For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

देह-भाव : पाँच भाव-शब्द // --सौरभ

१.
चिलचिलाती धूप सिखाती है
प्रेम करना..
तबतक वन
महुआ-पलाशों में बस
उलझा रहता है.

२.
तुम्हारी उंगलियों ने दबा कर मेरी हथेलियों को
जो कुछ कहा था उस दफ़े..
मेरा आकाश
बस वही बरतता है,
आजतक.

३.
अधरों का ज्वालामुखी जब-जब सक्रिय होता है
सोखने लग जाता है खौलती झील..
लावा उगलने के लिए !

४.
अनुभवहीनता
उत्कट निवेदन की सान्द्रता को अक्सर
विरल कर देती है.

५.
उन स्पर्शों के बोल कितने सुरीले थे !
काश.. उनकी वर्णमाला होती..
मेरा महाकाव्य पढ़तीं तुम !

**********
-सौरभ
**********
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1104

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 10, 2023 at 2:02pm

आपका सादर आभार, आदरणीय सुरेंद्र ’भ्रमर’ जी.

एक अरसे बाद धन्यवाद ज्ञापन रचना को सतह पर पुनः ळे आने की प्रक्रिया की तरह भी स्वीकार करें. 
सादर

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 18, 2014 at 12:08pm

उन स्पर्शों के बोल कितने सुरीले थे !
काश.. उनकी वर्णमाला होती..
मेरा महाकाव्य पढ़तीं तुम !

आदरणीय सौरभ जी बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ एक से बढ़ एक जीवन के बिभिन्न पहलू उजागर हुए और संवेदनाएं भी
भ्रमर ५


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 13, 2014 at 8:02pm

आपकी संवेदनापूरित प्रतिक्रिया मेरे प्रयास का संबल रही हैं, आदरणीय सत्यनारायणजी.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 13, 2014 at 8:01pm

आप जैसे युवा रचनाकारों से अनुमोदन पाना सदा से उत्साहित करता है.
हार्दिक धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 13, 2014 at 7:58pm

भाई अरुणजी, गत दिनों की चहल-पहल भरी सड़कों पर, जबकि आज वे निश्चल पगडंडियाँ भर भी नहीं रह गयी हैं, कभी-कभार अनायास चलना अच्छा लगता है. आपकी संवेदना भाव-दशाओं को संबल देती है.
हार्दिक धन्यवाद

Comment by Satyanarayan Singh on May 9, 2014 at 4:44pm

सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति इन क्षणिकाओं के माध्यम से साका रहुई  है आदरणीय बधाई स्वीकार करें 

चिलचिलाती धूप सिखाती है
प्रेम करना.., अधरों का ज्वालामुखी, अनुभवहीनता, स्पर्शों के बोल..... सब ही अति सुन्दर भाव मन को भा गए 

सादर नमन 

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on May 6, 2014 at 6:52pm

आदरणीया सौरभ जी

पहला, तीसरा और चौथा..गहन संकेंद्रण की ज़रूरत..भाव जैसे बीच भंवर में और दिमाग़ उसके चारो तरफ चक्कर लगाता हुआ.. कुछ समझता है कुछ नही समझता..एक पहेली जैसा..

दूसरा और पाँचवा..सहज ..जैसे धूप से परेशान मुसाफिर छाँव में आ चुका है..अच्छा लगता है..प्रसन्न चित्त..विजय का एहसास.

आपको पढ़ना गौरव की बात है..
इस सार्थक और ग़ूढ रचना के लिए.. तहे दिल से बधाई

Comment by Arun Sri on May 6, 2014 at 12:25pm

पिछले कुछ दिनों में कई बार पढ़ चुका हूँ ! लेकिन कुछ कह न सका ! कारण ये नहीं कि कुछ कह नही सकता या कुछ कहना नहीं चाहता बल्कि ये कि कविताओं का गहन परोक्ष मन को वहाँ पहुंचा दे रहा है हर बार जहाँ मैं हमेशा चुप ही रहा ! अब कुछ कहना पांडित्य-प्रदर्शन के अतिरिक्त और क्या होता आदरणीय ???

समझ में नहीं आता कि साधुवाद दूँ या कोसूं कि आप हर उस जगह पर ले गए जहाँ जाने से बचना होता है मन को !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 6, 2014 at 11:54am

जिस गहनता से आपने प्रस्तुति के सभी भाव-शब्दों को परखा है, आदरणीया, वह आपके पाठकीय दायित्व को ही बताता है.
प्रस्तुति को अनुमोदित करने के लिए हार्दिक आभार.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 6, 2014 at 11:52am

आपको प्रस्तुति के भाव पसंद आये यह मेरे प्रयास को मिला आपका अनुमोदन है, आदरणीय अखिलेशभाईजी.
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service