For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सूरज बोला रात से, आना नदिया पास।
घूँघट ओढ़े मैं मिलूँ , मिल खेलेंगे रास । ।


गोद निशा रवि आ गया , सोया घुटने मोड़ ।
चन्दा भी अब चल पड़ा , तारा चादर ओढ़ । ।


पीड़ा वो ही जानता , खाए जिसने घाव ।
पाटन दृग रिसत रहे ,कोय न समझा भाव । ।

विरह मिलन दो पाट हैं, जानत हैं सब कोय ।
सबहि खुशी गम सम रहे, दुःख काहे को होय। । 

नदिया धीरे बह रही ; पुरवइया का जोर ।
चाँद ठिठोली कर रहा , चला क्षितिज जिस ओर । ।


बदरा घूँघट जा  छिपा  , चन्द्रमा  का  प्रकाश ।  
पिया मिलन को आ रहे, हिया उड़ा आकाश ।।


घाट घाट साधू फिरे , भरे कमंडल नीर।
नदिया सा जीवन बहे , शांत सुखद गंभीर । ।

मौलिक / अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

Views: 504

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 27, 2015 at 9:56am

 आदरणीय श्री गिरिराज भंडारी जी 

सादर अभिवादन 

आपका स्नेह मिला , आभार , 

१- 

विरह मिलन दो पाट हैं, जानत हैं सब कोय ।
सबहि खुशी गम सम रहे, दुःख काहे को होय। ।--संशोधित 

२- बदरा घूँघट जा  छिपा  , चन्द्रमा  का  प्रकाश । --- मात्रा  पूरी कर दी, अब ठीक हो तों पोस्ट संशोधित कर ली जाए , 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 26, 2015 at 8:32am

आदरणीय प्रदीप भाई , सभी दोहे बहुत अच्छे रचे हैं , आपने । आपको हार्द्क बधाइयाँ ।

गम खुशी सबहि सम रहे, दुःख काहे को होय । ।  -- इस पंक्ति मे गेयता बाधित है  , इसे यों कर लीजिये  --

सबहि खुशी गम सम रहे, दुःख काहे को होय । ।

चन्दा का प्रकाश ।   -- इस पद मे मात्रा कम है

दोहा वली के लिये आपको बधाइयाँ ।

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 25, 2015 at 11:06pm

आदरणीया   kalpna mishra bajpai जी सादर आभार , प्रोत्साहन हेतु . 

Comment by kalpna mishra bajpai on July 25, 2015 at 7:57pm

बहुत सुंदर दोहे 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service