For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक 53 में सम्मिलित सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ)

परम स्नेही स्वजन,

मुशायरे का संकलन हाज़िर कर रहा हूँ| इस बार मुशायरे के संकलन करने में कार्यकारिणी सदस्य आदरणीय शिज्जू शकूर जी का सहयोग मिला इस हेतु उन्हें विशेष आभार| मिसरों में दो रंग भरे गए हैं लाल अर्थात बहर से ख़ारिज मिसरे और नीले अर्थात ऐब वाले मिसरे|

________________________________________________________________________________

श्री मिथिलेश वामनकर

आपकी ज़िद वही पुरानी थी
हर गलत बात तर्जुमानी थी

कौन बेआबरू किसे करता 
दुश्मनी यार खानदानी थी

वो भला इन्किलाब क्या लाए
जो कलम ख़ाम नातवानी थी

शहर की यूं हयात क्या कहिये
जो तबस्सुम न शादमानी थी

एक दरिया नहीं समझ पाया
ज़िन्दगी धूप और पानी थी

बचपना भी ज़रा बुढ़ापा भी
इन हदों में कही जवानी थी

हम तसव्वुर करे तिरी खुशबू

लोग कहते कि रातरानी थी

और रोते तमाम शब गुजरी
कुछ अज़ब तौर की कहानी थी

________________________________________________________________________________

श्री दिनेश कुमार

रस्मे महफ़िल मुझे निभानी थी
ख़ूबसूरत गिरह लगानी थी

ज़ेहन में थी ज़बाँ पे ला न सका
' कुछ अजब तौर की कहानी थी'

इश्क़े फ़ानी रवाँ हुआ मुझ पर
खाके ठोकर ही अक़्ल आनी थी

ज़र्द पत्तों से पूछ कर देखो
रात कितनी हवा सुहानी थी

नाव साहिल पे आके डूबी क्यूँ
मौज दर मौज इक कहानी थी

हाले दिल तुम से क्या बयाँ करते
दरमियाँ अपने बदगुमानी थी

उम्र से पहले वो हुआ बूढ़ा
उसकी बेटी हुई सयानी थी

चश्मे तर रहना ही मुकद्दर था
दिल के दरिया में बाढ़ आनी थी

रोज़ पीना व शायरी करना
अब यही मेरी ज़िन्दग़ानी थी

रौशनाई बनाई अश्क़ों से
मेरी गजलों में अब रवानी थी

साथ उनके गुजरती शाम 'दिनेश'
दिल की हसरत बहुत पुरानी थी

_______________________________________________________________________________

श्री भुवन निस्तेज

शम्अ यूँ तो नहीं बुझानी थी
कुछ हवा को भी शर्म आनी थी

वो सियासत बड़ी सयानी थी

पर इरादों में ही गिरानी थी

धूल दीवार से हटानी थी
तेरी तस्वीर जो लगानी थी

फिर ग़ज़ल ‘मीर’ पर हुई सज़दा
फिर वही ‘आह’ लौट आनी थी

आसमां ओढनी, ज़मीं बिस्तर
अपनी हर चीज खानदानी थी

था नहीं सर पे जीत का सेहरा
हौसलों ने न हार मानी थी

मैंने तारों से नूर छीना है
कुछ तो तारीक से निभानी थी

सख्त तेवर थे आँधियों के औ’
मेरी पुरज़ोर बादबानी थी

कुछ ये किरदार ही थे बे-चेहरा
“कुछ अजब तौर की कहानी थी”

ये हवाओं में आरियाँ देखो
मैंने उड़ने की आज ठानी थी

उसके जाने के बाद कहता हूँ
शाम रंगीन थी सुहानी थी

_________________________________________________________________________________

शिज्जु शकूर

फिर वही ग़म वो सरगिरानी थी
फिर वही तन्हा ज़िंदगानी थी

फिर वही दिन वही मुहब्बत और
तेरी धुँधली सी इक निशानी थी

छू गया था तेरा खयाल मुझे
सुबह चेहरे पे शादमानी थी

एक एहसास था मुकद्दस वो
“कुछ अजब तौर की कहानी थी”

लफ़्ज़ के लफ़्ज़ बह गये जिसमें
मेरे जज़्बात की रवानी थी

आपकी हस्ती का निशाँ न मिला
सरबलंदी महज ज़बानी थी

जल गये इस मुग़ालते में वो
आँच उन पर कोई न आनी थी

थे इरादे नसीब के कुछ और
जी ने लेकिन कुछ और ठानी थी

मुख़्तसर पल हयात के थे “शकूर”
हाँ वो भी एक चीज़ फ़ानी थी

___________________________________________________________________________

श्री गिरिराज भंडारी

जब मिली ताब आसमानी थी
क्यूँ भला कोई लनतरानी थी

जाविदाँ मौत जब हुई , तय था
ज़िन्दगी को तो मात खानी थी


ज़ेह्न में बात जब पुरानी थी 

शर्म से शक़्ल पानी पानी थी

अजनबी उस नये से मंज़र में
बस तेरी याद ही पुरानी थी

तुझ से हर दिन रहा गुलाबों सा
तुझ से सब रात, रातरानी थी

सारा आलम हुआ है पत्थर सा
तुम से हर शै में इक रवानी थी

रोशनी तब तलक रही मेह्माँ 
जब तलक तेरी मेजबानी थी

तेरी यादों के संग जो गुज़री
शाम बस इक वही सुहानी थी

मुस्तक़िल ग़म हमारे हिस्से थे 
हर खुशी सिर्फ आनी जानी थी

हर अमल दफ़्न था ज़मीं में पर
सिर्फ़ हसरत ही आसमानी थी

सुन के जड़वत हुये थे श्रोता ,सच
“ कुछ अजब तौर की कहानी थी ’’

__________________________________________________________________________________

श्री दिलबाग विर्क

जब चढ़ी आग-सी जवानी थी
चाल में आ गई रवानी थी ।

मैं जुबां पर यकीं न कर पाया
बात दिल की उसे बतानी थी ।

प्यार बरसे, दुआ यही माँगी
नफ़रतों की अनल बुझानी थी ।

इश्क़ ही हल मिला मुझे इसका
ज़िन्दगी दाँव पर लगानी थी ।

ग़म-ख़ुशी सब मिले मुहब्बत में
कुछ अजब तौर की कहानी थी ।

आँख के सामने सदा वो था
जब किया इश्क़, याद आनी थी ।

सीख लेते अगर इसे जीना
ज़िन्दगी तो बड़ी सुहानी थी ।

मारना सीखते अहम् अपना
' विर्क ' दीवार जो गिरानी थी ।

__________________________________________________________________________________

श्री निलेश शेवगाँवकर

कुछ तो तूफ़ान ने भी ठानी थी,
उस पे कश्ती भी बादबानी थी.

हर कहानी में इक कहानी थी 
हय! जवानी भी क्या जवानी थी.

मीर की शायरी सयानी थी,
‘कुछ अजब तौर की कहानी थी”

रात ख़्वाबो में कौन आया था,
सुब’ह साँसों में रातरानी थी. 

पढ़ते पढ़ते गुज़र गया शाइर,
हाथ में डायरी पुरानी थी. 

दिल में मेरे ठहर गया सहरा,
पहले दरियाओं सी रवानी थी.

रो पड़ा हँसते हँसते महफ़िल में, 
चोट दिल पर कोई पुरानी थी.

________________________________________________________________________________

श्रीमती राजेश कुमारी

ख़ूब ख़ुशहाल जिंदगानी थी

अम्न था चैन था जवानी थी

जानता था सभी लकीरों को
हाथ दौलत न आनी जानी थी

सब लुटाया वतन परस्ती में
खून में जोश था रवानी थी

थरथराते सभी जिसे सुनकर
कुछ अजब तौर की कहानी थी

दस बहाने बना गये उठकर
दास्ताँ तो अभी सुनानी थी

फूल को तोड़ ले गए ज़ालिम
सर पटकती वो बाग़वानी थी

जुल्म ढाया गिरा गए कहकर
ये इमारत बड़ी पुरानी थी

आज कंगाल है भिखारन है
जो कभी इक महल की रानी थी

बँट गया बीच में खड़ा बरगद 
अपने पुरखों की जो निशानी थी

_______________________________________________________________________________

श्री लक्ष्मण धामी

कमसिनी थी न तो जवानी थी
कुछ अजब तौर की कहानी थी

जिस्म से रूबरू न थे लेकिन
दरमियाँ बात इक रूहानी थी

कट रही थी जो खुशबयानी में
दर्द लिपटी वो जिंदगानी थी

गैर का दोष क्या तबाही में
रंजिशें खुद से ही पुरानी थी

छोड़ दामन जो चल दिया माँ का
रात वो भी न कम तूफानी थी

हर तरफ दौर मुफलिसी का था
भ्रष्ट शासन की जो निशानी थी

जल न पाये धुआँ धुआँ होकर
आग ऐसे भी क्या लगानी थी

प्यार का फूल किस तरह खिलता
नफरतों की जो बागवानी थी

छान लाते रहीक आँखों से 
आपने जब हमें पिलानी थी

_____________________________________________________________________________

श्री दिगंबर नासवा

ट्रंक लोहे का सुरमे-दानी थी
बस यही माँ की इक निशानी थी

अब जो चुप सी टंगी है खूँटी पर
खास अब्बू की शेरवानी थी

मिल के रहते थे मौज करते थे
घर वो खुशियों की राजधानी थी

अपने सपनों को कर सका पूरा
स्कूल टीचर की मेहरबानी थी

झील में तैरते शिकारे थे
ठण्ड थी चाय जाफरानी थी

सिलवटों ने बताई तो जाना
कुछ अजब तौर की कहानी थी

बूँद बन कर में रेत पर बिखरा
जिंदगी यूं भी आजमानी थी

छोड़ कर जा रहीं थी जब मुझको
मखमली शाल आसमानी थी

उम्र के साथ ही समझ आया
हाय क्या चीज़ भी जवानी थी

जेब में ले के आये हो खंजर 
रिश्तेदारी भी कुछ निभानी थी

उफ़ ये गहरा सा दाग माथे पर
बे-वफ़ा प्यार की निशानी थी

_____________________________________________________________________________-

श्री सचिन देव

मेरी चाहत की जो कहानी थी
वो किसी और की जुबानी थी

आई थी जो समझ निगाहों से
कुछ अजब तौर की कहानी थी

याद की रौशनी हुई मद्धिम
दिल मैं शम्मा नई जलानी थी

राज उसका ही था जमाने में 
खून में जिसके भी रवानी थी

आज बिखरा पड़ा था धरती पर 
जिसकी परवाज आसमानी थी

हर कदम पर मिली नई ठोकर
क्या करें राह खुद बनानी थी

__________________________________________________________________________

श्री मोहन बेगोवाल

कुछ हकीकत थी, कुछ कहानी थी |
बात दिल की हमें बतानी थी |

बात अब तक छुपाई जो तुम से, 
ऐ ! जमाने तुझे सुनानी थी |

जो बताया वही हुआ था कब,
बात कुछ तो हमें छुपानी थी |

रात जब आई नींद आ घेरा
नींद भी रात की दिवानी थी|

अब मिले हो कहा उसी ने ये,
सोचना तब था जब जवानी थी|

जो दिखाया हमें नजारे में,
कुछ अजब तौर की कहानी थी |

____________________________________________________________________________

वंदना जी

ख़्वाब सहलाती इक कहानी थी
रात सिरहाने मेरी नानी थी

रंज ही था न शादमानी थी
कुछ अजब तौर की कहानी थी

वो जो दिखती हैं रेत पर लहरें
वो कभी दरिया की रवानी थी

था जुदा फलसफा तेरा शायद
मुख्तलिफ़ मेरी तर्जुमानी थी

ये बची राख ये धुआं पूछे
जीस्त क्या सिर्फ राएगानी थी

कट गया नीम नीड़ भी उजड़े
भींत भाइयों ने जो उठानी थी

लो गुमाँ टूटा आखिरी दम पर
चिड़िया तो सच ही बेमकानी थी

_______________________________________________________________________________

श्री अजीत शर्मा ‘आकाश’

चाँदनी रात भी सुहानी थी
इक दिवाना था इक दिवानी थी ।

क्यों नहीं ओढ़ता-बिछाता मैं
दर्द ही तो तेरी निशानी थी ।

लुट गया राहे-इश्क़ में हँसकर
रस्म थी, रस्म तो निभानी थी ।

उनके ख़्वाबों में जब तलक हम थे
ज़िन्दगानी ही ज़िन्दगानी थी ।

हमने ही सब्र कर लिया थोड़ा
बात बिगड़ी हुई बनानी थी

सब समझ के भी कुछ न समझे हम
“कुछ अजब तौर की कहानी थी ” ।

____________________________________________________________________________

श्री गुमनाम पिथौरागढ़ी 

हुस्न था इश्क़ था कहानी थी 
खूब बेबाक वो जवानी थी

बाब दर बाब खूं के धब्बों में 
ऐ सियासत तेरी कहानी थी

कौन समझा सबब उदासी का 
यूँ दुनिया बड़ी सयानी थी

मार ठोकर जहां को खुश थे वो 
कैसी गुस्ताख़ वो जवानी थी

उम्र तो थी तवील पर मैंने 
खुदकुशी करने की ही ठानी थी

आज के बच्चों की कहानी में 
कोई राजा था ना ही रानी थी

उम्र जी तो लगा हमें गुमनाम 
बेवफा जीस्त दुनिया फानी थी

_____________________________________________________________________________

श्री अरुण कुमार निगम

साफ़ कुदरत से छेड़खानी थी
जिसकी कीमत तुम्हें चुकानी थी

दोष देते नदी - हवाओं को
बात इनकी किसी ने मानी थी ?

मेघ संदेस ले के आते थे
वो सदी किस कदर सुहानी थी

लीलते जा रहे हो गाँवों को
ज़िंदगी की जहाँ रवानी थी

व्यर्थ ही ढूँढता रहा पारस
मन में बस आग ही जलानी थी

आज अपनी जिसे बताते हो
वो शहीदों की राजधानी थी

स्वर्ण-पंछी, वो दूध की नदियाँ
कुछ अजब तौर की कहानी थी

_______________________________________________________________________________

श्रीमती छाया शुक्ला

दुश्मनी ये नहीं पुरानी थी 
धाक अपनी तुझे जमानी थी |

कर न पाए कभी सवाल सरल 
आज जो कहते हो कहानी थी |

याद तुम आये हर घड़ी मुझको 

भूलने की तुम ने तो ठानी थी |

लौट आये अगर सहज दिल से 
बात हो जाय जो बतानी थी |

अब न जीना कभी ख्यालों में 
जिन्दगी व्यर्थ कब बितानी थी |

अपन कहते चले गये सब कुछ
कुछ अजब तौर की कहानी थी

________________________________________________________________________

श्री लक्ष्मण रामानुज लडीवाला

खून की सच यही कहानी थी
सच कहे तो यही जुबानी थी |

हर सुबह भक्त की जुबा देखो
यह अजब भोर की कहानी थी

दोष देना नहीं फिजाओं को
बात प्रभु की किसी ने मानी थी ?

सुर्ख लब छू रहे अभी से ही
यह सही प्यार की निशानी थी |

ईश ने ही यही लिखा मानों
कुछ अजब तौर की कहानी थी |

कुछ नही ख़ास मै कमा पाया,
दिल में हसरत बहुत पुरानी थी |

___________________________________________________________________________________

श्री दयाराम मेठानी

रात वह तो बहुत सुहानी थी,
देश हित की सुनी कहानी थी।

जान अपनी लुटा गया कोई, 
प्यार की बस यही निशानी थी।

प्यार चाहा मिली जुदाई क्यों,
कुछ अजब तौर की कहानी थी।

जो मिला बेवफा मिला हमको,
ये हमारी असावधानी थी।

पी गई वो जहर बिना समझे, 
प्यार में कुछ अजब दिवानी थी।

______________________________________________________________________________

श्री कृष्ण सिंग पेला

आग था वो, अवाम पानी थी,
और हुकूमत उसे चलानी थी ।

तेग़ तहखाने में पुरानी थी
ख़ानदानी वही निशानी थी

ख़ौफ़ यूँ छा गया था बस्ती में
जिस्म से रूह तक बेगानी थी

बाग़ में तितलियों के नारे थे
बात अपनी उन्हें मनानी थी

उसके दीदार से जगी उम्मीद, 
उसमें थोडी बहुत जवानी थी ।

चाँद ने मुड के भी नहीं देखा, 
मुंतज़िर कब से रातरानी थी ।

ख़त्म होने की थी न गुंजाइश,
"कुछ अजब तौर की कहानी थी ।"

_______________________________________________________________________________

मिसरों को चिन्हित करने में कोई त्रुटि हुई हो अथवा किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो तो अविलम्ब सूचित करें|

Views: 3087

Reply to This

Replies to This Discussion

आदरणीय राणा प्रताप जी धन्यवाद, आभार 

तरही मुशायरा अंक 53 में सम्मिलित सभी रचनाकारों को बधाई ..........

आदरणीय राणा सर कृपया बताइये कि 

कट गया नीम नीड़ भी उजड़े
भींत भाइयों ने जो उठानी थी ... इस शेर में यदि 

 "भींत भाई  ने जो उठानी थी " कर दिया जाए अथवा  "भींत आँगन में जो उठानी थी" तो ज्यादा प्रभावी कौनसा होगा ?

मेरी प्राथमिकता  "भींत भाई  ने जो उठानी थी " है 

आजकल आयोजन के दौरान संशोधन बंद कर दिये गए हैं क्या ? 

सादर निवेदित 

आदरणीया वन्दना जी 

आजकल आयोजन के दौरान संशोधन बंद हो गए हैं, जिसका कारण यह है कि बार बार संशोधन के निवेदन आने से संकलन के समय काम का बोझ कई गुना बढ़ जाता था, इस परेशानी से बचने के लिए अब संशोधन केवल संकलन आ जाने के बाद ही स्वीकार्य है|

आपने जो दोनों सुझाव बताये हैं, बहरो वजन के लिहाज से तो ठीक हैं, खरे उतरते हैं परन्तु गज़लियत पर मुझे थोड़ा कमज़ोर लग रहे हैं| एक मिसरा मेरे ज़ेहन में भी आया है देखिये यदि आपको ठीक लगे

कट गया नीम नीड़ भी उजड़े

एक दीवार जो उठानी थी 

सादर

जी सर आपका मिसरा वाकई गुरुत्व से परिपूर्ण है

आपकी इज़ाजत से मैं इसे ही  प्रयोग करना चाहती हूँ कृपया अनुमति प्रदान करें 

आदरणीय राणा भाई, इस श्रम साध्य संकलन के लिए आप स्तुति के पात्र है. मेरी गजल के दो मिसरों में ऐब आगया है. कृपया उनमे निम्नानुसार संशोधन कर देने की कृपा करें...
मतले को
शम्अ यूँ तो नहीं बुझानी थी
कुछ हवा को भी शर्म आनी थी
कर दें.. व
दुसरे शेर के मिसरा ए उला को
वो सियासत बड़ी सायानी थी
करने की कृपा करें ..
सादर...

जी वांछित संशोधन कर दिया है|

मुशायरे  की गजलों के  संकलन और त्रुटियाँ सुधार से सभी सदस्यों को विशेषकर  मुझ जैसी  नव सिखियों  को  लाभान्वित  करने  के लिए  हार्दिक आभार स्वीकारे | संकलन से पूर्व ऊपर गजल का  आधार "कुछ अजब तौर की कहानी थी" 21 2212 1222 भी अंकित  काना  उचित  रहेगा ताकि 

जिन्होंने मुशायरे को नहीं देखा, उन्हें  इसकी  जानकारी हो सके | सादर 

आदरणीय राणा भाई संशोधन कर हेतु सादर धन्यवाद.....

मंच में प्रस्तुत मेरी पहली ग़ज़ल का मतला 

आपकी ज़िद वही पुरानी थी
हर गलत बात तर्जुमानी थी

मेरी पहली प्रस्तुति 

आदरणीय राणा सर, इस शेर में संशोधन कर चुका हूँ और आपने भी उसे ग़ज़ल में यथा स्थान अंकित कर दिया है किन्तु पुराना शेर अब तक नहीं हटा है - लाल रंग वाले इस शेर को हटाने का निवेदन है 

उस शहर की हयात क्या कहिये
ना तबस्सुम न शादमानी थी

आदरणीय राणा सर, इस शेर में संशोधन कर चुका हूँ और आपने भी उसे ग़ज़ल में यथा स्थान अंकित कर दिया है किन्तु पुराना शेर अब तक नहीं हटा है - लाल रंग वाले इस शेर को हटाने का निवेदन है

उस शहर की हयात क्या कहिये
ना तबस्सुम न शादमानी थी

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
22 hours ago
Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service