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ख़ाक में मिल जाएगा..

कोई कितना चाह ले , शक्ति से क्या वो जीतेगा
शक्ति का एक मौन भी ,उसपर कहर सा बीतेगा
तोड़ क्या पाएगा कोई शक्ति का फिर हौसला
पूज के शक्ति स्वरूपा क्या वो अब बच पाएगा ?
अपने पैरों पर कुल्हाड़ी खुद ही उसने मार ली
घाव अब नासूर होगा कब तलाक सह पाएगा
कब्र में हों पैर जिसके ,आग से है खेलता
कोई क्या काँधे चढ़ेगा ,स्वयं चित में जल जाएगा
दम्भी अभिमानी का दम्भ ,ख़ाक में मिल जाएगा

  मौलिक / अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 22, 2014 at 8:32am

अभिमान के वशीभूत हो शक्तिस्वरूपा का तिरस्कार करने वाले को नियति स्वतः ही सबक सिखाती है... ऐसे भावों को शब्दबद्ध करटी अभिव्यक्ति पर बधाई लीजिये आ० लता ओझा जी 

कुछ जगह टंकण त्रुटियाँ अर्थ ही बदल दे रही हैं ... उनके प्रति सचेत रहते हुए प्रस्तुतियां पोस्ट हों ये प्रयास होना चाहिए.

पुनः शुभकामनाएं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on April 15, 2014 at 12:24am
//घाव अब नासूर होगा कब तलाक सह पाएगा// सम्भवत: 'तलाक' नहीं आप तलक कहना चाहती हैं. टंकण की ग़लती से कुछ का कुछ अर्थ निकल सकता है. सादर.
Comment by Meena Pathak on April 14, 2014 at 12:24pm

बहुत सुन्दर .. बधाई आप को 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 14, 2014 at 11:50am

आदरणीया लता जी , सुन्दर रचना के लिये आपको बधाइयाँ !!

कृपया ध्यान दे...

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