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बन्द मुट्ठी का आसमान

मेरी बन्द मुट्ठी में
कसमसाता हुआ आसमान 
मुझे छोड दो
बाकी आसमान तुम्हारा है 
तलवों से ढ़की धरती
मुझे छोड दो  
बाकी धरती तुम्हारी है 
मेरे माथे की तीनों लकीरें 
तुम्हारे झुँझलाते हुये उन प्रश्नों 
का उत्तर हैं
जो किये थे तुमने 
मेरे हारते समय 
बर्षों से बन्द मेरी जुबान
शायद गल चुकी है
अब इसे तनिक भी हिलाया 
तो टूट जायेगी
तुम्हारे नाम के सिवाय 
इसे कुछ बोलना नहीं था
मगर तुमने इसकी 
इजाजत न दी
तो गल गयी मुँह में रखी रखी
मेरी कराहती हुयी
लाल ढ़ोरे पडी आँखों से 
निकलता हुआ दरिया 
तेज बहाव पर है 
तुम मत आना अभी 

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित



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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 5, 2015 at 10:25pm

आ० कटारा जी

अति सुन्दर i  वाह i

Comment by Hari Prakash Dubey on March 5, 2015 at 10:21pm

आदरणीय उमेश कटारा जी, बहुत बढ़िया हार्दिक बधाई , सादर !

Comment by umesh katara on March 4, 2015 at 2:58pm

आदरणीय Pari M Shlok जी शुक्रिया

Comment by Pari M Shlok on March 4, 2015 at 1:42pm
भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचना हेतु बधाई स्वीकार करें
Comment by umesh katara on March 4, 2015 at 1:41pm

आदरणीय़ krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी सादर आभार 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 4, 2015 at 11:22am

भावना का अतिरेक! आपको बधाई!सादर!

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