बेशर्मी को ओढ़कर कायर हुआ समाज
चीखे अबला द्रोपदी, कौन बचाए लाज
कौन बचाए लाज, खुले घूमे उन्मादी
अपराधी आजाद, मिली ऐसी आजादी
कह लक्ष्मण कविराय,रहेगी जबतक नर्मी
बाहु बलों की जीत, छले तब तक बेशर्मी |
(2)
त्रेता के रघुवर मिले, द्वापर में बन कृष्ण ,
यादव कुल में जन्म ले,शासन किया वितृष्ण|
शासन किया वितृष्ण,सभी का मान बढ़ाया
देकर के उपदेश, धर्मं का पाठ पढ़ाया ||
कह लक्ष्मण कविराय, धर्म जीवन अध्येता
राम राज्य आदर्श, याद करते सब त्रेता |||
(3)
काशी काबा में सदा, खिंचती क्यों तलवार
अमन-चैन खोकर सभी, मरने को तैयार
मरने को तैयार, कौम को रहे लड़ाते
करे सियासत रोज,नहीं मिलजुल रह पाते
कह लक्ष्मण कविराय, शान्ति क्यों है आकाशी'
पूजा और अजान, चमन हो काबा काशी
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आप सही कह रही है आद. राजेश जी | इस छंद को पुनः देख कर संशोधित करता हूँ | ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया
आदरणीय लक्ष्मण जी ---यादव कुल में जन्म ले, ख़त्म किया वितष्ण यहाँ पंक्ति का अर्थ ही गलत हो रहा है --वितृष्ण =लोभ हीनता का भाव ,या वो भाव जीमे कोई लालच या प्यास ना हो ,ये अर्थ है वितृष्ण का ,अब देखिये ,विषम चरण में आपने क्या कहा ....बस इसी लिए भाव गड़बड़ है
छंद पसंद करने के लिये आपका हार्दिक आभार श्री श्याम नारायण वर्मा जी
छंद पर आपकी प्रतिक्रया से उत्साह वर्धन हुआ है आदरणीया राजेश कुमारी जी | आपका हार्दिक आभार
यादव कुल में जन्म ले, ख़त्म किया वितष्ण = इसकी जगह "समाप्त किया वितृष्ण" किया जा सकता है |
बहुत ही सुन्दर भावों से पूरित कुण्डलियां के लिए बहुत-बहुत बधार्इ स्वीकारें ............ सादर................... |
बहुत सुन्दर सार्थक कुण्डलियाँ रची हैं आ० लक्ष्मण जी तीनो ही अच्छी हैं किन्तु पहले वाली सबसे ज्यादा पसंद आई ,आपकी निरंतर मेहनत और प्रयास सफल हो रहा है मेरी ढेर सारी बधाई एवं शुभकामनाये .
दूसरी कुण्डलिया में --यादव कुल में जन्म ले, ख़त्म किया वितष्ण|--सम चरण में एक मात्रा मुझे कम लग रही है -आपने वितृष्ण में ५ मात्राएँ ली हैं किन्तु मुझे कुछ संशय है ,हो सकता है मैं ही गलत सोच रही हूँ आप फिर भी आश्वस्त हो लें
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