For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल इस्लाह के लिए (मनोज कुमार अहसास)

2212 2212 2212 12


सज़दो का मेरा इश्क़ के ईनाम लिख दिया
साकी ने मेरे आंसुओं को जाम लिख दिया

सारे जहां की दौलते मुठ्ठी में आ गयीं
बेटी ने मेरे हाथ पर जब नाम लिख दिया

खुद को मिला के आ गया दुनिया की भीड़ में
उसने उदासियां का मेरी दाम लिख दिया

इस ज़िन्दगी के घाव कितने कम लगे मुझे
मैंने तड़फती सोच मे जब राम लिख दिया

हाथों के ज़ख्मो पेट की सिलवट को देखकर
घबरा के चारागर ने भी आराम लिख दिय

लपटों मे घिर न जाये कहीं ठुकराया फूल वो
उसको कबीरा वल्दियत इक राम लिख दिया

मेरी दुआ के बदले मे भेजा है शुक्रिया
बिगड़े मेरे नसीबो का इल्ज़ाम लिख दिया

'अहसास' तेरे ज़िक्र को कर पाया यूँ जमा
आखिर मे तेरे नाम ही पैगाम लिख दिया


मौलिक और अप्रकाशित

Views: 537

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2015 at 11:05am

आदरणीय मनोज भाई , गज़ल बहुत सुन्दर कही है , दिली बधाइयाँ आपको ।

नीचे के दो मिसरे की तक्तीअ एक बार और कर लीजियेगा --

लपटों मे घिर न जाये कहीं ठुकराया फूल वो

बिगड़े मेरे नसीबो का इल्ज़ाम लिख दिया

Comment by मनोज अहसास on September 10, 2015 at 7:32pm
बहुत आभार शकूर साहब
मुझे बहर के बारें में ज्यादा जानकारी नहीं है
छोटे छोटे कदमो से सीख रहा हूँ
आपसे मार्गदर्शन की चाह है
कृपिया स्पष्ठ रूप से निर्देश देने की कृपा करें
बहुत शुक्रिया
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 10, 2015 at 7:21pm
अहसासजी कोशिश अच्छी है बधाई स्वीकार करें। बस मैं इस बह्र को लेकर संशय में हूँ, इस बह्र में जिहाफ़ कैसे लगेगा? ये मेरी गलती भी हो सकती है।
Comment by मनोज अहसास on September 10, 2015 at 3:30pm
आप सभी का बहुत बहुत आभार
तहेदिल से शुक्रिया
बहुमूल्य इस्लाह का शुक्रिया

थोड़ी जल्दबाज़ी ज़रूर हुई है
गलतिया सुधारने का प्रयास करता हूँ
सादर
Comment by Sushil Sarna on September 9, 2015 at 8:09pm

सज़दो का मेरा इश्क़ के ईनाम लिख दिया

साकी ने मेरे आंसुओं को जाम लिख दिया

सारे जहां की दौलते मुठ्ठी में आ गयीं

बेटी ने मेरे हाथ पर जब नाम लिख दिया
वाह वाह और वाह आदरणीय जी … बहुत ही सुंदर और दिलकश भावों की इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by Ravi Shukla on September 9, 2015 at 5:42pm

आदरणीय मनोज जी । वाह वाह क्‍या बात है बड़ी सुन्‍दर ग़ज़ल कही है आपने

सारे जहां की दौलते मुठ्ठी में आ गयीं
बेटी ने मेरे हाथ पर जब नाम लिख दिया

इस शेर ने तो दिल बाग बाग कर दिया जनाब दिली दाद कुबूल करें

मतलअ में सजदों को बहुवचन कर रहे है तो, सजदो को मेरे इश्‍क का ईनाम लिख दिया भी कह सकते है । प्रवाह और निखर सकता है ।

शेर दर शेर बधाईयां कुबूल करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 9, 2015 at 5:36pm

आदरणीय मनोज भाई जी, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.....लगता है ग़ज़ल जल्दबाज़ी में पोस्ट हुई है. एक बार इन मिसरों को अवश्य देख लीजियेगा -

सज़दो का मेरा इश्क़ के ईनाम लिख दिया

उसने उदासियां का मेरी दाम लिख दिया

घबरा के चारागर ने भी आराम लिख दिय

लपटों मे घिर न जाये कहीं ठुकराया फूल वो

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
8 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
10 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
38 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
22 hours ago
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक आभार आपका। सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service