For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मै पागल मेरा मनवा पागल

मै पागल मेरा मनवा पागल

मै पागल  मेरा मनवा  पागल, ढूँढे इंसाँ  गली - गली ।

आज फरिश्ता भी गर कोई

इस  धरती पर  आ  जाए

इंसाँ  को  इंसाँ   से  लड़ते-

देख  देख  वह  शरमाए ।

बेटी  को  बदनाम किया , जो थी नाज़ों के साथ पली

मै  पागल  मेरा मनवा पागल,  ढूँढे इंसाँ  गली - गली ।

दूध दही की नदियां थी तब-

उनमें  गंदा  पानी   बहता

द्वारे – द्वारे, नगरी – नगरी,

विषधर यहाँ  पला  करता ।

कान्हा आकर इन्हें सम्हालो , झुलस  रही है कली – कली

मै पागल  मेरा मनवा  पागल,  ढूँढे  इंसाँ   गली – गली ।

विष का प्याला भरा हुआ है

जहर  भरा  है  कानों   मे

ना बलिदानी जज्बा है अब –

धरती  के  दीवानों   मे ।

जाने कब सुख शांति होगी , जाएगी कब दु:ख की बदली ?

मै  पागल  मेरा  मनवा पागल,  ढूँढे  इंसाँ   गली – गली ।

राम कृष्ण  निकलो मंदिर से

नानक  तुम  गुरुद्वारे   से

ईसा  निकलो  गिरजाघर से

अल्ला ! मस्जिद के द्वारे से ।

कहाँ  छुपी  मीरा दीवानी ,  कहाँ  छुपी  शबरी  पगली ?

मै  पागल  मेरा  मनवा पागल, ढूँढे  इंसाँ  गली – गली ।

मंदिर द्वारे सुबह गुजारी

मस्जिद द्वारे शाम ढली                    

मिला न इंसाँ  मुझको कोई

जाने  कैसी  हवा  चली ?

आएगी  ऐसी  बेला  जब,  होगी  जग  से  चला – चली

मै  पागल  मेरा  मनवा  पागल  ढूँढे इंसाँ  गली – गली ।

----------- मौलिक एवम अप्रकाशित --------- 

Views: 803

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by S. C. Brahmachari on March 4, 2014 at 4:53pm
गीत मे अभिव्यक्ति की प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक आभार बहन डॉ प्राची जी !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 4, 2014 at 1:50pm

सामाजिक विषमताओं और मानवीय नैतिक मूल्यों में हुए पतन को संवेदनशीलता के साथ आपका गीत अभिव्यक्त करता है 

इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आ० ब्रह्मचारी जी 

Comment by S. C. Brahmachari on February 24, 2014 at 9:52pm

श्री भ्रमर जी,

रचना की प्रशंसा हेतु हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ ।

Comment by S. C. Brahmachari on February 24, 2014 at 9:45pm

श्रद्धेय योगराज प्रभाकर जी,

आपके द्वारा की गयी रचना की प्रशंसा से मन मेरा अभिभूत हुआ , हार्दिक आभार स्वीकार करें ।  

Comment by S. C. Brahmachari on February 24, 2014 at 9:37pm
भाई गिरिराज भण्डारी जी,
देश मे सुख शांति की वर्षा अब इन्सानो के बस की बात नहीं लगती । इसलिए मीरा और शबरी को आकर राम और कृष्ण का आवाहन करना ही पड़ेगा । वैसे भी गीता मे कृष्ण ने कहा ही है - यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवती भारत ---
रचना आपको पसंद आई , आभार व्यक्त करता हूँ !
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 24, 2014 at 9:26pm

मै पागल  मेरा मनवा  पागल, ढूँढे इंसाँ  गली - गली ।

आज फरिश्ता भी गर कोई

इस  धरती पर  आ  जाए

इंसाँ  को  इंसाँ   से  लड़ते-

देख  देख  वह  शरमाए ।

बेटी  को  बदनाम किया , जो थी नाज़ों के साथ पली

मै  पागल  मेरा मनवा पागल,  ढूँढे इंसाँ  गली - गली ।

आदरणीय बह्मचारी जी....यथार्थ परक..आज के कड़वे सच को समाहित करते.. चेताते हुए सुन्दर रचना  ...बधाई
भ्रमर ५
प्रतापगढ़ उ.प्र.

Comment by S. C. Brahmachari on February 24, 2014 at 9:17pm
भाई नादिर खान जी,
आपके द्वारा की गयी रचना की प्रशंसा मन को छू गयी , शुक्रिया अदा करता हूँ
Comment by S. C. Brahmachari on February 24, 2014 at 9:11pm
भाई श्याम नारायण वर्मा जी,
रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार !

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 24, 2014 at 5:24am

बहुत खूब आदरणीय बह्मचारी जी, गीत सुन्दर हुआ है, हार्दिक बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 22, 2014 at 9:02pm

आदरणीय बह्मचारी जी , लाजवाब गीत की रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

राम कृष्ण  निकलो मंदिर से

नानक  तुम  गुरुद्वारे   से

ईसा  निकलो  गिरजाघर से

अल्ला ! मस्जिद के द्वारे से ।

कहाँ  छुपी  मीरा दीवानी ,  कहाँ  छुपी  शबरी  पगली ?

मै  पागल  मेरा  मनवा पागल, ढूँढे  इंसाँ  गली – गली । ------ ये बंद खूब पसंद आया , आपको बधाई ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service