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बंधन (लघुकथा)

बंधन 
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डाक्टर श्रीवास्तव की शुरू से आदत रही कि वे खुद और उनका स्टाफ समय पर अस्पताल पहुँचे। ज्यादातर वे समय से पहले अस्पताल पहुँच जाते ताकि अन्य राजकीय औपचारिकताओं के निर्वहन में खर्च होने वाले समय की प्रतिपूर्ति की जा सके और अधिक से अधिक मरीज देखे जा सकें। अपने सरल स्वभाव और मानवीय संवेदनाओं में अग्रणी होने के नाते क्षेत्र में बहुत लोंक प्रिय थे। मरीजों की भीड़ लगी थी और डाक्टर साहब तल्लीन थे सेवा भाव में। तभी मंत्री जी का आगमन हुआ। मंत्री का रूतबा और दबदबा दोनों ही कुछ ज्यदा था। उनके पहुँचते ही मरीजो को बाहर कर घेरा डाल दिया गया।
भारी भरकम शरीर और महीन आवाज वाले मंत्री जी बोले '' श्रीवास्तव , क्या बात बहुत छाए हुए हो। इस क्षेत्र में तुम्हारा बहुत नाम है , कमाई कुछ ज्यादा ही है। ''
'' नही मंत्री जी, आप जाँच करवा लीजिये, मैं निजी प्रैक्टिस भी नही करता न इस अस्पताल में मरीजों से ही कोई उगाही होती है , '' डाक्टर श्रीवास्तव सकपकाते हुए मंत्री जी से बोले।
''डाक्टर साहब ''बचा लो'' इन सब को, ट्रक ने मेरी बहू और बेटे को कुचल दिया। बहुत खून बह चुका है '' क्रन्दन सुन डाक्टर श्रीवास्तव उस ओर बढे ही थे कि मंत्री जी की आदेशात्मक आवाज ने उनके बढते कदम रोक दिये।
'' सर , पांच मिनट , ज़रा देख लूँ , इनको ''
''ठहरो , डाक्टर ''
'' सर वो मर जायेंगे ''
'' सोचता हूँ , तुम्हारी अपनी पोस्टिंग अपने ही क्षेत्र में करवा दूँ, इस बड़े घोटाले में तुम्हारा नाम डलवा दूँ , कुछ दिन आराम से रह लोगे , यहाँ बहुत काम करना पड़ता है तुम्हें। ' '
'' पर सर , आप अच्छी तरह जानते हैं। मैं तों निर्दोष हूँ , ये दंड किस लिए। ''
'' डाक्टर साहब , ये दंड नही पुरूस्कार है , तुम निर्दोष हो ,तभी तों , जाँच में भी निर्दोष पाए जाओगे , समझे। सारा मामला रफा दफा हो जाएगा । ''
डाक्टर साहब ये सुन सन्नाटे में आ गए '' मंत्री जी '' बचा लो '' ''बचा लो '' धम से कुर्सी पर गिर पड़े ,
मंत्री जी की गाड़ी अस्पताल परिसर के बाहर निकलते ही दुर्घटना ग्रस्त हो गयी , मंत्री जी बुरी तरह घायल थे , एक ही आवाज लगा रहे थे '' डाक्टर मुझे '' बचा लो ''
अपने पोते और बहू को बचाने की गुहार '' बचा लो' बचा लो '' न जाने कब की बंद हो चुकी थी।
मौलिक / अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 19, 2015 at 8:27am

आदरणीय Omprakash Kshatriya  जी 

सादर अभिवादन 

आपका स्नेह मुझे प्रोत्साहित करता है 

धन्यवाद . 

Comment by Omprakash Kshatriya on July 19, 2015 at 8:13am
बहुत ही अच्छी रचना । बधाई आप को ।
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 17, 2015 at 7:32pm

आदरणीया savitamishra जी 

सादर अभिवादन 

मेरे प्रयास को आपने सराहा , आभार है , 

Comment by savitamishra on July 17, 2015 at 7:15pm

लूट हर जगह...दबाव न जाने क्या क्या गुनाह करा देता हैं...बधाई कथा के लिये ..सादर नमस्ते आदरणीय

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 17, 2015 at 10:15am

आदरणीय तेजवीर सिंह जी 

सादर अभिवादन ,

आपका स्नेह प्राप्त हुआ,

सादर आभार 

Comment by TEJ VEER SINGH on July 17, 2015 at 10:11am

आदरणीय प्रदीप कुमर जी,राजनीतिज्ञों की लूट खसोट का बडी बेबाकी से चित्रण किया है!अच्छी लघुकथा बनी है! हार्दिक बधाई!

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