For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-48 में प्रस्तुत सभी रचनाएँ

(1). आ० अरुण कुमार निगम जी

ये प्यार मस्त नज़र के सिवा कुछ और नहीं
खुमार ए चढ़ती उमर के सिवा कुछ और नहीं |१|

न पूछ यार मुझे प्यार किसको कहते हैं
मेरी नज़र में हुनर के सिवा कुछ और नहीं |२|

विकास आप कहें , है लकीर टेढ़ी – सी
हमारी टूटी कमर के सिवा कुछ और नहीं |३|

क़ज़ा सुकून भरी नींद - सी लगी यारों
हयात सोज़ ए जिगर के सिवा कुछ और नहीं |४|

फँसा जो एक दफा फिर न आ सका बाहर
ये लोभ एक भँवर के सिवा कुछ और नहीं |५|

कभी था वक़्त बुरा , दर पे माँगने आया
सँभल गया वो कुँवर के सिवा कुछ और नहीं |६|

शराब सिर्फ इजाफा करे खजाने में
सही कहें तो जहर के सिवा कुछ और नहीं |७|

खिंची तो टूट गई कब भला रही कायम
तुम्हारी बात रबर के सिवा कुछ और नहीं |८|

बड़ा ही शोर हुआ स्वर्ग आ गया भू पर
हवा में उड़ती खबर के सिवा कुछ और नहीं |९|

गया न मर्ज मेरा बस दवा मिली कड़वी
जवाब डोन्ट फिकर के सिवा कुछ और नहीं |१०|

कुछ एक साल हुए , गर्म सूप से था जला
डिमांड चिल्ड बियर के सिवा कुछ और नहीं |११|
-------------------------------------------------------------------
(2). आ०  तिलक राज कपूर जी

मुझे मिला है हुनर के सिवा कुछ और नहीं
तलाशता हूँ नज़र के सिवा कुछ और नहीं।1।

ये जीस्त एक समर के सिवा कुछ और नहीं
मगर विकल्प बसर के सिवा कुछ और नहीं।2।

तमाम उम्र समेटा जिसे समझ अपना
पता चला कि सिफ़र के सिवा कुछ और नहीं।3।

बिना परों के उड़ा हूँ सदा अकेला मैं
लिये हूँ साथ जिगर के सिवा कुछ और नहीं।4।

अता खुदा ने मुझे की इसे कहूँ कैसे
हयात सोज़े जिगर के सिवा कुछ और नहीं।5।

भटक रहा है मुसाफिर नहीं मिली मंजि़ल
ये कोशिशों में कसर के सिवा कुछ और नहीं।6।

असर दुआ का कहूँ या किसी की मिन्नत का
मेरा वज़ूद मेहर के सिवा कुछ और नहीं।7।

जिसे यकीं था जहां एक दिन बदल देगा
उसी की मौत खबर के सिवा कुछ और नहीं।8।

किसान कर्ज़ चुका कर चला तो ये पाया
बचा है पास बखर के सिवा कुछ और नहीं।9।

नसीब कोस रहे हो मगर उसे देखो
जिसे मिला ही सहर के सिवा कुछ और नहीं।10।

रफ़ीक़ गैर हुए, देख कर फटी ज़ेबें
मिला अगर व मगर के सिवा कुछ और नहीं।11।
-----------------------------------------------------------------
(3). आ० गिरिराज भंडारी जी

इधर तो ज़ख़्मे जिगर के सिवा कुछ और नहीं
उदास, खोई नज़र के सिवा कुछ और नहीं

कहीं हँसी के न क़तरे दिखाई देंगे तुम्हें
“ हयात सोज़े जिगर के सिवा कुछ और नहीं ”

वो मुझसे पूछ्ते हैं ज़िन्दगी का हासिल क्या ?
कोई कहे, कि सिफर के सिवा कुछ और नहीं

न मंज़िलें , न मराहिल , न रोशनी  मेरी
मेरा नसीब ,सफर के सिवा कुछ और नहीं

अभी है हौसला बाक़ी ,मैं कैसे ये कह दूँ  
ख़ुदाया, अब तेरे दर के सिवा कुछ और नहीं
                
मै रोम रोम से देखूंगा , आयें बर तो कभी  
ये सारा जिस्म, नज़र के सिवा कुछ और नहीं

उफ़क पे दूर, वो जो रोशनी की आमद है
यक़ीन कर , वो सहर के सिवा कुछ और नहीं

सबब हयात की तारीकियों का मत पूछो
बहुत करीबी बशर के सिवा कुछ और नहीं

जो सिर्फ ज़िन्दगी देता है , कुछ नहीं लेता
अजल से दोस्त , शज़र के सिवा कुछ और नहीं
----------------------------------------------------------------------
(4) आ०  शिज्जु शकूर जी    

कुछ एक पल के शरर के सिवा कुछ और नहीं
ये हादिसा भी खबर के सिवा कुछ और नहीं

यहाँ तो दिल भी बदल जाते हैं मुकाम के साथ
ये वक्त राहगुज़र के सिवा कुछ और नहीं

 सदा-ए-सुब्ह, नई ज़िन्दगी अगर मानें
नहीं तो आम सहर के सिवा कुछ और नहीं

न जाने शह्र ये किसकी अमाँ में है क्या हो
यहाँ हर आँख में डर के सिवा कुछ और नहीं

डराये रात दरीचे से कोई पैकर सा
वो एक शाखे शजर के सिवा कुछ और नहीं

वफ़ा-ए-अहले ख़िरद देखिये जनाब यहाँ
वफ़ा झुके हुये सर के सिवा कुछ और नहीं

कभी अलम में कभी ख़ुम में डूब कर क्या हो
 “हयात सोज़े जिगर के सिवा कुछ और नही”

अमाँ =सुरक्षा
अहले ख़िरद =अक्ल वाले
ख़ुम =मटका जिसमें शराब रखी जाती है
--------------------------------------------------------------------
(5). आ० कल्पना रामानी जी

खुदा से माँगा महर के सिवा कुछ और नहीं।
दुआएँ देती नज़र के सिवा कुछ और नहीं।

जो जानते ही नहीं, साज़, राग, उनके लिए,
ग़ज़ल भी रूक्ष बहर के सिवा कुछ और नहीं।

पिलाके नाग को पय, बाद पूज लो चाहे,
मिलेगा दंश-ज़हर के सिवा कुछ और नहीं।

दुखा के गाँव का दिल चल दिये मिला लेकिन,
दिलों से तंग शहर के सिवा कुछ और नहीं।

जवाबी तोहफे मिलेंगे हमें भी कुदरत से,
सुनामी, बाढ़, कहर के सिवा कुछ और नहीं।

विपन्न हैं जिन्हें दिखता हसीन दुनिया में,
उदास शाम सहर के सिवा कुछ और नहीं।

खफ़ा हूँ उनसे जो कहते हैं “कल्पना” अक्सर,
“हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं”
------------------------------------------------------------------
(6) आ० अभिनव अरुण जी

ये चंद साँसों के घर के सिवा कुछ और नहीं |
सफ़र में मौत के डर के सिवा कुछ और नहीं |

इसे मलंगी कहो औघड़ी फ़कीरी कहो ,
मुझे तो उसकी ख़बर के सिवा कुछ और नहीं |

उजाले रोक रही हैं किले की दीवारें ,
शहर को दे तू सहर के सिवा कुछ और नहीं |

किसी की चाह में ये उम्र बीत जानी है ,
हयात सोज़े जिगर के सिवा कुछ और नहीं |

मंगाओ केक, जली मोमबत्तियां फूको ,
ये जश्न -ए- घटती उमर के सिवा कुछ और नहीं |

तमाम मील के पत्थर हटा दो रस्ते से ,
मुझे अज़ीज़ सफ़र के सिवा कुछ और नहीं |

गली गली में दुकानें हैं रंग रोगन की ,
हमारी शक्ल हुनर के सिवा कुछ और नहीं |

हरेक मोड़ खड़ा है लिए हुए पत्थर ,
ये हादिसों के सफ़र के सिवा कुछ और नहीं |

जिधर से गुज़रो उधर ही पलासी चौसा है ,
हमारी ज़ीस्त समर के सिवा कुछ और नहीं |

रगों में दौड़ रही है ये कैसी खुदगर्जी,
बदायूँ हमको खबर के सिवा कुछ और नहीं |

पसंद है वो हमें, बस गया है नज़रों में
नज़र नज़र है नज़र के सिवा कुछ और नहीं |
-----------------------------------------------------------
(7). आ० गुमनाम पिथौरागढ़ी जी

ये जिस्म गम के शज़र के सिवा कुछ और नहीं
जहां किसी नश्तर के के सिवा कुछ और नहीं

कहीं निगल ही न ले आपसी लगाव को भी
ये नफ़रतें अजगर के सिवा कुछ और नहीं

ज़माने के सब पापों को पी लिया शिव ने
कि शिव के पास जहर के सिवा कुछ और नहीं

भटकता ही मैं रहा उम्रभर कि अब यूँ लगे
ये ज़िन्दगी भी सफर के सिवा कुछ और नहीं

समझता था मैं ग़ज़ल होती है जिगर का लहू
मगर ग़ज़ल तो बहर के सिवा कुछ और नहीं

मैं गुनगुना न सका गीत ज़िन्दगी के कभी
हयात सोज़ ए जिगर के सिवा कुछ और नहीं
--------------------------------------------------------------
(8). आ० लक्ष्मण धामी जी

तुझे तो  चाह  सफर के सिवा  कुछ और नहीं
मगर मुझे तो ये घर के  सिवा कुछ और नहीं

मिलूँ भी  यार  तो कैसे  मिलूँ  तुझे  अब मैं
ये जिंदगी भी सफर के  सिवा  कुछ और नहीं

तलब तो  है कि  कभी  प्यार  की  सुधा दे दे
पिला मगर तू जहर के  सिवा कुछ और नहीं

रखे वो  पास में  गालिब कि मीर हमदम, पर
सुने कभी तो जिगर के  सिवा कुछ और नहीं

हमें  तो  खूब  लगी  खुशनुमा, कहे  क्यों तू
हयात सोज-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं

हर  एक  साँस  दुआ आपकी  रही जिसको
दवा उसे  तो नजर  के सिवा कुछ और नहीं

कतीब   काट    रहा   है   कतीब  पर  बैठा
ये आदमी तो कहर के सिवा कुछ और नहीं
-------------------------------------------------------------------------
(9). आ० राजेश कुमारी जी

चुनाव दौर–ए-समर के सिवा कुछ और नहीं
वतन में आज ग़दर के सिवा कुछ और नहीं

 छुपा हुआ वो  मेरा बचपना  सदा जिसमे
मेरे अजीज़ शहर  के सिवा कुछ और नहीं

नदी से मिलके समंदर भी हो गया मीठा
ये सोहबतों के असर के सिवा कुछ और नहीं

तमाम रात शमा जल गई जो हँस-हँस के  
अदा हसीन हुनर के सिवा कुछ और नहीं

कदम- कदम पे यहाँ इम्तहान से गुजरो
हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं

फ़कत खलिश के ये अखबार और  क्या देते
सितम या मौत खबर के सिवा कुछ और नहीं 

जहाँ उतार सकूँ बोझ मैं गुनाहों के
सही जगह तेरे दर के सिवा कुछ और नहीं

तेरा कयास कि सहरा में आबशार दिखें
फ़कत फ़रेब नज़र के सिवा कुछ और नहीं

उठाये बोझ सदा और उफ़ कभी न करे
वो मुफ़लिसी कि कमर के सिवा कुछ और नहीं  

तमाम उम्र गुजारी ख़जां से लड़-लड़ के
नसीब में तो कहर के सिवा कुछ और नहीं 

पुछल्ला ---

वजूद है न कहीं भूत या चुड़ैलों का
वो रूह में बसे डर के सिवा कुछ और नहीं
.
संशोधित*
-------------------------------------------------------------------
(10). आ० मंजरी पाण्डेय जी

जिधर भी देखूँ मै डर क़े सिवा क़ुछ और नही
ज़िंदगी आज ज़हर के सिवा कुछ और नहीं

रोज अस्मत ये ताऱ - ताऱ तार हुई जाती है
ख़ौफ़ आतंक औ डऱ के सिवा कुछ और नहीं

दर्द औरत के सीने में समाए रहता है
निगाह में समंदर के सिवा कुछ और नहीं

गली सड़क से गले लग के रो न पत्ती हैं
ये बेबसी क़े असर के सिवा कुछ और नहीं

मञ्जरी ,ख़ुद से खुद को थाम के ले चलना हैं
ज़िंदगी मचलती लहर के सिवा कुछ और नहीं.

मोम सी गल के भी पल को सुकूँ न मिलता है
हयात- सोज़ - ए ज़िगर के सिवा कुछ और नहीं

संशोधित*
---------------------------------------------------------------
(11). आ० मोहन बेगोवाल जी

डगर  हमेशा सफर, के सिवा कुछ और नहीं ׀
नज़र निशाने सहर, के सिवा कुछ और नहीं ׀(१)

हमें अभी न कहो  फूल क्यूँ खिले न यहाँ,
लगे आई न शजर, के सिवा कुछ और नहीं ׀(२)

मुझे  मलाल  हमेशा  यही,  बना था  रहा,
मिला वही उम्र भर, के सिवा कुछ और नहीं ׀(३)

अभी जैसे  घुमा लेते करीब आ   चिहरा
ऐसे लगा तेरे  दर, के सिवा कुछ और नहीं ׀(४)

गुबार अब नउमीदी  कोई यहाँ न रहे,
रहा  अगर व मगर,के सिवा कुछ और नहीं ׀(५)

कैसे कहें जो  मिली थी डगर, जख्म भी  मिले,
हयात सोज -ए -जिगर के सिवा कुछ और नहीं ׀(६)
--------------------------------------------------------------------------------
(12) आ० आशुतोष मिश्रा जी

हयात एक सफ़र के सिवा कुछ और नहीं
मुकाम रब के ही दर के सिवा कुछ और नहीं

मेरा जो हाल हुआ यार बस  सबब उसका
हसीं नजर के असर के सिवा कुछ और नहीं

ग़ज़ल को आप समझ लेते तो नहीं कहते
ग़ज़ल की जान बहर के सिवा कुछ और नहीं

उजाले देख के अंदाज मत लगाना तुम
है रोशनी तो सहर के सिवा कुछ और नहीं

किया जमाने ने मजबूर बेटियों को अब
लगे हयात जहर के सिवा कुछ और नहीं

कभी ये दौर भी आते हैं इस सियासत में
हवा में एक लहर के सिवा कुछ और नहीं

अजब ये दौर है चर्चा-ए-हुस्न में अब तो
हसींन गुल की कमर के सिवा कुछ और नहीं

रहे न जब हैं जिगर वाले कैसे हम कह दें
हयात सोज –ए- जिगर के सिवा कुछ और नहीं

परिंदे ख़ाक उड़ेंगे फलक पे वो यारों
हैं जिनके पास में पर के सिवा कुछ और नहीं

संशोधित*
-----------------------------------------------------------------------------
(13). आ० गजेन्द्र श्रोत्रिय जी

महकते एक शजर के सिवा कुछ और नहीं
मैरा वजूद इतर के सिवा कुछ और नहीं

अभी तो मैं हूँ सिफ़र के सिवा कुछ और नहीं
मगर नज़र में शिखर के सिवा कुछ और नहीं

सुकूँ तलाश न कर दिल की इस निजामत में
यहाँ पे एक ग़दर के सिवा कुछ और नहीं

फ़लक पे लाख सितारे अयाँ हुए हैं मगर
सरे-निगाह क़मर के सिवा कुछ और नहीं

बह्र उसी को अता करता है गुहर यारों
नज़र में जिसकी गुहर के सिवा कुछ और नहीं

परों से नाप रहे हैं फ़लक की हद को जो
मुकाम उनका शजर के सिवा कुछ और नहीं

वक़ार ख़ूब बुलंदी पे हो भले तेरा
ख़ुदा नहीं तू बशर के सिवा कुछ और नहीं

मिले न तेग-सिपर जंगजू भले तुझको
ख़याल में हो जफ़र के सिवा कुछ और नहीं

यहाँ पे सब हैं मुसाफ़िर चले चलो यारों
हयात एक सफ़र के सिवा कुछ और नहीं

यकीं दिलों में अगर है ख़ुदा बुतों में है
नहीं तो एक हजर के सिवा कुछ और नहीं

हसीन है यूँ बहुत गर वफ़ा मिले वर्ना
हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं

------------------------------------------------------------------
शजर- वृक्ष / पेड़,   वजूद- अस्तित्व,   इतर- इत्र
सिफ़र- शून्य,  ग़दर- हलचल / विद्रोह,  अयाँ- प्रकट होना
क़मर - चाँद,   बह्र - समुद्र,   गुहर- मोती
वक़ार- पराक्रम / ऐश्वर्य,  बशर - मनुष्य,

तेग- सिपर = तलवार और ढाल,
जंगजू- योद्धा,  जफ़र- जीत/ विजय,    हजर - पत्थर
---------------------------------------------------------------------
(14). आ० भुवन निस्तेज जी

ये रोग उसके असर के सिवा कुछ और नहीं
जो मेरी नूर-ए-नज़र के सिवा कुछ और नहीं

ये ज़िन्दगी भी सफ़र के सिवा कुछ और नहीं
नदी की तेज लहर के सिवा कुछ और नहीं

वो शख्श आया है बेकारियों के घाव लिए
है पास जिसके हुनर के सिवा कुछ और नहीं

तू मीठे बोल नहीं बोलता तो चुप रह दे
ज़बां पे तेरी ज़हर के सिवा कुछ और नहीं

वो मंजिलों पे बसर आपको मुबारक हो
हमारे पास सफ़र के सिवा कुछ और नहीं

समन्दरों से कहाँ कांच की तिजारत हो
मलाल है के गुहर के सिवा कुछ और नहीं

चला जो छोड़ इसे कारवां परिंदों का
यहाँ पे बूढ़े शज़र के सिवा कुछ और नहीं

न कोई रंग-ए-हिना, अब्र-ए-तर न गुल, तितली
'हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं'

बीमार अपने चरागों से बोल कुछ सह ले
ढली है रात सहर के सिवा कुछ और नहीं
--------------------------------------------------------------------
(15). आ० अरुण शर्मा अनंत जी

जहाँ दिलों में जहर के सिवा कुछ और नहीं,
वो विषधरों के नगर के सिवा कुछ और नहीं,

समाज में न दया धर्म प्रेम सच्चाई,
अधर्म पाप कहर के सिवा कुछ और नहीं,

दहेज़ खून बलात्कार चोरी घोटाले,
कि सुर्ख़ियों में खबर के सिवा कुछ और नहीं,

शिकन गरीब के माथे की चीख कहती है,
तमाम दर्द फिकर के सिवा कुछ और नहीं,

सुकून आपकी बाहों में मिल रहा वर्ना,
हयात सोज-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं

यहाँ उलझ के बड़ी देर छटपटाता हूँ,
घनी ये जुल्फ भँवर के सिवा कुछ और नहीं.
---------------------------------------------------------------------
(16). आ० शकील समर जी

हरेक सिम्त शजर के सिवा कुछ और नहीं
मेरी तलब है ख़िज़र के सिवा कुछ और नहीं

नजर की ज़द में लहर के सिवा कुछ और नहीं
मगर तलाश गुहर के सिवा कुछ और नहीं

हरेक रोज की उलझन है और दुश्वारी
हयात जैसे बहर के सिवा कुछ और नहीं

जला के बस्तियां संसद में चीखतें हैं वो
मुझे है फिक्र-ए-बशर के सिवा कुछ और नहीं

हरा-भरा है मगर ये शजर कटेगा जरूर
सभी को शौक़-ए-समर के सिवा कुछ और नहीं

तुम्हारे पास 'पहुंच' भी है और 'पैसा' भी
हमारे पास हुनर के सिवा कुछ और नहीं

किया जो इश्क तो ये राज भी खुला हम पर
'हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं'

बुरा न मानो तो इक बात मैं कहूं तुमसे
तेरी ये बिंदी क़मर के सिवा कुछ और नहीं

तुम्हारी आंखें मुझे लग रहीं हैं मयखाने
ये जाम तेरी नजर के सिवा कुछ और नहीं

सही था फैसला तेरा कि मुझसे दूर हुए
'शकील' एक भंवर के सिवा कुछ और नहीं
-------------------------------------------------------------------
(17). आ० अशफ़ाक़ अली (गुलशन खैराबादी) जी

ये जिंदगी है भवर के सिवा कुछ और नहीं
यहाँ है खौफ ओ खतर के सिवा कुछ और नही

सुराब जैसे सफ़र के सिवा कुछ और नहीं
ये सब फरेब नज़र से के सिवा कुछ और नहीं

तमाम राह मेरे ज़हनो दिल पे छाए रहे
तुम्हारे दीदए तर के सिवा कुछ और नहीं

किसी ने तलखिये हालात में कहा होगा
"हयात सोज़े जिगर के सिवा कुछ और नहीं"

ऐ दोस्त रूए मुनव्वर का तज़किरा जब हो
मिसाल शम्सो क़मर के सिवा कुछ और नहीं

भला करे की बुरा ये दवा की फितरत है
दुआ का काम असर के सिवा कुछ और नहीं

हर एक मोड़ पे कितने तिलस्म हैं 'गुलशन'
ये शहर जादू नगर के सिवा कुछ और नही
-----------------------------------------------------------
(18). आ० नीलेश शेवगांवकर

लगी है घर को, नज़र के सिवा कुछ और नहीं,
बचा है सूखे शजर के सिवा कुछ और नहीं.  
.
न मंज़िलें हैं न राहें न छाँव पलकों की,
मेरे सफ़र में सफ़र के सिवा कुछ और नहीं,
.
न आँख जान इसे, बंद सींप है नादाँ,   
कि अश्क भी तो गुहर के सिवा कुछ और नहीं.  .

डुबा न डाले कहीं आपको मेरी सुहबत,
कि मेरे पास भँवर के सिवा कुछ और नहीं.   .

कभी कभी ये भी देती है कुछ क़रार मगर,
“हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं.”.

नशे में इश्क़ के क्यूँ चूर “नूर” रहता है,
नशा, नशे के असर के सिवा कुछ और नहीं.
.
एक पुछल्ला

ये इन्तिख़ाब की लाई हुई सहर देखो,
हरेक शक्ल पे डर के सिवा कुछ और नहीं.
-----------------------------------------------------------
(19). आ० अखंड गहमरी जी

शराब यार कहर के सिवा कुछ और नहीं
कहो ये बात खबर के सिवा कुछ और नहीं

जली कही पर लाशे मगर धुआँ यहाँ था
मगर सुना यह डर के सिवा कुछ और नहीं

निभा नहीं सकते प्‍यार खा कसम देखो
वफा भी आज कहर के सिवा के कुछ और नहीं

न जिन्‍दगी हमको दे सकी कभी खुशियाँ
हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं

दिया नही हमने रोटी भी गरीबो को
दिया जो गुजर बसर के सिवा कुछ और नहीं
-------------------------------------------------------------------
(20). आ० गीतिका वेदिका जी

तेरा गुमान सिफर के सिवा कुछ और नहीं
तेरी तलाश भँवर के सिवा कुछ और नहीं

उदास रात रही भोर भी रही तन्हा
ये बददुआ के असर के सिवा कुछ और नहीं
~
महासमर है ये जीवन, तो श्वास रणभेरी
लगन और धैर्य भी शर के सिवा कुछ और नहीं
~
खुशी की बात भी लगती है एक खुशफ़हमी
हयात सोजे जिगर के सिवा कुछ और नहीं
~
न जाने किसकी दुआ से हैं हम सलामत, गो
हरेक साँस में डर के सिवा कुछ और नहीं
~
दवा न कोई दुआ काम आ सके, तय है
ये ताप उसके कहर के सिवा कुछ और नहीं

कहीं मलाल तुझे खा न जाये ए इंसा
कटे छ्टे ये शजर के सिवा कुछ और नहीं

संशोधित
--------------------------------------------------------------
(21). आ० इमरान खान जी

करीब राहगुज़र के सिवा कुछ और नहीं,
ये ज़ीस्त तल्ख सफर के सिवा कुछ और नहीं।

ये लब सिले हैं मेरे, अब तुम्हें सुनाने को,
दुखों में लिपटी खबर के सिवा कुछ और नहीं।

जो तुमसे दिल को लगाया तो मैंने पाया है,
उदास शामो सहर के सिवा कुछ और नहीं।

किसी ने बस्ती ए दिल को तबाह कर डाला,
दिल आज उजड़े नगर के सिवा कुछ और नहीं।

ये तन-बदन ये दिल-दिमाग जल गये क्योंके,
हयात सोज़े जिगर के सिवा कुछ और नहीं।

मेरे ज़हन पे तू हावी हुआ था अब लेकिन,
तू एक हल्के असर के सिवा कुछ और नहीं।
----------------------------------------------------------------

(22). आ० अमित कुमार अमित जी

समझा जिसे दिलबर के सिवा कुछ और नहीं l
घोंपे उसने खंज़र के सिवा कुछ और नहीं ll

नादान शायर है जिसे यह भी ख़बर नहीं l
हयात सोज़ - ए -ज़िगर के सिवा कुछ और नहीं ll
.
करोड़ो राज़ दफ़न इस नमकीन पानी में l
ये आंसू समन्दर के सिवा कुछ और नहीं ll
मैं मुग्ध हो जाता हूँ जब बोलता है तू l
तेरी बातें मंतर के सिवा कुछ और नहीं ll

तेरा अंदाज़ -ए -बयां खुद जानता है तू l
दिखाता है तेवर के सिवा कुछ और नहीं ll

जिसे हर बार गिर-गिर के संभाला, उनसे I
मिली हमको ठोकर के सिवा कुछ और नहीं ll
.
था नायक "अमित " प्रिय तेरे हर एक किस्से मैं I
अब किरदार जोकर के सिवा कुछ और नहीं ll
---------------------------------------------------------------
(23). आ० अजीत शर्मा आकाश जी

है सनसनाती खबर के सिवा कुछ और नहीं
ये ज़ीस्त अंधी डगर के सिवा कुछ और नहीं .

जहां में अब तो नज़र आये हर तरफ़ दिलबर
तुम्हारी मस्त नज़र के सिवा कुछ और नहीं .

जो तुम नहीं हो मेरे दिल जिगर में साँसों में
तो मेरे पास सिफ़र के सिवा कुछ और नहीं .

दिखायी देता है अब तो हरेक सिम्त मुझे
मेरे शरीके सफ़र के सिवा कुछ और नहीं .

कहें तो लोग कहें मैं मगर नहीं कहता
हयात सोज़े जिगर के सिवा कुछ और नहीं .
-------------------------------------------------------

* यदि भूलवश किसी साथी की रचना शामिल होने से रह गई हो तो तुरंत सूचित करें।

Views: 3301

Reply to This

Replies to This Discussion

इस कठिन ज़मीन पर 23 ग़ज़ल उपलब्धि है मंच की। संकलन के लिये योगराज जी को बधाई। आयोजन की सफलता के लिये सभी को बधाई। 

ग़ज़लों के किसान है इस मंच पर ..बंजर से बंजर ज़मीन से भी फ़सल ले सकते हैं ... बस गुरुजनों की इनायत बरसती रहे 

धन्यवाद, तिलक साहब, मैं व्यस्तता के कारण भाग नहीं ले पाया, सर, उमर की तकती करें तो उ + मर, १+२ और उम्र में म के साथ र जुड़ा हुआ है, तो सही क्या है, जैसा आपने बताया, कृपया शंका का समाधान करें 

कामयाब ..यादगार ..और हम सबको बहुत कुछ सिखा- बता गए मुशायरे के लिए सभी रचनाकार सह्पथिकों को आभार अभिवादन और बधाई ..आदरणीय श्री संपादक महोदय को हमारे उत्सावर्धन एवं इस संकलन के लिए नमन वंदन !! पाठशाला दिनानुदिन सुपर ३० हो रही है ..जय ओ बी ओ !

आदरणीय, योगराज प्रभाकर जी और आडमिन टीम को बधाई, नये और पुराने सब कलमकारों का मंच  जहाँ हर बार हमको कुछ नया सीखने को मिलता है - धन्यवाद - सुरिन्दर रत्ती  

 आदरनीय योगराज जी, आप जी को इस कोशिश और विशेष करके मेरी रचना के प्रति जो आप जी ने गलितयों की निशानदेही की, आप जी के साथ सभी उस्तादोंजनों  का धन्यवाद 

बहुत सुन्दर ग़ज़लें प्रस्तुत हुई हैं , आप सभी को बधाईयां।

 आ० कल्पना रामानी जी

जो जानते ही नहीं, साज़, राग, उनके लिए,
ग़ज़ल भी रूक्ष बहर के सिवा कुछ और नहीं।

Baat kehte ho Zid ki bakhubi aap aise 

Apni hakikat aapke khayal fasla kuchbhi nahi- Zid

 www.gazal-king.com

गजब गजब हर ग़ज़ल बहोत खूब है

तमाम उम्र समेटा जिसे समझ अपना
पता चला कि सिफ़र के सिवा कुछ और नहीं

वाह वाह 

बेहतरीन ग़ज़ल हुई है सभी।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
18 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
yesterday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service