

नूडल्स, पिज्जा, पास्ता

लघु पथ की आस्था

मित्र-संगत का रास्ता

सामाजिकता का वास्ता

स्वास्थ्य-स्थिति बेहाल

नौनिहाल हो रहे निहाल।

 

 

आधुनिक इमारतें

विकास की इबारतें

पेड़-पौधे बोनसाई

प्लास्टिक फूल-पत्ती-पौधे

बोलती तस्वीरें छायीं

लघु पथ की आस्था

प्रकृति पहुँच का रास्ता

आधुनिकता का वास्ता

हरियाली ख़ुशहाली बेहाल

नौनिहाल हो रहे निहाल।

 

----------------------------------------------------------------------

 

13. आदरणीया कांता रॉय जी

विषय आधारित प्रस्तुति (छंदमुक्त)

====================================

रुक - रुक , ऐ दिल ,जरा थम के चलना

लम्बा सफर है, दूर है मंजिल, थम-थम के चलना

रुक - रुक ,ऐ दिल ,जरा थम के चलना

 

आयेंगी कई-कई बाधाएँ ,डर कर मत रहना

नदिया की धारा बनकर ,कलकल तुम बहना ,

रुक-रुक , ऐ दिल ,जरा थम के चलना

 

पग -पग , काँटों का चुभना , खून-खून तर लेना

आँख-मिचौनी ,हौसलों से , खेल सुख -दुख कर लेना

रुक-रुक ,ऐ दिल ,जरा थम के चलना

 

पीतल में सोने सी आभा,चमक-चमक ,छल का छलना

हाथ की रेखा ,कर्म सत्य है,प्यार के पथ पर ही चलना

रुक - रुक ,ऐ दिल ,जरा थम के चलना

 

पत्थर की बस्ती , पत्थर के दिल ,तुम पथरीली ना बनना

रात अंधेरी , रैन भयावनी , चाँद -चाँदनी बन खिलना

रुक- रुक ,ऐ दिल , जरा थम के चलना

 

----------------------------------------------------------------------

 

14. आदरणीय ब्रजेन्द्र नाथ मिश्रा जी

राही तू  चलता जा (छंदमुक्त)

====================================

राही तू  चलता जा,

चलने से तेरा वास्ता।

 

राहों पर कंकड़-पत्थर,

टूट-टूटकर धूल बन गए।

वे सहलाती राही के

पैरों के नीचे फूल बन गए।

 

नहीं रहेगी थकन,

छाँव के नीचे बना है रास्ता।

राही  तू चलता जा,

चलने से तेरा वास्ता।

 

चिलचिलाती  धूप खिली हो,

सर पर आग है बरस रहा।

तू रुकना मत, तू थकना मत,

तेरी आहट को कोई तरस रहा।

 

बाधाओं, अवरोधों से तुम,

जोड़ चलो एक रिश्ता।

राही  तू चलता जा,

चलने से तेरा वास्ता।

 

आंधी में, तूफानों में,

नीरव वन में, सिंह - गर्जन हो।

साथी रुकना नहीं तुम्हें,

भले तड़ित-वाण वर्षण हो।

 

यादें अपने परिजनों की,

लाद चलो ना जैसा बस्ता।

राही तू चलता जा,

चलने से तेरा वास्ता।

 

सत्य शपथ  ले, चले चलो तुम,

विजयपथ पर बढे चलो तुम।

अशुभ संकेतों से निडर हो,

रश्मिरथ पर चढ़े चलो तुम।

 

तन बज्र -सा, मन संकल्पित,

झंझावातों में समरसता।

राही तू चलता जा

चलने से तेरा वास्ता।

 

----------------------------------------------------------------------

 

15. आदरणीय नादिर ख़ान जी

नई राह  (अतुकांत)

====================================

हर मसले का हल

मसले के साथ जुड़ा होता है

बस तलाशना होता है रास्ता

उस तक पहुँचने का ....

 

जब बढ़ेंगे कदम किसी फ़ैसले की ओर

कोई न कोई राह

निकलेगी अवश्य  वहाँ से

नर्म होगी जब जुबां

बात में असर भी होगा ...

जब की जायेगी कोशिश

ईमानदारी के साथ

लिए जायेंगे फ़ैसले

अपने - पराये की कसौटी को छोड़

सही और गलत के मापदंड पर

रास्ता ज़रूर निकलेगा

 

क्योंकि मसले की उलझी गाँठ

मसले के अंदर ही सुलझती है

और वहीं से निकलती है

नई राह 

खुशनुमा ज़िदगी लिए ......

 

----------------------------------------------------------------------

 

16. आदरणीया नयना(आरती) कानिटकर जी

उस-पार का रास्ता (अतुकांत)

====================================

 

ना स्वीकारा हो,

चाहे राम ने सीता को

शाल्व ने अंबा को

स्वीकारा है, सदा दायित्व

उसने अभिमान से

हारी नहीं है कभी,

चाहे छली गई हो

भस्म हुए हो

स्वप्न उसके,

किंतु वो,

आज भी तलाश रही है

मंजिल से,

उस-पार का रास्ता.

 

 

----------------------------------------------------------------------

 

17. आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी

 (दोहा छंद)

====================================

राहे मुश्किल भी मिलें,रुको नहीं थक-हार

पाना है यदि लक्ष्य को,करलो बाधा पार।।

 

पाने की जो चाह है,चलना उसकी ओर

सब कठिनाई भूल के,ख़ूब लगाओ जोर।।

 

मार्ग तो मार्ग है सही,कठिन कहीं आसान

जोश के संग होश भी,ले चल सीना तान।।

 

जीवन भी तो मार्ग है,जानों भाई एक

जीना चलना ही सही,जो समझे सो नेक।।

 

बाधाओं को भूल के,रख मंजिल का ध्यान

सतत जो राह पे बढ़े,कर लेता सन्धान।।

-----------------------------------------------------------------

 

18. आदरणीय रमेश कुमार चौहान जी

 गीत (दोहा छंद आधारित)

====================================

 

नित्य ध्येय पथ पर चलें, जैसे चलते काल ।

सुख दुख एक पड़ाव है, जीना है हर हाल ।।

 

रूके नही पल भर समय, नित्य चले है राह ।

रखे नही मन में कभी, भले बुरे की चाह ।

पथ पथ है मंजिल नही, फॅसे नही जंजाल ।

 

जन्म मृत्यु के मध्य में, जीवन पथ है एक ।

धर्म कर्म के कर्म से, होते जीवन नेक ।।

सतत कर्म अपना करें, रूके बिना अनुकाल ।

 

कर्म सृष्टि का आधार है, चलते रहना कर्म ।

फल की चिंता छोड़ दें, समझे गीता मर्म ।।

चलो चलें इस राह पर, सुलझा कर मन-जाल ।

 

राह राह ही होत है, नही राह के भेद ।

राह सभी तो साध्य है, मांगे केवल स्वेद ।

साधक साधे साधना, तोड़ साध्य के ढाल ।

 

-----------------------------------------------------------------

 

19. आदरणीय चौथमल जैन जी

"नेकी की राह" (अतुकांत)

====================================

दुनियाँ की डगर पर

फूलों से पटे सैंकड़ों रस्ते हैं

जिनमें हुजूम की तरह

लोग दौड़े चले जा रहे हैं

बड़े -बड़े लोग मैं बोना सा

इनके बिच चला तो

पैरों तले कुचल जाऊंगा

असमंजस में हूँ

कौनसी डगर चुनू

कोई छल का रास्ता है

कोई कपट का

कोई राहजनी की डगर है

कोई बेईमानी की

कहीं धोका ,फरेब ,घृणा ,अपमान की राह है

तो कहीं अराजक ,ठगी ,स्वार्थ की

सभी मार्ग फूलों से पटे हैं

आराम है छाँह है

मगर हर तरफ भीड़ है

कहीं जगह दिखाई नहीं देती

इन सभी रास्तों के बीच काँटों से पटी

इक पगडण्डी जाती दिखाई दे रही है

जिस पर इक्का दुक्का लोग

कांटें चुनते हुए

धीरे -धीरे आगे बढ़ रहे हैं

मैं भी इसी मार्ग पर

कांटें हटाते हुए आगे बढने लगा

शायद यहीं राह मुझे

अपनी मंजिल तक पहुँचाएगी

उसी राह में एक छोटा सा बोर्ड लगा था

जिस पर लिखा था "नेकी की राह "

 

 

 

-----------------------------------------------------------------

 

20. आदरणीया राजेश कुमारी ‘राज’ जी

 (ग़ज़ल)

====================================

 

 

पलायन वाद की गिरफ़्त में हैं गाम बेहिसाब

शहर के रास्तों में ढूँढते आराम बेहिसाब 

 

बनाते मॉल छीन कर किसानों की जमीन पर

दिखाते ख़्वाब बाद में मिलेंगे काम बेहिसाब

 

यूँ ही आबादियाँ बढ़ी इसी रफ़्तार से अगर

चलेंगे रेंगते हुए लगेंगे जाम बेहिसाब

 

रही माटी न आज की मुनासिब पौध के लिए

बिखेरें बीज भ्रष्ट अगर उगेंगे नाम बेहिसाब

 

न होंगे बंद अगर दहेज़ के दस्तूर देखिये

निलामी के बजार में बिकेंगे राम बेहिसाब

 

निकालो रास्ते वही जहाँ  खुशियाँ बहाल हों

अगर चलता रहा यूँ ही मिलेंगे घाम बेहिसाब 

 

 

-----------------------------------------------------------------

 

21. आदरणीय डॉ विजय प्रकाश शर्मा जी

 रास्ते (अतुकांत)

====================================

 

निकालने होते रास्ते

बनाना पड़ता मार्ग

पर बन जाती है पगडण्डी

चल देने मात्र से.

एक बार , दो बार ,

बार- बार

जीवन की ऊबड़- खाबड़

डगर पर।

मिटने लगता है

दूरियों का भान

समय सापेक्ष में.

जरूरत होती है

केवल एक सहचर की।

लोग आने लगते हैं

पीछे

बदल जाती है पगडण्डी

मार्ग में।

 

-----------------------------------------------------------------

Views: 1540

Reply to This

Replies to This Discussion

महाउत्सव के सफल संचालन व संकलन के लिए सम्मान्य मंच संचालक महोदय व समस्त सहभागी रचनाकारों को हृदयतल से बहुत बहुत बधाई। मेरी कविता को संकलन में स्थापित करने के लिए व प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
__शेख़ शहज़ाद उस्मानी

हार्दिक आभार आपका 

मोहतरम जनाब मिथिलेश वामनकर साहिब , ओ बी ओ लाइव महोत्सव अंक 66 के कामयाब आयोजन और जल्द संकलन के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

हार्दिक आभार आपका 

आदरणीय मिथिलेश भाईजी

महा उत्सव के सफल संचालन और संकलन हेतु बधाइयाँ शुभकामनायें। कुछ संशोधन के साथ रचनायें पोस्ट कर रहा हूँ , संकलन में प्रतिस्थापित करने की कृपा करें।

कुण्डलिया छंद [ बस एक मार्ग ]

<-> <-> <-> <-> <-> <-> <-> <-> <-> <-> <->

 

राह बेहतर है वही, पहुँचा दे गोलोक।

भक्ति मार्ग अपनाइये, मिले न फिर भूलोक॥

मिले न फिर भूलोक, न होगा जनम दुबारा।   

मिले कृष्ण का धाम, यही हो लक्ष्य हमारा॥  

दर्शन का शुभ लाभ, वहीं है और ना कहीं।

करो कृष्ण की भक्ति, राह बेहतर है वही॥

 

<-> <-> <-> <-> <-> <-> <-> <-> <-> <-> <->

पश्चिम की नकल का कड़वा सच.... [ ताटंक छंद ]

<-> <-> <-> <-> <-> <-> <-> <-> <-> <-> <-> <-> <-> <->  

 

युवा वर्ग को होश कहाँ है, राह भटक वो जाते हैं।

आकर्षण को प्यार समझकर, गलत मार्ग अपनाते हैं॥

कैसी शिक्षा नीति देश की, युवा बिगड़ते जादा हैं।

लक्ष्मण रेखा कहीं नहीं है, ना कोई मर्यादा है॥

 

कुछ नशे कुछ होश में रहती, सुबह लौट घर आती हैं।

माँ से सच्ची बात छुपाकर, सखियों को बतलाती हैं॥

हे मम्मा हे डैड सोचिए, धन किसलिए कमाना है ?

किये न बच्चों को संस्कारित, कहते नया जमाना है॥

 

स्वच्छंदता रोग ऐसा है, जिसकी नहीं दवाई है।

बिन ब्याहे रहने लगती पर, अंत बहुत दुखदाई है॥

रखैल सी हो गई जिन्दगी, रो रो कर पछ्ताएगी।

बंद एक दिन दरवाजा कर, छोड़ सभी को जाएगी।।

<-> <-> <-> <-> <-> <-> <->

 

यथा निवेदित तथा संशोधित 

यह भी अवश्य है कि कुण्डलिया छंद में 'कहीं' और 'वही' की तुकांतता पर पुनर्विचार निवेदित है. सादर

महा उत्सव के सफल संचालन और संकलन हेतु बधाइयाँ शुभकामनायें.

हार्दिक आभार आपका 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक जी , मेरी रचना  में जो गलतियाँ इंगित की गईं थीं उन्हे सुधारने का प्रयास किया…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 178 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत रोला छंदों पर उत्साहवर्धन हेतु आपका…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"    आदरणीय गिरिराज जी सादर, प्रस्तुत छंदों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी छंदों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिये हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय गिरिराज जी छंदों पर उपस्थित और प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक जी छंदों की  प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिये हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय मयंक कुमार जी"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
" छंदों की प्रशंसा के लिये हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"    गाँवों का यह दृश्य, आम है बिलकुल इतना। आज  शहर  बिन भीड़, लगे है सूना…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी,आपकी टिप्पणी और प्रतिक्रिया उत्साह वर्धक है, मेरा प्रयास सफल हुआ। हार्दिक धन्यवाद…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service