For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शुभारंभ है नए साल का//नवगीत//कल्पना रामानी

फिर से नई कोपलें फूटीं,

खिला  गाँव का बूढ़ा  बरगद।

शुभारंभ है नए साल का,

सोच, सोच है मन में गदगद।

 

आज सामने, घर की मलिका

को उसने मुस्काते देखा।

बंद खिड़कियाँ खुलीं अचानक,

चुग्गा पाकर पाखी चहका।

 

खिसियाकर चुपचाप हो गया,

कोहरा जाने कहाँ नदारद।

  

खबर सुनी है,फिर अपनों के

उस  देहरी पर कदम पड़ेंगे।

नन्हीं सी मुस्कानों के भी,

कोने कोने बोल घुलेंगे।

 

स्वागत करने डटे हुए हैं,

धूल झाड़कर चौकी मसनद।

 

लहकेगी तुलसी चौरे पर,

चौबारे चौपाल जमेगी।

नरम हाथ की गरम रोटियाँ,

बहुरानी सबको परसेगी।

 

पिघल-पिघल कर बह निकलेगा

दो जोड़ी नयनों से पारद।

बरगद के मन द्वंद्व छिड़ा है,

कैसे हल हो यह समीकरण।

रिश्तों का हर नए साल में,

हो जाता है बस नवीकरण।

 

अपने चाहे दुनिया छोड़ें,

नहीं छूटता पर ऊँचा पद।

मौलिक व अप्रकाशित

कल्पना रामाँनी

Views: 924

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on December 27, 2013 at 3:24pm

आदरणीय गणेश जी सर्वप्रथम आपका मेरी रचना पर आने लिए हार्दिक आभार। जैसा की मैं बता चुकी हूँ कि मैं पढ-पढ़ कर ही सीख रही हूँ, नेमा जी की  रचना पढ़ने पर भी इस तरह का संकेत नहीं मिला कि बरगद आँगन में नहीं हो सकता। अब मैं सब समझ चुकी हूँ, और रचना में काफी शब्द बदल दिये हैं। आपका पुनः हृदय से आभार।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 27, 2013 at 1:34pm

आदरणीया कल्पना रमानी जी, सर्वप्रथम तो इस बेहतरीन नवगीत पर बधाई स्वीकार कीजिये,

यह सही है कि बरगद अथवा पीपल पेड़ आँगन में नहीं होता, कही अपवाद स्वरुप हो तो अलग बात, बरगद का बिम्ब घर में सबसे गम्भीर व्यक्ति/ बुजुर्ग व्यक्ति हेतु किया जाता है, यह अक्सर देखा जाता है कि बुजुर्ग व्यक्ति दरवाजे / बाहरी बरामदे/ बाहरी कमरे में स्थान पाते है उसी प्रकार घर के बाहर बरगद भी स्थान पाता है | भाई नेमा जी की रचना पर की गई मेरी टिप्प्णी में कही भी आँगन में बरगद होने को सही नहीं ठहराया गया है |

फिर से नई कोपलें फूटीं,

झूम रहा है बूढ़ा बरगद

शुभारंभ है नए साल का,

सोच, सोच है मन में गदगद।

यह एक सुझाव मात्र है | 

पुनः इस प्रस्तुति पर बधाई प्रेषित है |
 

Comment by कल्पना रामानी on December 27, 2013 at 12:04pm

आदरणीय, आपका कथन यथार्थता के निकट है, अपवाद रूप में ही इसे घरों में कहीं कहीं लगाया जाता होगा। जैसे"भारतकोष" एक स्थान पर मेंने पढ़ा है- ] बरगद के पेड़ को मघा नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है। मघा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति बरगद की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपने घर में बरगद के पेड़ को लगाते है।

 कुछ बदलाव करने की कोशिश करती  हूँ 

सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 11:59am

अनुभूति ई-पत्रिका के जिस पृष्ठ का हवाला दिया है आपने, आदरणीया, उसपर छपी कविता बहुत ऊँचे, बहुत ही ऊँचे दर्ज़े की है.
उसका बरगद भौतिक बरगद नहीं है वह सोच और व्यवहार का प्रतीक है. भौतिक बरगद गाँव में ही है.
मन में या मन के आँगन में बरगद का होना, वह भी परिवार के प्रथम पुरुष के मन में बरगद का होना बहुत ही आवश्यक है. वर्ना पूरे घर की सोच एकांगी हो जाती है और घर बिखर जाता है.

भाई बसंत नेमाजी की कविता के बरगद का मतलब भी इसी तरह का कुछ है. इन्होंने भी आँगन शब्द का अवश्य प्रयोग किया है लेकिन उन्हें अपनी कविताओं को अभी और कसना है. साथ ही अपनी भावनाओं और अपने प्रस्तुतीकरण को भी. घर के आँगन के किसी पेड़ के नीचे गाँव की चौपाल नहीं लगा करती जैसा कि उनकी उक्त कविता में वर्णित है. 
सादर
 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 11:46am

आदरणीया कल्पनाजी, जो चित्र आपने प्रस्तुत किया है क्या वह बहुसंख्य ग्रामीण घरों को परिभाषित करता है ?

सर्वोपरि, क्या यह बरगद है ?
अपवाद स्वरूप ही यह चित्र यदि आपके व्यक्तिगत जीवन का हिस्सेदार या भागीदार न हो तो ऐसे बिम्बों से अवश्य बचें.


द्वार पर नीम, अशोक, मौलश्री, कनैले, गुलमोहर आदि-आदि के होने की बात मैंने कई-कई बार की है. लेकिन द्वार पर. इक्के-दुक्के बड़े घरों के आँगन में हरसिंगार, कुछ बेलें, अमरूद, कई बार नीम भी हो सकते हैं. होते भी हैं. मगर बरगद का होना भी !?

आँगन में बरगद या पीपल के बिम्ब कभी या कहीं से भी सकारात्मक नहीं होते.

इनका भारतीय सामज में अलग ही महत्त्व है, तदनुरूप इनके विशेष अर्थ भी हैं.
किसी घर के आँगन में बरगद के वृक्ष का होना घर की निर्जनता या खुल के कहूँ तो भूत-बसेरा का प्रतीक हो सकता है !
आप अवश्य इसे सकारात्मक संवेदना के साथ समझें. 
सादर

Comment by कल्पना रामानी on December 27, 2013 at 10:59am

आदरणीय सौरभ जी, मैं भी हमेशा आपकी टिप्पणी की बेसब्री से प्रतीक्षा करती हूँ। मेरी सारी रचनाएँ कल्पना से ही रचित होती हैं। लेकिन बिम्ब वही लेती हूँ जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सटीक हों। चूंकि मैंने अपनी उम्र का 90 प्रतिशत हिस्सा चौखट के अंदर ही व्यतीत किया है, सीखने और लिखने का क्रम दो साल से ही शुरू हुआ है, जो लिखती हूँ, वेब से ही पढ़कर, समझकर ही; तो मेरे लिए और भी जरूरी हो जाता है कि सटीक तथ्यों या बिंबों के लिए गहरा अध्ययन करूँ। बिना गूगल सर्च किए या बिना शब्दकोश देखे कोई  रचना पूरी नहीं होती। आप ये लिंक्स देखेंगे तो स्वयं समझ जान जाएँगे। एक लिंक इसी साइट की  है, जहाँ रचना पर प्रतिक्रियाओं में कोई ऐसा संकेत नहीं है । आदरणीय गणेश बागी जी कि टिप्पणी भी आपने अवश्य पढ़ी होगी। यदि यह सिर्फ कपोल कल्पना है तो मैं फिर से इस रचना को पूरी  तरह बदलकर पोस्ट करूंगी। मैं स्वयं  वास्तविकता से परे कुछ लिखना नहीं पसंद करती हूँ। आपका मार्गदर्शन मुझे नई ऊर्जा औरप्रेरणा  देता रहा है। कृपया एक बार और कुछ समय देकर तथ्यों को स्पष्ट कीजिये। एक चित्र  भी यहीं संलग्न कर रही हूँ जो इनमें से एक लिंक पर है।

सादर  

http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:352797?id=5170231%3ABlogPost%3A352797&page=1#comments

Comment by कल्पना रामानी on December 27, 2013 at 10:51am


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 12:37am

आदरणीया कल्पनाजी, मैं आपकी रचनाओं का मुखर प्रशंसक रहा हूँ. कारण कि आपकी रचनाओं की सत्ता और उनकी अस्मिता से मेरा एक पाठक के तौर पर प्रगाढ सम्बन्ध हो जाता है. इस सम्बन्ध को ही मान देते हुए मैं आपकी रचनाओ पर खुल के कह पाता हूँ.
इसी समृद्ध भावना के अधिकार से कहूँ तो आपके इस नवगीत के मुखड़े के बिम्ब ने निराश किया है. बिम्ब, प्रतीक यदि यथार्थ के धरातल पर न हों तो हवाई हो जाते हैं और कविता की सार्थकता प्रश्नों के दायरे में आजाती है.

झूम रहा आँगन का बरगद.. आप कोई ग्रामीण आँगन बता सकती हैं जिसमें बरगद होता है ? मैंने तो ऐसा कोई घर या उसका आँगन नहीं देखा जिसमें बरगद होता हो.

वस्तुतः बरगद या पीपल जैसे पेड़ों की किसी गाँव में क्या अस्मिता होती है यह जानने और समझने का भी विषय है.

अंतरे की पंक्तियों में आपके अनुभव ने कमाल किया है.
स्वागत के क्रम में चौकी-मसनद का अपनी धूल झाड़ कर तैयार होना या नैनों से पारद का बह निकलना ऐसे ही सार्थक बिम्ब हैं.

आखिरी बंद फिर से बरगद का बिम्ब न निभा पाने से वायव्य हो गया है. वैसे उसके इंगित और तदनुरूप कथ्य अवश्य स्प्ष्ट हैं.
विश्वास है, मेरे कहे का निहितार्थ आप तक संप्रेषित हो पाया.
सादर

Comment by MAHIMA SHREE on December 25, 2013 at 10:07pm

आदरणीया कल्पना दी .. वाह वाह बहुत ही सुंदर नवगीत ..हर बंद ने मन मोह लिया.. हार्दिक बधाई आपको ..सादर 

Comment by Satyanarayan Singh on December 25, 2013 at 9:13pm

आ, कल्पना जी क्या कहना इस नवगीत को पढ़कर  मन झूम उठा है. ढेरो हार्दिक बधाई  स्वीकार करें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
1 hour ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार । भविष्य के लिए  अवगत…"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय  अशोक रक्ताले जी सृजन को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । बहुत सुन्दर सुझाव…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे…"
4 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
6 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service