For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खुदा तेरी ज़मीं का..............

1222 1222 1222 122


खुदा तेरी ज़मीं का जर्रा जर्रा बोलता है
करम तेरा जो हो तो बूटा बूटा बोलता है


किसी दिन मिलके तुझमें, बन मै जाऊँगा मसीहा
अना की जंग लड़ता मस्त कतरा बोलता है


बिछड़ना है सभी को इक न इक दिन, याद रख तू
नशेमन से बिछड़ता जर्द पत्ता बोलता है


हुनर का हो तू गर पक्का तो जीवन ज्यूँ शहद हो
निखर जा तप के मधुमक्खी का छत्ता बोलता है


बहुत दिल साफ़ होना भी नही होता है अच्छा
किसी का मै न हो पाया,ये शीशा बोलता है


गले से भी लगाया बज्म-ए-मय में भी बिठाया
किसी ने सच कहा है दोस्त,कपड़ा बोलता है

सुनो दीमक अहं की चट है जाती आदमी को

युं गर हो शख्स कम, ज्यादा तो ओह्दा बोलता है


हुई बारिश घरौंदे साथ बुनकर तोड़ बैठे
वही दिन थे सुनहरे दिल का बच्चा बोलता है


बड़े खुदगर्ज पत्थर लोग़ रहते हैं जमीं पर
फ़लक से टूटता बेकल सितारा बोलता है


**मौलिक व् अप्रकाशित**

Views: 680

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 8, 2015 at 11:04pm

बहुत बहुत आभार आ० vijai shankar सर! आपसे प्रशंसा पाना बहुत उत्साहित करता है!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 8, 2015 at 11:02pm

हौसलाफजाई के लिए शुक्रिया! भाई nazeel जी!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 8, 2015 at 11:01pm

खुले दिल से सराहना के लिए बहुत बहुत आभार! आ० निर्मल नदीम जी!

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 8, 2015 at 6:58pm
खुदा तेरी ज़मीं का जर्रा जर्रा बोलता है
करम तेरा जो हो तो बूटा बूटा बोलता है
भीत खूब, बहुत सुन्दर , प्रिय कृष्ण मिश्रा जी , बधाई , इस शानदार प्रस्तुति पर , सादर।
Comment by Nazeel on April 8, 2015 at 2:36pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है  भाई  कृष्णा मिश्रा  जी  हार्दिक बधाई। 

Comment by Nirmal Nadeem on April 8, 2015 at 1:39pm
बहुत खूब वाह वाह बहुत उम्दा
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 8, 2015 at 7:46am

आ० मिथिलेश सर!शुभकामनाओ के लिए तहे दिल से शुक्रिया!!आभार!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 8, 2015 at 7:43am

हौसलाफजाई के लिए आभार आ० सुनील प्रसाद जी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 7, 2015 at 8:04pm
आदरणीय कृष्ण भाई जी ग़ज़ल पर विस्तृत चर्चा देख रहा हूँ। इस प्रस्तुति पर बधाई। । बह्र में आपका प्रयास आश्वस्त करता है। अभ्यास जारी रहे तो कमाल की गज़लें निकाल ले जाएंगे। इस बह्र में ग़ज़ल कहना अभ्यास का शुरुआती दौर है। गुणीजनों के मार्गदर्शन से गज़लें निखरकर आएगी। आपको ढेर सारी शुभकामनायें।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on April 7, 2015 at 4:40pm
आदरणीय कृष्णा मिश्रा गोरखपुरी जी खुबसूरत ग़ज़ल कही आपने दाद है भाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
18 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service