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नूतन साल आया (गज़ल) - कल्पना रामानी

212221222122

 

पूर्ण कर अरमान, नूतन साल आया।

जाग रे इंसान, नूतन साल आया।

 

ख़ुशबुओं से तर हुईं बहती हवाएँ,

थम गए तूफान, नूतन साल आया।

 

गत भुलाकर खोल दे आगत के द्वारे,

छेड़ दे जय गान, नूतन साल आया।

 

कर विसर्जित अस्थियाँ गम के क्षणों की,

बाँटकर मुस्कान, नूतन साल आया। 

 

मन ये तेरा अब किसी भी लोभ मद से,

हो न पाए म्लान, नूतन साल आया।

 

पूछता है रब कि  तेरी, क्या रज़ा है,

माँग ले वरदान, नूतन साल आया।

 

आसमाँ आतुर तुझे हिय से लगाने,

चढ़ नए सोपान, नूतन साल आया।

 

मनुजता तेरी, कहीं प्राणी  जतन बिन,

खो न दे पहचान, नूतन साल आया।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by ajay sharma on January 6, 2014 at 11:32pm

ख़ुशबुओं से तर हुईं बहती हवाएँ,

थम गए तूफान, नूतन साल आया।

..................................

दाद क़ुबूल फारमाएं 

Comment by ajay sharma on January 6, 2014 at 11:29pm

कर विसर्जित अस्थियाँ गम के क्षणों की,

बाँटकर मुस्कान, नूतन साल आया। 

................................बहुत ही अच्छे अशआर हुए है 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 11:20pm

//...शब्दों को इधर उधर करके लिखना तो काव्य में सामान्य बात ही है।..//

जितना आजतक मैंने जाना है कई महत्त्वपूर्ण तथ्यों में से यह तथ्य भी अत्यंत विशेष है जिसके कारण ग़ज़ल अन्य काव्य-विधाओं से अलग है. मिसरे यदि सीधे वाक्य की तरह हो सके तो शेर अत्यंत सफल हुआ माना जाता है.

आपने इस ग़ज़ल को यदि नवगीत की तरह अपनाया है तो यह आपकी अवधारणा है. अन्यथा पूरी ग़ज़ल में एकसारता नहीं होती. और मुसल्सल ग़ज़ल भी विषयानुसार होती है.  जैसे इस ग़ज़ल में आपने विषय एक ही रखा है.

सादर

Comment by कल्पना रामानी on January 6, 2014 at 10:35pm

लेकिन आदरणीय, पूरी गजल एक ही भाव पर है, किसी भी शेर में तुम का प्रयोग नहीं है। यहाँ ऐसा भी विचार किया था " पूछता है रब कि  तेरी क्या रजा है?"लेकिन 'पूछता है'और 'पूछ रहा है' में बहुत फर्क है,   वाक्य अशुद्ध लगता है और शब्दों को इधर उधर करके लिखना तो काव्य में सामान्य बात ही है।   अब आप ही सुझाएँ कि गजल में क्या स्वीकार्य होगा।आप अनुभवी हैं। मेरे लिए आगे भी आसानी होगी। सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 9:17pm

//आपकी सुझाई हुई पंक्तियों से "तुम्हारी"शब्द से व्याकरण दोष उत्पन्न हो जाता है, यह मैंने भी सोचा था//

तुम्हारी के साथ सानी का मांग ले वरदान .. जैसा वाक्यांश अवश्य ही शतुर्ग़ुर्बा का दोष पैदा करेगा.

लेकिन ऐसे एकाकी संशोधन की सलाह दिया ही कहाँ है मैंने ? संशोधन जब भी होगा तो सर्वांग में होगा !

दूसरे, संशोधन की आवश्यकता ही क्यों ? इसे किसी संशोधन को स्वीकारने से पहले जान लेना अधिक समीचीन होगा. तो कारण यह है कि आपकी वर्तमान उक्त पंक्ति हिन्दी व्याकरण के लिहाज से भले शुद्ध हो ग़ज़ल के हिसाब से उचित नहीं है, जहाँ सीधी-सीधी बात की जाती है. ग़ज़ल के मिसरों के कई महत्त्वपूर्ण गुणों में से यह भी एक गुण है.  

सादर

Comment by कल्पना रामानी on January 6, 2014 at 7:15pm

आदरणीय सौरभ जी, गजल की सराहना द्वारा उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक आभार

आपकी सुझाई हुई पंक्तियों से "तुम्हारी"शब्द से व्याकरण दोष उत्पन्न हो जाता है, यह मैंने भी सोचा था,  और तेरी शब्द मनुजता के लिए ही है, यह शे'र मनुजता की मात्राओं के कारण ही गड़बड़ हुआ है।यह अरुण अनंत जी की टिप्पणी के बाद बदलकर लिखा है।  इसके लिए अभी तक उचित विकल्प नहीं सूझा। या तो हटा दूँगी या फिर संशोधित करूंगी।   सादर

Comment by कल्पना रामानी on January 6, 2014 at 7:09pm

आदरणीय गणेश जी, आपकी रचना पर उपस्थिति मनोबल में वृद्धि कर देती है। आपका हृदय से आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 3:55pm

बहुत बढिया ग़ज़ल हुई है, आदरणीया.. .

रब रहा है पूछ तेरी, क्या रज़ा है   को  पूछता है रब तुम्हारी क्या रज़ा है .. करना शायद उचित हो.

जतन पुल्लिंग शब्द है, आदरणीया.  या मनुजता  के लिए तेरी  शब्द है तो फिर मिसरे का वाक्य विन्यास ठीक करना उचित होगा.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 5, 2014 at 8:56pm

वाह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई है, प्रत्येक शेर एक उम्दा कहन के साथ प्रस्तुत हुआ है, बहुत बहुत बधाई आदरणीया कल्पना रामानी जी |

Comment by कल्पना रामानी on January 2, 2014 at 2:51pm

आदरणीय अरुण जी, गजल पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद। आपका संकेत 'मनुज'शब्द की ओर है, मैं समझ गई। अक्सर तीन मात्रिक शब्दों में गलती हो जाती है। एडिट कर देती हूँ।

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