For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कभी अपने फ़लक़ से तुम ज़रा नीचे उतरकर- शिज्जु शकूर

1222 1222 1222 122
कभी अपने फ़लक़ से तुम ज़रा नीचे उतरकर
चले आओ हक़ीक़त की ज़मीनों से गुज़रकर

ग़लत के मुख़्तलिफ़ चलना! अनोखी बात है क्या?
मुझे क्यों ऐ खुदा सब देखते हैं? यों ठहरकर!

अज़ाबो-कर्ब के मारों की नाउम्मीद आँखें
छलकती जा रही थीं एक के बाद एक भरकर

मेरे हाथ आई थी़ं कुछ कतरनें यादों की कल रात
गुज़रते वक्त ने जैसे रखा हो यूँ कुतरकर

नुमायाँ हो रही है मेरी हालत क्या सरेआम?
बताओ क्यों शफ़क़ का रंग दिखता है उभरकर

हयात अपनी कई टुकड़ों में की तक़्सीम मैंने
मुझे ढूँढोगे? रह जाओगे तुम खुद भी बिखरकर

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 466

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 4, 2015 at 6:13pm
विलम्ब के लिये माफ़ी चाहता हूँ आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 26, 2015 at 10:55am

ग़लत के मुख़्तलिफ़ चलना! अनोखी बात है क्या?
मुझे क्यों ऐ खुदा सब देखते हैं? यों ठहरकर!---बहुत  सुन्दर 

मेरे हाथ आई थी़ं कुछ कतरनें यादों की कल रात
गुज़रते वक्त ने जैसे रखा हो यूँ कुतरकर---शानदार 

इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई लीजिये शिज्जू भैया 

Comment by Shyam Narain Verma on October 23, 2015 at 5:33pm

"क्या बात है ..... बहुत खूब ... बधाई आप को "

सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 22, 2015 at 11:44pm

आदरणीय शिज्जू भाई जी बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं.

आखिरी शेर कमाल हुआ है.

Comment by Sushil Sarna on October 22, 2015 at 3:29pm

वाह आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब ज़हन में उभरते अहसासों का बहुत ही खूबसूरत चित्रण हुआ है खासकर ये अशआर तो दिल में उत्तर गए :

मेरे हाथ आई थी़ं कुछ कतरनें यादों की कल रात
गुज़रते वक्त ने जैसे रखा हो यूँ कुतरकर


हयात अपनी कई टुकड़ों में की तक़्सीम मैंने
मुझे ढूँढोगे? रह जाओगे तुम खुद भी बिखरकर … शे'र दर शे'र दिल से दाद कबूल फरमाएं सर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
18 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
18 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service