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काशी की दुनिया.........

काशी की दुनिया हो
या काबा की बस्ती हो
यूँ ही न उजड़े चाहे
फ़कीर बाबा की बस्ती हो।।
साहिल से बिछड़ी हुई
मुक़ाम-ए-पास हो जाए
लहरों में फँसती चाहे
केवट की कश्ती हो।।
शोहरत की मस्ती हो
या माले की हस्ती हो
यूँ ही न टूटे कोई चाहे
मुफ़लिसी में घरबां गिरस्ती हो।।
मातहतों की मस्ती हो
या निगाहबां की गस्ती हो
हो सके न हावी कभी चाहे
मेरे अहबाब की नारास्ती हो।। .... (नारास्ती-कपटता)
विश्वासों की छाया हो
आशुफ़्ता की सख्ती हो ..... (आशुफ़्ता-भ्रमित)
खड़ा मुसाफिर भीगे न जब
रिश्तों की छतनार दरख्ती हो।।
थाम ले मौला उन्हें
कुछ अपना समझकर
ज़मीर से भटके हों चाहे
कीमत गिरेबां की सस्ती हो।।
यूँ ही न उजड़े चाहे
फ़कीर बाबा की बस्ती हो...

.@आनन्द

"मौलिक व अप्रकाशित
06-09-2014

Views: 564

Comment

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Comment by MAHIMA SHREE on October 7, 2014 at 8:04pm

बहुत सुंदर ..बधाई आपको 

Comment by anand murthy on September 27, 2014 at 11:43pm

प्रोत्साहन हेतु हृदयतल से आभार !

Comment by Abhinav Arun on September 27, 2014 at 7:31pm

सुन्दर रचना के लिए हार्दिक साधुवाद !!

Comment by Chhaya Shukla on September 27, 2014 at 1:15pm

 आ. आनंद मूर्ती जी,

एक अलग अनुभूति मिली आपकी 
समरस भावना से पूर्ण नज्म पढकर 
सादर बधाई आपको 

Comment by Santlal Karun on September 21, 2014 at 9:37pm

आदरणीय आनंद मूर्ती जी,

इस समरसता की भावना से परिपूर्ण खूबसूरत नज्म के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! --

"शोहरत की मस्ती हो
या माले की हस्ती हो
यूँ ही न टूटे कोई चाहे
मुफ़लिसी में घरबां गिरस्ती हो।।"

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2014 at 3:44pm

सुंदर भाव रचना प्रस्तुति के लिए बधाई श्री आनंद मूर्ति जी 

Comment by Pawan Kumar on September 14, 2014 at 3:13pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति भईया ... सादर बधाई !

Comment by Shyam Narain Verma on September 13, 2014 at 10:02am
" अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई ................. "

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