For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222 1222 1222 1222
हैं हँसते मुस्कुराते हम छिपाते जानें कितने ग़म।
हाँ चलते गुनगुनाते हम मिटाते जानें कितने ग़म।।

हमारे होंठ जब लरज़े सुनाएँ दास्ताँ अपनी।
अचानक रूबरू मेरे हैं आते जानें कितनें ग़म।।

कभी रोते हुए बच्चे कभी तो छटपटाती माँ।
विवशता युक्त आँखों से बताते जानें कितने ग़म।।

वो जो चलती हुई गाड़ी से पटरी पर गयी फेंकी।
बिलखती आँख के आंसूँ सुनाते जानें कितने ग़म।।

दिखी है लाश लटकी पेड़ पर जब अन्नदाता की।
निवाले में तभी से हम हैं खाते जानें कितने ग़म।।

यहाँ अपनी कहानी में तो बस इक दिल ही टूटा है।
फूंके घर जिनके उनको तो जगाते जाने कितने ग़म।।

मौलिक अप्रकाशित

Views: 536

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 15, 2015 at 6:15pm
सादर अभिवादन आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी
Comment by Shyam Narain Verma on October 15, 2015 at 5:58pm
बहुत सुन्दर गजल।  ढेरों दाद कुबूल करें। सादर
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 15, 2015 at 12:47pm
आदरणीय रवि सर सादर प्रणाम्
Comment by Ravi Shukla on October 15, 2015 at 12:44pm

आदरणीय पंकज जी  अच्‍छे प्रयास के लिये , हार्दिक बधाइयाँ आपको । सुरीला रुक्‍न है ये इस‍लिये प्रवाह भी शानदार होता है इसमें । बधाई ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 15, 2015 at 12:51am
आदरणीय समर कबीर सर सादर धन्यवाद।
Comment by Samar kabeer on October 14, 2015 at 11:24pm
जनाब पंकज कुमार मिश्रा जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 14, 2015 at 10:15pm
आख़िरी शेर का दूसरा मिसरा निम्नवत् पढ़ें-

जले घर जिनके उनको तो जगाते जाने कितने ग़म
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 14, 2015 at 10:13pm
आदरणीय गिरिराज सर सादर नमन्।
वो गल्ती मेरी भी निगाह में आयी; लेकिन पोस्ट को एडिट करनें पर सुधार लूँगा।।

सुझाव के लिए सादर धन्यवाद

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 14, 2015 at 9:31pm

आदरणीय , ग़ज़ल अच्छी कही है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

फूंके घर जिनके उनको तो जगाते जाने कितने ग़म --- मिसरा पहले रुक्न से बेबहर है , देख लीजियेगा ॥

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 14, 2015 at 8:35pm
आदरणीय जय प्रकाश जी; शेर की तारीफ के लिए शुक्रिया।।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"एक छोटा सा अंतर है किसी को अपना उस्ताद या गुरु मानते हुए संबाेधित करने और मंच पर किसी…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने गिरह भी ख़ूब है बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय दयाराम जी नमस्कार एक ग़ज़ल क ही आपने बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"इतनी मुश्किल भी नहीं सच्ची कहानी लिखना एक राजा की मुहब्बत में है रानी लिखना उसकी तारीफ़ में जो…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय लक्ष्मण जी  बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय Aazi जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय गजेन्द्र जी बहुत शुक्रिया आपका बेहतरी का प्रयास करूंगी सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय दयाराम जी  बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश जी नमस्कार  अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिए गिरह भी ख़ूब  सादर"
1 hour ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service