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ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-53 की समस्त संकलित रचनाएँ

सु्धीजनो !
 
दिनांक 19 सितम्बर 2015 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 53 की समस्त प्रविष्टियाँ संकलित कर ली गयी हैं.

इस बार प्रस्तुतियों के लिए तीन छन्दों का चयन किया गया था, वे थे दोहा, रोला और कुण्डलिया छन्द

वैधानिक रूप से अशुद्ध पदों को लाल रंग से तथा अक्षरी (हिज्जे) अथवा व्याकरण के लिहाज से अशुद्ध पद को हरे रंग से चिह्नित किया गया है.

जो प्रस्तुतियाँ प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करने में सक्षम नहीं थीं, उन प्रस्तुतियों को संकलन में स्थान नहीं मिला है. 

फिर भी, यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव

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1. आदरणीय मिथिलेश वामनकरजी

दोहा छंद आधारित गीत

अमिना की उँगली धरे, झूम चले गोपाल

दुनिया के अवतार हैं, लेकिन माँ के लाल

पैगम्बर पाते सदा, पहले माँ से ज्ञान
मानवता की जीत के, फिर बनते दिनमान
हर लेते विपदा सभी, हरते दुख-विकराल
दुनिया के अवतार हैं, लेकिन माँ के लाल

पीताम्बर में श्याम का, ऐसा है उन्वान
देख श्याममय हो गया, ममता का परिधान
ममता का नाता सदा, ऐसा ही इकबाल
दुनिया के अवतार हैं, लेकिन माँ के लाल

बंशीधर आगे चले, थामे माँ का हाथ
कौन किसे लेकर चला, पूछे ये फुटपाथ
दृश्य अमन-सद्भाव का, दुनिया देख निहाल
दुनिया के अवतार हैं, लेकिन माँ के लाल

मानवता की सीख ही, मजहब का है मूल
भूले सब मतभेद तो, जीवन हो अनुकूल
आपस में जब प्रेम हो, भारत तब खुशहाल
दुनिया के अवतार हैं, लेकिन माँ के लाल

(संशोधित)

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2. आदरणीय श्री सुनीलजी

रोला छंद...


हम नहीं लकीर के हैं फ़क़ीर देख लो अब
बदली हमने सोच कहो तुम बदलोगे कब.
क्या बोलेंगे लोग नहीं हम सोच रहे हैं
राहों में हम गर्व-भाव से देख! चले हैं.

मेरा मज़हब और तुम्हारा धर्म मिला तो
मानवता अब और सुशोभित हुई देख लो.
भेदभाव से रहित बाल-वय सुन्दर कितनी
सर्व धर्म सम भाव की भली मूर्ति ये बनी

दुनिया की रफ़्तार देख कर सोच रही हूँ
पीछे कितना छूट गई मैं कहाँ खड़ी हूँ.
कब तक झूठे अर्थ काढ़ते उन पन्नों से
लोग रहेंगे दूर दूसरे के धर्मों से.

भेदभाव को छोड़, दिया,था ये इक रोड़ा
मज़हब छोड़ा नहीं सिर्फ़ आडंबर छोड़ा.

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3. आदरणीय पंकज कुमार मिश्र ’वात्स्यायन’जी

दोहा

मुरली थामे हाथ में निकले हैं चितचोर।
सिर पर सोहे मोर की पंखी करे विभोर।।

किशन भ्रमण को चल दिये माता जी के साथ।

आये लगता उतर कर देखिये द्वारकानाथ।।


कजरारे नैना लिये मनमोहक यह रूप।
अधरों की मुस्कान है ज्यों सर्दी की धूप।।

हिन्दू मुस्लिम भेद में भटक गया इंसान।
राह दिखाने चल दिए मानो खुद भगवान।।

मनुजों के हिय में पले स्वाप रूप धर नाग।
कलि मर्दन को चल दिये छेड़ प्रीत का राग।।
(संशोधित)

द्वितीय प्रस्तुति

रोला छंद-गीत

किशन रूप धर आज, राह पर उतरा हूँ मैं।
मोर पंख शृंगार, करके संवरा हूँ मैं।।

मेरी माँ है साथ, हाथ धर कर चलती है।
मन्द मन्द मुस्कान, हृदय में माँ बसती है।।

मुरली लेकर आज, प्रेम रस बरसाऊँगा।
मनुज हृदय आकाश आज तो धो जाऊँगा ॥

कदम प्रेम पथ ओर, बढ़ाता निकला हूँ मैं।।1।।

दुग्ध लिए गोपाल, कहाँ अब जाते हो तुम।
थोड़ा सा कर दान, हमें ललचाते हो तुम।

अच्छा!कोई बात, नहीं मैं फिर आऊँगा।
कर लूँ प्रभु का काज, तभी माखन खाऊँगा।
प्रेम पुष्प को ढूंढ रहा हूँ भंवरा हूँ मैं ।।2।।

(संशोधित)

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4. आदरणीय सत्यनारायण सिंहजी 

[रोला छन्द आधारित गीत] 

 

देख अनोखी कृष्ण, बाल छबि मन हर्षाये

धूम धाम से जन्म, कृष्ण का देश मनाये॥

 

मोर मुकुट शुभ शीश, पीत पट कटि पर साजे

दिव्य रत्न गल हार, बाँसुरी इक कर राजे

रूप मनोहर कृष्ण, धरा असलम ने प्यारा

बनी हमीदा आज, यशोदा पल है न्यारा

उत्सव की यह रीत, मनस सद्भाव जगाये

धूम धाम से जन्म, कृष्ण का देश मनाये॥

 

सुभग अंग प्रत्यंग, और अँखियाँ कजरारी

मुख मंडल छबि देख, आज मन हुआ सुखारी

मची नगर हर धूम, सजा घर क़स्बा सारा

नगर लग रहा आज, मुझे वृन्दावन प्यारा

गंग जमुनि तहजीब, दृश्य अनुपम दिखलाये

धूम धाम से जन्म, कृष्ण का देश मनाये॥

 

भरा दूध से केन, दुपहिया पर है लटका

ग्वाल बाल का रूप, विलोपित मटकी मटका

करे भवन निर्माण, जोड़ मजबूत बनाता

विज्ञापन सीमेंट, यही गुण धर्म बताता

मजहब के इस मेल, भाव में दृढ़ता आये

धूम धाम से जन्म, कृष्ण का देश मनाये॥

(संशोधित)

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5.आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तवजी

दोहा छन्द

जीवन जैसे उप नगर  जिसमें राह अनेक

मंजिल मिलती है सदा जैसा भाग्य विवेक

 

भित्ति भाग्य सी है खडी कस्बा सहज उदास

मटमैले सब वस्त्र है सिर के ऊपर घास

 

लीपा पोता है बहुत  सभी सँवारे अंग 

किन्तु काल  ने कर दिया दुनियां को बदरंग

जीवन से जर्जर सभी दिखते यहाँ मकान

नश्वर है सारा जगत देते इसका ज्ञान

 

विज्ञापन सा हो गया जीवन सौ परसेंट

यही ढिंढोरा पीटती  सम्राटी सीमेंट

 

जब तक चमड़ी है चटक रहे रोटियाँ सेंक

टायर के घिसते सभी मिलकर देंगे फेंक

 

जिसके यौवन का तुरग चपल और बलवान 

उसका तांगा पंथ पर गत्वर है गतिमान

 

जब तक ईंधन शेष है तब तक तन में जान  

चालक के संकेत पर वाहन है गतिमान  

 

ठेला तो निर्जीव है उसको खींचे कौन

खींचनहारा तो गया सारी दुनिया मौन

 

सारा जग बहुरूपिया नही किसी का साथ

अपने बानक में मगन माया थामे  हाथ

 

माया है अति सुन्दरी ठगिनी कपट प्रधान

जीवन भर जग नाचता कौन कराये ज्ञान

 

सबको तो मिलते नहीं साधक संत फ़कीर

ढोंगी सारे बन गये सिद्ध औलिया पीर

 

आत्ममुग्ध संसार शिशु चला जा रहा मस्त

मायामय अब जीव का है अस्तित्व समस्त

 

कृष्ण रूप से भी नहीं जग का है कल्याण

माया के उर में नहीं जब तक धंसता बाण

(संशोधित)

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6. आदरणीय रवि शुक्लाजी

दोहा छंद आधारित गीत

चकित भाव से चित्र को अपलक रहे निहार
द्वापर से कलियुग हुआ लीला वही अपार

दो माता के पुत्र है नाम त्रिलोकी नाथ !
वंशी ले कर निकल पड़े पकड़ मातु का हाथ
मोर मुकुट पीताम्बरी सजे धजे सुकुमार

हाथ पकड़ कर चल दिए बना कृष्ण का वेश
सर्व धर्म सद्भाव का साथ लिए सन्देश
कृष्ण जन्म उत्सव हुआ इस का इक आधार

मुस्लिम माँ के साथ में चले कौन से धाम
सदियों की लीला प्रभो कब लोगे विश्राम
बंशी की धुन ने किया कान्हामय संसार

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7. आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवजी 

कुण्डलिया

 

रामनगर में सुबह से, कृष्ण जन्म की धूम।        

राधा नटखट श्याम बन, बच्चे जाते झूम।।                

बच्चे जाते झूम, मजा सब को आता है।

बाल कृष्ण का रूप, सभी जन को भाता है।।               

मुकुट पीत परिधान, और बंशी है कर में।                    

माँ की उँगली थाम, चले वो रामनगर में।।                                

......................................................

दोहे

 

आटो रिक्शा गाड़ियाँ, कंकरीट की राह।

हरियाली दीवार पर, चिंता ना परवाह।।

 

सर से पांवों तक ढका, दो रंगी परिधान।

सुख चाहे सब के लिए, माँ का रूप महान।।

 

कृष्ण बना धोती पहन, मुरली दायें हाथ।

मुक्ताहार मुकुट पहन, घूमे माँ के साथ।।

 

यशो रूप में जाहिदा, कान्हा रूप हमीद।

साथ मनाते प्रेम से, होली  राखी  ईद।।

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8. आदरणीया प्रतिभा पाण्डेयजी

दोहा छन्द

बलिहारी मन हो गया ,देख अनोखा सीन 

बेटा किसना भेस में ,माता है मौमीन 

पीले कपड़ों में सजे ,मुरली को ले हाथ 

मोहन तेज़ी से चले ,माता भी है साथ 

माता के नैनों दिखा ,नाज़ भरा इक नूर 

मौला बेटे को रखे ,बुरी नज़र से दूर

लम्बी सी पोशाक में , फंसे न माँ का पैर  

किसना को जल्दी बड़ी ,मौला रखना खैर

माया गिरधर लाल की ,कौन सका है जान

कहीं बिरज में रास है,कहीं गूढ़ है ज्ञान   

गिरधर की ये बांसुरी ,बजे सभी के नाम 

मौला का तुम नाम लो  ,चाहे बोलो राम

प्रेम पाठ को बांच  लो, किसना को लो जान 

बिन इसके फीका सभी ,थोथा है सब ज्ञान 

(संशोधित)

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9. आदरणीय गिरिराज भण्डारीजी

दोहे 

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चित्र देख कर बस यही , समझ सका हूँ बात

माँ की ममता के लिये , नहीं धर्म या जात

 

संग यशोदा के चले , रस्ते में चित चोर

छटा निराली देख मन , होता जाय विभोर

 

झूठ कहा , दुश्मन हुये, गीता औ कुरआन  

देखो शेख़ बढ़ा रहा, किसना का अभिमान

 

राजनीति की चाल है , या हम हैं कमज़ोर

क्यों धर्मों की बात पर , नाहक़ मचता शोर

 

बच के रहना कृष्ण जी, आम हुआ यह चित्र

फतवों का ये देश है , दुहरे सभी चरित्र

 

इच्छा है रिश्ते बने , जैसे वो सीमेंट

भाव चित्र के कर प्रभु , सच में परमानेंट   

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10. आदरणीया वैशाली चतुर्वेदीजी

कुण्डलिया छंद

महिमा अपने देश की,,ऐसी इसकी आन
आज आरती को लिए,, जाती दिखी अज़ान
जाती दिखी अज़ान,, दृश्य ये मनहर कितना 
गंगा यमुना एक ,,बंध पावन है जितना 
बड़े प्रेम का भाव,, खूब है इसकी गरिमा
गाते हैं हम आज,, देश भारत की महिमा

(संशोधित)

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11. आदरणीय सचिनदेवजी 

दोहे

बाल-कृष्ण के रूप में, है बालक इरफ़ान

संग यशोदा माँ नहीं, चलतीं अम्मीजान

 

कृष्णा से इस्लाम का, पावन ये गठजोड़ 

फिरकावादी प्रश्न का, उत्तर है मुँह-तोड़  

 

चित्र देख ये मौलवी, हुये अगर नाराज 

समझो अम्मीजान पर,फतवे की है गाज

  

बर्तन टाँगे दूध का, फटफटिया पे ग्वाल

काँधे पर कन्या चढ़ी, पहने कपडे लाल  

 

खुली सडक पर देखिये, बढ़ते नंदकिशोर 

अम्मी मेरी ले चलो, मुझे मंच की ओर

 

जोश देखकर कृष्ण का, माता भी हैरान

बलिहारी है पुत्र पर, चहरे पे मुस्कान   

 

लिये हाथ में बांसुरी, पहने सिर पे ताज

कितने प्यारे लग रहे, देखो मोहन आज

 

करने लीला कृष्ण की, सज-धज के तैयार

कृष्ण प्रेम ने तोड़ दी, मजहब की दीवार 

 

इस कारण ही देश की, बनी अलग पहचान

इक-दूजे के धर्म का, करें उचित सम्मान 

 

हिन्दू-मुस्लिम एकता, का बने आधार

यही चित्र की भावना, नमन इसे सौ बार

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12. आदरणीया राजेश कुमारीजी

रोला गीत 

शीश मुकुट कटिबंध ,गले मोती की माला

धर कान्हा का वेश,चला नन्हा गोपाला

धोती पहने पीत, गुलाबी पटका साजे

गज़ब आत्म उत्साह ,हृदय विश्वास विराजे  

लिए बांसुरी साथ, पँहुचना जल्दी शाला  

धर कान्हा का वेश,चला नन्हा गोपाला

शुभ्र सलोना रूप,मुग्ध हर आता जाता        

पकड़ कृष्ण का हाथ,चली बुर्के में माता

बीच न आया धर्म, मिला है ज्ञान निराला  

धर कान्हा का वेश,चला नन्हा गोपाला

जन्म अष्टमी पर्व ,चित्र यह भाव बताता  

पहने  फैंसी ड्रेस,बाल विद्यालय जाता

जाना इसको शीघ्र ,कहे पग दायाँ वाला  

धर कान्हा का वेश,चला नन्हा गोपाला

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13. आदरणीय अशोक रक्तालेजी

कुण्डलिया छंद.

 

कोई तन से श्याम है, कोई मन से श्याम |

मालिक सबका एक पर, वह भी है बदनाम ||

वह भी है बदनाम, धर्म ने उसको बाँटा,

धर्म-धर्म का खेल, चुभोता मन में काँटा,

सच को भी इक बार, न कोई देखे मन से,

इसीलिए अल्लाह, श्याम दिखता है तन से ||

 

 

पहचानो अब सत्य को, देखो सच का वेश |

सबके मन में है बसा, केवल भारत देश ||

केवल भारत देश, भिन्न धर्मों का पालक,

ले कान्हा का रूप, कहे यह नन्हा बालक

क्यों बनते हो सूर, बात को समझो-मानो,

रखो झूठ को झूठ, सत्य को अब पहचानो ||

द्वितीय प्रस्तुति 

दोहे

 

हरियाली निज शीश पर, धारे हैं जहँ धाम |

पीताम्बर कटि बाँध तहँ, दिखे ठुमकते श्याम ||

 

गोर वर्ण शिशु श्याम के, मन की देखो चाह |

सूर्य चढ़ा है शीश पर, हुआ न कम उत्साह ||

 

हाथ धरे हैं मातु का, और तीव्र है चाल |

मनमोहन छवि बाल फिर, चला बदलने काल ||

 

अपलक दिखा निहारता, बैठ मातु की गोद |

नन्हे कान्हा के कदम, अरु पाता शिशु मोद ||

 

अधरों पर मुस्कान है, मन में ख़ुशी अपार |

भारतमाता श्याम सा, देख तनय सिंगार ||

(संशोधित)

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14. आदरणीया नीरज शर्माजी 

दोहे

 

दुनिया की चिंता नहीं , जो हो सो हो जाय।

बालक अंगुलि थामकर, मैया तो मुस्काय॥

बन कर पंडित , मौलवी , क्या झोंकोगे भाड़।

शोर मचाना है मना , लिए धर्म की आड़॥

 

जन्म लिया ज्यों कृष्ण ने , कोख बनी मोमीन।

देख रहा सारा जगत , बड़ा अनोखा सीन॥

 

उत्सव सा ज्यूं मन रहा , जन्मदिवस शुभ आज।

बालक भी उत्साह में , पहन कृष्ण मय ताज॥

 

पीत वस्त्र, पटका सजे , मोहक फैंसी ड्रेस।

जल्दी चलते स्कूल को , लगते सबसे फ्रेश॥

 

मोर मुकुट सिर पर सजा, गल में मुक्ता हार।

बांध कमर में करघनी , सैंडिल पग में डार॥

 

कृष्ण रूप धर चल दिया , वंशी कर में थाम।

श्याम वर्ण के कृष्ण थे , इसका गोरा चाम॥

 

रूप सलौना सांवरा , कजरारे से नैन।

तेजोमय सा बाल तन , जैसे कृष्णा ऐन॥

 

सिर पर  तपती  धूप हो , छत पर उगती घास।

समझो फिर लो आ गया , सावन - भादौं मास॥

 

रिक्शा चालक, दूधिया , है सुन्दर संजोग।

रहते मिल जुल सब यहां , भांति भांति के लोग॥

 

रहते सारे प्रेम से , यह भारत का गांव।

सभी धर्म पलते यहां, एक वृक्ष की छांव॥

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15. आदरणीय जवाहरलाल सिंहजी

दोहा छंद 

द्वापर युग में कृष्ण ने, थामा यसुदा हाथ

कलियुग में भी देखिये, कृष्ण सबीना साथ 

जाति धर्म से है अलग, वासुदेव के रूप

लीलाधर कहते उसे, वह है सदा अनूप

मोर मुकुट धारी सुवन, पकड़े माँ का हाथ

खींचे आगे की तरफ, ऐसा सुन्दर साथ !

देख देख हम सीखते, सर्व धर्म समभाव

भारत में अब देखते, इसमें तनिक अभाव

आजा फिर से मिल गले, नया बनायें देश

दिल से हम सब एक हैं, भिन्न भिन्न परिवेश ॥

(संशोधित)

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16. आदरणीय लक्ष्मण धामीजी

दोहे

कान्हा मोहन श्याम या कह लो माखनचोर
हाथों  में  उसके  सदा, सबकी  जीवन  डोर

अनगिन उसके नाम हैं, अनगिन उसके रूप
गीता  में   खुद  बोलते, ‘ मैं हूँ विश्वस्वरूप’

गढ़ा सूर  ने  रूप  जो, नटखट औ मासूम
उस पर जाती है सदा, माँ की ममता झूम

मनमोहन है सत्य वह, सबके मन का भूप
तभी  देखती लाल  में, हर  माँ  उसका रूप

तृप्ता,  मरियम,  देवकी  या  शबनम परवीन
माँ की  ममता  एक  सी, जो  सुत में तल्लीन

हर माँ का मन मोहते, पीताम्बर में श्याम
पीछे-पीछे  चल  पड़े, तभी  हाथ  वो थाम

उसकी  ही  वाणी   रही, गीता  और  कुरान
उसका भोलापन हरे, हर मन का अभिमान

क्या मजहब की हद रहे क्या फतवों का जोर
जाना सबको  है  वहीं  वो  खींचे  जिस ओर

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17. आदरणीया सरिता भाटियाजी

दोहे 


बचपन पूछे जात ना, करे न कोई भेद ।
पुत्र कृष्णअवतार में ,माँ मुस्लिम ना खेद ।|


लिए बाँसुरी हाथ में ,देता सच्चा ज्ञान  ।
जात पात चलती नहीं ,कहती उसकी तान ।।

माँ मुस्लिम के भेस में, लेकर चलती साथ ।
मायावी इस जगत में , छूट न जाये हाथ ।।

ओढ़ दुशाला माँ चली ,बेटे को ले साथ 
पग पग बढ़ते ही चलें ,लिए हाथ में हाथ।।

घूम रही बाजार में ,अम्मी कान्हा साथ ।
जल्दी जल्दी चल रहा ,खींचे अम्मी हाथ।।

सर पर कान्हा सा मुकुट ,अधर खिली मुस्कान|
करगनी है कमर में ,देखो इसकी शान।।


टायर पत्थर टोकरी ,भर के सभी कबाड़ ।
बीच सड़क में छोड़कर, छुपा कौन सी आड़ ।।

टाँगे डिब्बा दूध का  ,बाइक चढ़ा सवार |
सर पर साफा बाँध के, चलने को तैयार ||

जर्जर हैं मकान सब,और सड़क सुनसान |

ट्रैफिक बिन यह गाँव की,दास्ताँ करे बयान ||

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समाप्त

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Replies to This Discussion

आदरणीय सौरभ सर, 'चित्र से काव्य तक' छन्दोत्सव आयोजन की सफलता की आपको हार्दिक बधाई एवं इस त्वरित संकलन हेतु आपका हार्दिक आभार. आयोजन में साझा हुए मार्गदर्शन के आधार पर अपनी प्रस्तुति में संशोधन किया है. निवेदन है कि मूल रचना के स्थान पर संशोधित रचना प्रतिस्थापित करने की कृपा करें-
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दोहा छंद आधारित गीत (संशोधित)

अमिना की उँगली धरे, झूम चले गोपाल
दुनिया के अवतार हैं, लेकिन माँ के लाल

पैगम्बर पाते सदा, पहले माँ से ज्ञान
मानवता की जीत के, फिर बनते दिनमान
हर लेते विपदा सभी, हरते दुख-विकराल
दुनिया के अवतार हैं, लेकिन माँ के लाल

पीताम्बर में श्याम का, ऐसा है उन्वान
देख श्याममय हो गया, ममता का परिधान
ममता का नाता सदा, ऐसा ही इकबाल
दुनिया के अवतार हैं, लेकिन माँ के लाल

बंशीधर आगे चले, थामे माँ का हाथ
कौन किसे लेकर चला, पूछे ये फुटपाथ
दृश्य अमन-सद्भाव का, दुनिया देख निहाल
दुनिया के अवतार हैं, लेकिन माँ के लाल

मानवता की सीख ही, मजहब का है मूल
भूले सब मतभेद तो, जीवन हो अनुकूल
आपस में जब प्रेम हो, भारत तब खुशहाल
दुनिया के अवतार हैं, लेकिन माँ के लाल

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश भाई.  यथा निवेदित तथा संशोधित

हार्दिक आभार सर
आदरणीय सौरभ सर;
प्रणाम्

सुझावों के अनुरूप संशोधन युक्त रचना निम्नवत् है; कृपया इसे संकलन का हिस्सा बनायें।
दोहा
मुरली थामे हाथ में निकले हैं चितचोर।
सिर पर सोहे मोर की पंखी करे विभोर।।

किशन भ्रमण को चल दिये माता जी के साथ।
यह जो अद्भत रूप है हिय हरता है नाथ।।

कजरारे नैना लिये मनमोहक यह रूप।
अधरों की मुस्कान है ज्यों सर्दी की धूप।।

हिन्दू मुस्लिम भेद में भटक गया इंसान।
राह दिखाने चल दिए मानो खुद भगवान।।

मनुजों के हिय में पले स्वाप रूप धर नाग।
कलि मर्दन को चल दिये छेड़ प्रीत का राग।।

यथा निवेदित तथा संशोधित.

एक बात :

हृदय को हिय आदि लिखना पुरानी हिन्दी में मान्य था. खड़ी हिन्दी में हिय जैसे शब्द पेवन की तरह लगते हैं. आंचलिक शब्दॊं का अपना महत्त्व है लेकिन उनके बरते जाने का अपना अलग ही ढंग है.  या तो आपकी पूरी रचना की भाषा आंचलिक शब्दों से पटी हो और उसका कोई विशेष प्रयोजन हो.

 

संशोधित

किशन भ्रमण को चल दिये माता जी के साथ।

आये लगता उतर कर देखिये द्वारकानाथ।।

 

संंशोधित हुआ 

रील गीत (संशोधित)

किशन रूप धर आज, राह पर उतरा हूँ मैं।
मोर पंख श्रृंगार, करके संवरा हूँ मैं।।

मेरी माँ है साथ, हाथ धर कर चलती है।
मन्द मन्द मुस्कान, हृदय में माँ बसती है।।

मुरली लेकर आज, प्रेम रस बरसाऊँगा।
मनु हृद का आकाश,आज तो धुल जाऊँगा।

कदम प्रेम पथ ओर, बढ़ाता निकला हूँ मैं।।1।।

दुग्ध लिए गोपाल, कहाँ को जाते हो तुम।
थोड़ा सा कर दान, हमें ललचाते हो तुम।

अच्छा!कोई बात, नहीं मैं फिर आऊँगा।
कर लूँ प्रभु का काज, तभी माखन खाऊँगा।
वर्ग-भेद का करूँ विनाश न ठहरा हूँ मैं।2।।

भाई वात्स्यायनजी, आयोजन के दौरान आपने शृंगार शब्द पर हुई चर्चा को ठीक से पढ़ा नहीं. तभी तो आपके गीत के मुखड़े की दूसरी पंक्ति हरे रंग में है. 

वस्तुतः श्रृंगार जैसा कोई शब्द नहीं होता. यह सॉफ़्टवेयर की असक्षमता के कारण बना हुआ शब्द है. जैसे हृदय को कई लोग ह्रदय लिखते हैं. शृंगार को कभी श्रृंगार की तरह से न लिखें. 

दुख तो यह होता है कि कई ’ऑनलाइन शब्दकोश’ श्रृंगार जैसे शब्द का भी अर्थ प्रस्तुत कर रहे हैं. यह हिन्दी अक्षरियों के साथ एक भद्दा मज़ाक़ ही तो है. 

मनु हृद का आकाश,आज तो धुल जाऊँगा .. या,  मनु हृद का आकाश,आज तो धो जाऊँगा ? 

वस्तुतः आपने क्या कहना चाहा है ?

कहाँ को जाते हो तुम ..  ऐसे वाक्य सैद्धांतिक रूप से सही दिखते हुए भी व्यावहारिक तौर पर सही नहीं हैं.  यहाँ कारक विभक्ति ’को’ अनावश्यक है. 

वर्ग-भेद का करूँ विनाश न ठहरा हूँ मैं ... इस पंक्ति का विन्यास पुनः देख लें. 

उपर्युक्त ढंग से सुधार की गुंजाइश अब भी बनी है.

शुभेच्छाएँ 

आदरणीय सौरभ सर; सुझावों के अनुरूप संशोधन का निवेदन है, कृपया स्वीकार करें---

1.मैं आज तक श्रृंगार को ही शुद्ध समझता था; भूल सुधार लूँगा। "शृंगार"( संशोधित)

2. मनुज हृदय आकाश आज तो धो जाऊँगा (संशोधित);  होना चाहिए था; अवधान का दोष है।

3. "कहाँ अब जाते हो तुम" (संशोधित)

4. वर्ग भेद का नाश वाली पंक्ति के स्थान पर-

वर्ग भेद के अंत हेतु अब उतरा हूँ मैं।।(संशोधित)

संशोधित हुआ

प्रणाम् 

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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Latest Activity

Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर, प्रस्तुत घनाक्षरी की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. 16,15 =31…"
45 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"काफ़िराना (लघुकथा) : प्रकृति की गोद में एक गुट के प्रवेश के साथ ही भयावह सन्नाटा पसर गया। हिंदू और…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मनचाही सभी सदस्यों नमन, आदरणीय तिलक कपूर साहब से लेकर भाई अजय गुप्त 'अजेय' सभी के…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपका कहना सही है, पुराने सदस्यों को भी अब सक्रिय हो जाना चाहिए।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"<span;>आदरणीय अजय जी <span;>आपकी अभिव्यक्ति का स्वागत है। यह मंच हमेशा से पारस्परिक…"
4 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सभी साथियों को प्रणाम, आदरणीय सौरभ जी ने एक गंभीर मुद्दे को उठाया है और इस पर चर्चा आवश्यक है।…"
6 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"विषय बहुत ही चुनकर देते हैं आप आदरणीय योगराज सर। पुराने दिन याद आते हैं इस आयोजन के..."
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक रक्ताले सर, प्रस्तुत रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।तीसरी और चौथी पंक्तियों को पढ़ते समय…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सुशील सरना जी, अच्छी रचना है सादर बधाई आपको"
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय रवि शुक्ला जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar updated their profile
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"भाई मयंक जी, व्यवहार में निरमलता व विनम्रता ही ज्ञान का परिचय देती । सभी वरिष्ठों का आशीष बना रहे…"
9 hours ago

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