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सार ललित छंद -- शशि पुरवार

छन्न पकैया छन्न पकैया ,छंदो का क्या कहना
एक है हीरा दूजा मोती, बने कलम का गहना

छन्न पकैया छन्न पकैया ,राग हुआ है कैसा
प्रेम रंग की होली खेलो ,दोन टके का पैसा


छन्न पकैया छन्न पकैया ,रंग भरी पिचकारी
बुरा न मानो होली है ,कह ,खेले दुनिया सारी

छन्न पकैया छन्न पकैया , होली खूब मनाये
बीती बाते बिसरा दे ,तो , प्रेम नीति अपनाये


छन्न पकैया छन्न पकैया ,दुनिया है सतरंगी
क्या झूठा है क्या सच्चा है, मुखड़े है दो रंगी

छन्न पकैया छन्न पकैया , बजे हाथ से ताली
छेड़े जीजा साली भागे , हो आधी घरवाली .


छन्न पकैया छन्न पकैया , सासू जी मुस्कायी
देवर - भाभी होली खेले , सैयां पे बन आयी।

----------- मौलिक और अप्रकाशित

समस्त ओ बी ओ परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 27, 2014 at 3:34pm

आदरणीया शशिजी, आपकी लगातार कोशिशें आशान्वित करती है. आपकी इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँ.

Comment by shashi purwar on March 19, 2014 at 6:39pm

आदरणीय गिरिराज जी धन्यवाद और आभार , उस दिन आपके शब्दो ने ही ऊर्जा भर दी थी कि बहना पीछे न रहना , और दिन भर छन्न पकैया लिखा बहुत आनंद आया।  

आभार, कमिया इंगित की अभी सुधार  करती हूँ जल्दबाजी गड़बड़ हो गयी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 19, 2014 at 6:04pm

आदरणीया शशि जी , सुन्दर छन्नपकैया के लिये आपको बधाइयाँ ॥ प्रेम निति अपनाये -11, और , मेरी आधी घरवाली- 14 . दोनो पदों मी मात्रा गड़बड़ है , सुधार लीजियेगा ॥

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