For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रणय को आकार दिया ....

दृग
शृंगार करते रहे
आंसुओं से
तृषित मन
आस की मरीचिका में
भटकता रहा
व्यथा
दूर तक फ़ैली नदी में
वायु वेग को सहती
बिन पाल की नाव सी
किसी किनारे की तलाश में
व्यथित रही
दृष्टि स्पर्श
प्रणय अस्तित्व को
नागपाश सा
स्वयंम में लपेटे रहा
अंतर्कथा के मौन पृष्ठों में
जीवन के इक मोड़ की त्रासदी
स्मृति सीप में
कराहती रही
कदम

धूप की तपन को
मन के अंतर्नाद में डूबे 
एक क्षितिज की तलाश में
बढ़ते रहे ,बढ़ते रहे
अंततः
व्योम को अंगीकार किया
शून्य को स्वीकार किया
शिला खण्डों में
प्रणय की प्रतिध्वनि
कैसे जीवित रहती है
बदन के रोओं ने
इस सत्य को साकार किया

अंतःकरण की गहन कंदराओं के मौन ने
प्रणय को आकार दिया

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 682

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on October 30, 2015 at 12:02pm

आदरणीया  राजेश कुमारी जी रचना में निहित भावों पर आपकी आत्मीय सराहना का दिल से आभार। आदरणीया  खेद है कि कंप्यूटर खराब होने के कारण में आपके स्नेह का आभार विलम्ब से व्यक्त कर रहा हूँ। पुनः आपके स्नेह का हार्दिक आभार एवं विलम्ब के लिए क्षमा। 

Comment by Sushil Sarna on October 30, 2015 at 12:01pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर आपकी आत्मीय सराहना का दिल से आभार। आदरणीय खेद है कि कंप्यूटर खराब होने के कारण में आपके स्नेह का आभार विलम्ब से व्यक्त कर रहा हूँ। पुनः आपके स्नेह का हार्दिक आभार एवं विलम्ब के लिए क्षमा। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 26, 2015 at 9:41am

शिला खण्डों में 
प्रणय की प्रतिध्वनि 
कैसे जीवित रहती है 
बदन के रोओं ने 
इस सत्य को साकार किया

अंतःकरण की गहन कंदराओं के मौन ने 
प्रणय को आकार दिया-----वाह  वाह  आ० सुशील सरना जी,शब्द चयन ,भाव ,प्रस्तुतीकरण सभी लिहाज से एक सफल अतुकांत कविता है जितनी भी तारीफ करो कम होगी |आपको दिल से ढेरो बधाईयाँ | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 22, 2015 at 11:37pm

आदरणीय सुशील सरना सर, आपका शब्द चयन कई बार चकित कर देता है. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई 

Comment by Sushil Sarna on October 22, 2015 at 3:18pm

आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी रचना के भावों को मान देती आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on October 22, 2015 at 3:16pm

आदरणीय  Er. Ganesh Jee "Bagi"    जी रचना मर्म को स्वीकृति देती आपकी हृदयग्राही प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया का हार्दिक हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on October 22, 2015 at 3:13pm

आदरणीया कांता रॉय जी रचना में निहित भावों को आपने जिस आत्मीयता से समीक्षात्मक  प्रतिक्रिया में उकेर कर रचना को मान दिया है बंदा उसके लिए आपका दिल की असीम गहराईयों से आभार व्यक्त करता है। 

Comment by Sushil Sarna on October 22, 2015 at 3:08pm

आदरणीय शिज्जु शकूर जी रचना में निहित भावों को आपने मान दिया , आपका दिल से शुक्रिया। 

Comment by pratibha pande on October 22, 2015 at 3:01pm

जीवन के इक मोड़ की त्रासदी 
स्मृति सीप में 
कराहती रही    वाह i  हमेशा की ही तरह एक खूबसूरत रचना  ,बधाई स्वीकारें आदरणीय सुशील जी  


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 22, 2015 at 8:22am

उन्मुक्त विचरण करते विचारों को बाँधने का सफल प्रयास इस अतुकांत कविता के माध्यम से हुआ है, इस खुबसूरत अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय सुशील सरना जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service