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आरती उतारूँ क्या?(छोटी बह्र की ग़ज़ल 'राज')

२१२ १२२ २

गली गली बुहारूँ क्या?

नालियाँ निथारूँ क्या ?

काम छोड़ कर अब मैं 

रास्ता निहारूँ क्या?

 

आसमां से उतरे हो  

आरती उतारूँ क्या?

 

धूल लग गई शायद

पाँव  भी पखारूँ क्या?

 

देखना है  चेह्रा  अब     

आईना सँवारूँ क्या?

 

लाए कुछ नए जुमले   

शब्द मैं सुधारूँ क्या? 

 

धूप लग रही क्या जी

अब्र को पुकारूँ क्या?

 

वोट मांगने आये 

पांच साल वारूँ क्या?  

 

स्याह क्यूँ हुई रंगत   

बोलिए निखारूँ क्या?

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 8, 2015 at 9:10pm

आ० सौरभ जी, इस उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु तहे दिल से आभार आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ|  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 8, 2015 at 6:38pm

बहुत खूब ! हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 3, 2015 at 9:43am

प्रिय महिमा श्री,आपका बहुत बहुत शुक्रिया.  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 3, 2015 at 9:42am

आ० श्री सुनील जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार आपका. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 3, 2015 at 9:41am

आ० डॉ० गोपाल भाई जी ,इस उत्साह वर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ सादर.  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 3, 2015 at 9:40am

आ० जवाहर लाल सिंह जी ,आपका तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 3, 2015 at 9:39am

आ० डॉ० आशुतोष मिश्रा जी,ये ग़ज़ल आपको प्रभावित की मेरा लिखना सार्थक हुआ आपकी प्रतिक्रिया तोषकारी होने के साथ उत्साह वर्धक भी है जिसके लिए आपका लख- लख आभार.   


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 3, 2015 at 9:37am

महर्षि त्रिपाठी जी ,ग़ज़ल आपको पसंद आई दिल से बहुत बहुत शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 3, 2015 at 9:36am

मिथिलेश भैया ,आपको ये छोटी बह्र पर व्यंगात्मक ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ अब कुछ संशोधन किया है एक बार और विचार व्यक्त करें |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 3, 2015 at 9:34am

आ० कांता रॉय जी ,इस व्यंगात्मक ग़ज़ल का लुत्फ़  उठाया आपने बहुत- बहुत शुक्रिया मेरा लिखना सफल हुआ हार्दिक आभार |.

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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
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"वाह आदरणीय वाह, पर्यावरण पर केंद्रित बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई ।"
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"आ. भाई हरिओम जी, सादर आभार।"
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