For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गरीब /लघुकथा /कान्ता राॅय

" पापा , हम गरीब क्यों है ? "
" नहीं बेटा हम गरीब कहाँ .... देखो तो ....तुम शहर के सबसे बडे़ स्कूल में जो पढते हो ! " बेटे को दुलारते हुए पिता ने गोद में बिठा लिया ।
"लेकिन पापा , मेरे दोस्त कहते है कि मै गरीब हूँ । " बच्चे का मन बेहाल सा था ।
" क्यूँ कहते है तुम्हें वो गरीब ... अभी तो ...उस दिन तुम्हारे जन्मदिन पर शानदार दावत दी तुम्हारे दोस्तों को ! " पिता मन को कड़ा कर रहे थे ।
" तभी तो कहा ! उस दिन हमारे घर आने से ही तो उनको मालूम हुआ की हम गरीब है । वो कहते है कि जिसके घर में एल ई डी , ए. सी. और कार नहीं , वो गरीब होते है । " हताश पिता मुंह फेर कर अब बेटे से नजर चुरा रहे थे ।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 773

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 20, 2015 at 2:18pm

सोचता है बाप अब दूकान में 

बच्चियों को क्या ख़बर क्या दाम है ! 

एक कटु यथार्थ को अभिव्यक्त करती लघुकथा के लिए बधाइयाँ. अब तो माँ-बाप भी 'Simple living high thinking' की बात नहीं करते. पब्लिक स्कूल वग़ैरह तो ऐसा समझाने से रहे ! जैसा न माहौल तारी है कि नैतिकता और संवेदना की ठोस बातें करता आदमी पिछडा या दकियानूस मान लिया जाता है, या फिर सामाजिक और व्यावहारिक रूप से असक्षम.

दिल को कचोटती हुई लघुकथा के लिए हार्दिक बधाइयाँ आदरणीया कान्ताजी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 8, 2015 at 9:22pm

आ० कान्ता रॉय जी 

भौतिक उपलब्धियों की अंतहीन होड़ को बच्चे अपने ही तरह से समझते हैं...

सद्गुणों की दौलत को संस्कारों में न पा पाने वाले अबोध बच्चे... अपनी चीज़ों को ग्रुप में दिखा कर आकर्षण का केंद्र बनने की कोशिश करते हैं. ऐसे में नन्हे बच्चों में कैसे भौतिकता को ही सब कुछ समझ ..गुणों को समझने की प्रवृत्ति का विकास किया जाए ...एक चुनौती होता है.

बड़े स्कूलों  में आजकल जन्मदिन के नाम पर प्रदर्शन की होड़ सी लग जाती है.... कक्षा के सहपाठियों को चोकलेटस ..चिप्स...बलून्स... कलम गिफ्ट्स आदि बर्थडे किड्स द्वारा दिया जाना... और वहीं घर पर जन्मदिन समारोह के बाद रिटर्न गिफ्ट्स दिया जाना...कहीं न कहीं बच्चे भी इस होड़ में भागीदार बनते जा रहे हैं कि उनका जन्मदिन दुसरे के जन्मदिन से ज्यादा प्रदर्शनकारी हो..

इस मानसिकता को बहुत सचेत मनस से समझने और न पनपने देने की आवश्यकता है...

आपने समाज में आज के एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू को लघुकथा की विषयवस्तु  बनाया है. इस चिंतनपरक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई

Comment by Harash Mahajan on September 8, 2015 at 1:33pm

आदरणीय kanta roy  जी बहुत ही मर्म स्पर्शी कथा आपकी ..!! आपकी हर कथा संवेद्मा लिए हुए.....दिल को छू सी जाती है.....आज की कथा थोडा दर्द लिए.....इंसानियत को पीड़ा देती हुई...बहुत ही अच्छे ढंग से आजकल के परिपेक्ष में कई गयी कथा ! बहुत बहुत बधाई | सादर !!

Comment by kanta roy on September 8, 2015 at 11:33am
पिता के सौ जतन एक अच्छी परवरिश के ध्वस्त हो उठते है जब पिता के सामने ये भौतिकवादी सोच बच्चों के जेहन में उठती है । पिता सदा बच्चों के लिए स्वंय के सुख को परे रख कर अर्थ से पूर्ण होने की कोशिश तो भरसक करता ही है । आपने परिस्थितियों का बिलकुल सही आकलन कर कथा को मान दिया है आदरणीया प्रतिभा जी । सादर नमन आपको ।
Comment by kanta roy on September 8, 2015 at 11:29am
कथा पसंदगी के लिए हृदयतल से आभार आपको आदरणीय मिथिलेश जी । बाकी बात जो आपने शीर्षक पर पुनर्विचार करने के लिए कहे है वो तो बहुत ही मुश्किल काम हुआ मेरे लिए । ऐसा कई कई बार होता है कि हमेशा शीर्षक पर ही उलझ जाती हूँ कथा लिखने के बाद । मै कोशिश करती हूँ कुछ सार्थक सोचने पर । सादर
Comment by kanta roy on September 8, 2015 at 11:14am
सदा मेरा हौसला बढाने के लिये आभार आपको आदरणीय तेजवीर सिंह जी ।
Comment by kanta roy on September 8, 2015 at 11:13am
तहेदिल से आभार आदरणीया ज्योत्सना जी कथा के मर्म को समझने हेतु ।
Comment by shree suneel on September 8, 2015 at 2:25am
ओहह! , ऐसे में एक पिता हताश उदास न हो तो क्या हो. कैसी कैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है एक मध्यम निम्न मध्यम वर्गीय को.
आदरणीया कांता राॅय जी, अच्छी लघु-कथा कही अापने. बधाई स्वीकार करें. सादर.
Comment by Ravi Prabhakar on September 7, 2015 at 10:22pm

आदरणीय कांता राय जी पहली बार कथा पढ़ी लगा ये जस्‍ट एक और लघुकथा है । दूसरी बार पढ़ने पर भी कुछ विशेष प्रभावित नहीं हुआ, लगा कथानक बहुत पुराना व घिसा है परन्‍तु एक बार और पढ़ने पर महसूस किया कि यह कितनी यथार्थपरक रचना है। देखने में भले ही मामूली लगे परन्‍तु इसका असर बहुत गहन व तीक्ष्‍ण है। एक आम आदमी को दर्द को बाखूबी उभारती इस प्रभावशाली व यथार्थपरक रचना के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं ।

Comment by pratibha pande on September 7, 2015 at 7:06pm

प्राइवेट स्कूलों में  निचले तबके वालों का कोटा सरकार ने लागू कर दिया है पर ऐसे बच्चे और उनके माता पिता इन स्कूलों में और ज्यादा कुंठित हो जाते हैं और बच्चों की  पढाई और विकास में भी असर पड़ता है ,इसी मर्म को बयाँ  करती आपकी ये रचना बहुत सटीक है बधाई

आपको आदरणीय कांता जी   

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
10 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
14 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
14 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
14 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service