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परिंदे
लड़का बहू के लिए बड़ी शौक से पहली मंजिल पर एक कमरा बनाया,उसके सामने गमलों में फुलवारी लगाई,खुद रोज पानी सींचा। आते ही बहू ने ऐसे तेवर दिखाए कि वह ज्यादा दिन न झेल सकी और कूच कर गई मुझे अकेला छोड़ कर ।लड़का बहू ने बसा ली अपनी दुनिया किराये के फ्लैट में। झुकी हुई डाली अलग न हो जाए,अतः सींचता रहा पर वह सीधी न हुई ।हाँ उसमें जडें निकल आई,और छोड दिया पुराने खोखले तने को । दो परिंदे आये और बस गए फुलवारी के सामने।
"पापा रीना कह रही है कि आ जाओ यही पर बाबू भी अकेला रहता है ,आया के भरोसे।"
"तो क्या अब बहू मुझे आया बनाना चाहती है?"
"नहीं पापा,आया तो लगी है।आप के आने से घर में कोई तो होगा अपना।"
"तो क्या चौकीदार चाहिए ?"
"पापा आप तो नाराज हो जाते हैं।"
"देख बिना पैसे की नौकरानी तो चली गई,बहू ने तो उसकी कदर नहीं की ।"
"पापा आप भी उसे ही दोष देते हैं।"
"बेटा दोष नहीं दे रहा हूँ, बहू से कहना,कि अब उनका घरौंदा भी भर गया है और मिल गया है उन्हें अपने अनेक परिंदों का साथ।"
समय मिले तो देख लेना।
पवन जैन,जबलपुर।
( मौलिक एवं अप्रकाशित)
वरिष्ठता की अनुभूति स्वयं के स्वाभिमान की रक्षा में ही होती है। सशक्त सन्देश रोपित करती एक सार्थक लघुकथा बनी है आपकी आदरणीय पवन जैन जी। बधाई स्वीकार करें।
बहु आते ही पराया क्यों हो जाता बेटा ..बढ़िया कथा | बधाई _/\_
यक्ष प्रश्न है ,आदरणीय ।कथा की प्रशंसा हेतु आभार।
धन्यवाद आदरणीय ।बच्चे बूढे़ भी हो जाय तब भी माता पिता को बच्चे ही दिखते हैं,नाराज हो जाने पर
भी स्नेह की डोर से बंधे रहते हैं ।
धन्यवाद आदरणीय ।
एक सच्चाई व्यक्त करती रचना आदरणीय पवन जैन जी .
बहुत बहुत आभार आदरणीय ।
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