For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सार छंद एक अत्यंत सरल, गीतात्मक एवं लोकप्रिय मात्रिक छंद है.

हर पद के विषम या प्रथम चरण की कुल मात्रा १६ तथा सम या दूसरे चरण की कुल मात्रा १२ होती है. अर्थात, पदों की १६-१२ पर यति होती है.

पदों के दोनों चरणान्त गुरु-गुरु (ऽऽ, २२) या गुरु-लघु-लघु (ऽ।।, २११) या लघु-लघु-गुरु (।।ऽ, ११२) या लघु-लघु-लघु-लघु (।।।।, ११११) से होते हैं.

किन्तु गेयता के हिसाब से गुरु-गुरु से हुआ चरणान्त अत्युत्तम माना जाता है लेकिन ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं हुआ करती.

अलबत्ता यह अवश्य है, कि पदों के किसी चरणान्त में तगण (ऽऽ।, २२१), रगण (ऽ।ऽ, २१२), जगण (।ऽ।, १२१) का निर्माण न हो.

उदाहरण -
कोयल दीदी ! कोयल दीदी ! मन बसंत बौराया ।
सुरभित अलसित मधुमय मौसम, रसिक हृदय को भाया ॥

कोयल दीदी ! कोयल दीदी ! वन बसंत ले आयी ।
कूं कूं उसकी प्यारी बोली, हर जन-मन को भायी ॥     (श्री विंध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी ’विनय’)


इसी छंद का एक और प्रारूप है जो कभी लोक-समाज में अत्यंत लोकप्रिय हुआ करता था.

किन्तु अन्यान्य लोकप्रिय छंदों की तरह रचनाकारों के रचनाकर्म और उनके काव्य-व्यवहार का हिस्सा बना न रह सका. सार छंद के इस प्रारूप को ’छन्न पकैया’ के नाम से जानते हैं.


सार छंद के प्रथम चरण में ’छन्न-पकैया छन्न-पकैया’ लिखा जाता है और आगे छंद के सारे नियम पूर्ववत निभाये जाते हैं. ’छन्न पकैया छन्न पकैया’ एक तरह से टेक हुआ करती है जो उस छंद की कहन के प्रति श्रोता-पाठक का ध्यान आकर्षित करती हुई एक माहौल बनाती है और छंद के विषय हल्के-हल्के में, या कहिये बात की बात में, कई दफ़े गहरी बातें साझा कर जाते हैं.

यह कहना भी प्रासंगिक होगा कि सार छंद की इस पुरानी शैली को पुनः लोक-व्यवहार के मध्य प्रचलित करने का श्रेय ओबीओ मंच को जाता है.मंच के प्रधान सम्पादक आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ने इस लुप्तप्राय विधा को इस मंच के माध्यम से पुनः सफलतापूर्वक प्रतिस्थापित किया है.

छन्न पकैया छन्न पकैया, बजे ऐश का बाजा,
भूखी मरती जाये परजा, मौज उडाये राजा |

छन्न पकैया छन्न पकैया, सब वोटों की गोटी,
भूखे नंगे दल्ले भी अब ,खायें दारु बोटी |

छन्न पकैया छन्न पकैया, देख रहे हो कक्का,
बड़े-बड़े जो हैं बाहुबली, टिकट सभी का पक्का |  (श्री गणेश जी बाग़ी) 

छन्न पकैया छन्न पकैया, हर जुबान ये बातें
मस्ती मस्ती दिन हैं सारे, नशा नशा सी रातें |

छन्न पकैया छन्न पकैया, डर के पतझड़ भागे
सारी धरती ही मुझको तो, दुल्हन जैसी लागे |

छन्न पकैया छन्न पकैया, बात बनी है तगड़ी
बूढे अमलतास के सर पर, पीली पीली पगड़ी |   (श्री योगराज प्रभाकरजी)

*****

--सौरभ

ज्ञातव्य : आलेख का कथ्य उपलब्ध जानकारियों पर आधारित है.

Views: 8974

Replies to This Discussion

आदरणीय सौरभ भाई , सार छंद को उदाहरणों से , विस्तार पूर्वक समझाने के लिये आपका शुक्रिया ॥

छन्न पकैया छन्न पकैया , बात समझ में आई

सार छंद आलेख सुहाया , देता  दिली  बधाई ॥

छन्न पकैया छन्न पकैया, लेख हुआ बड़भागी
वाह-वाह कर पढ़ते जायें, सारे कवि-अनुरागी

आदरणीय गिरिराजभाईजी, यह लेख काम का बन पड़ा है, यह जानकर भला लगा है.

आभार

छन्न पकैया छन्न पकैया,मेरी आई बारी 

सीख रहा हूँ थोड़ा थोड़ा, बात कहूँ मै सारी 

आदरणीय सौरभ जी, पहली बार इस छंद की बारीकियों से अवगत हुआ हूँ । सरल शब्दों में आपने उत्तम जानकारी दी है।

 लिख भले न पायें कम से कम अब इस छंद की रचनाओं को आँख मूँद के तो नहीं पढ़ेंगे, समझ कर पढ़ेंगे । बहुत शुक्रिया आपका ।

//लिख भले न पायें कम से कम अब इस छंद की रचनाओं को आँख मूँद के तो नहीं पढ़ेंगे, समझ कर पढ़ेंगे //

सोच और जानकारी प्राप्त करने का यह भी एक सकारात्मक पहलू है, नादिर भाई. राग-रागिनियों या लय-ताल-सुर आदि का ज्ञान सामान्य व्यक्ति को भीमसेन जोशी या अलाउद्दीनखाँ डागर आदि जैसा उद्भट्ट शास्त्रीय गायक नहीं बना देता. किन्त्, इनकी समुचित जानकारी उसे एक समर्थ श्रोता अवश्य बनाता है जिनके कारण ही भीमसेन जोशी या अलाउद्दीन खाँ साहब उस स्तर पर गये और अपनी उपयोगिता बना पाये.
जानकार लोगों से बना जागरुक समाज ही अपने उन्नत सांस्कारिक भविष्य के सपने देख सकता है.

छन्न पकैया, छन्न पकैया, सौरभ सर आभारी 
सार छंद को समझ गए अब, लिखने की तैयारी 

छन्न पकैया छन्न पकैया, सुखकारी अनुमोदन !

सार छ्न्द की बात निराली, संवादों में शोधन !!

छन्न पकैया छन्न पकैया सार छंद अलबेला
सौरभ सर ने पेश किया है सब छंदों का मेला।।

छन्न पकैया छन्न पकैया मैं भी हूँ आभारी
धारण करके बातें मन में लिखने की तैयारी।।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service