For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब इबादत से न कोई रास्ता मुझको मिलेगा - गज़ल ( गिरिराज भंडारी )

2122     2122      2122     2122

 

ले   धनक  से  रंग  रंगोली    बना   ले  तू   खुशी  से

बेरहम   है   ये   जहाँ   क्यों   मांगता   है   आदमी से ॥

 

तेरे   ग़म   तेरे    ही  हैं   ये मानता  तू  क्यों   नहीं है

कब   तलक   सोये  रहेगा   जाग जा  अब  बेखुदी से ॥

 

जो ज़ुबाँ   रखते हैं  वो, चुप्पी   सभी ओढ़े   मिले  तो  

बेज़ुबाँ    कोई    मिले    तो    पूछ  उनकी   खामुशी  से ॥

 

कुछ मुझे तू ,कुछ तुझे मै, आ समझ लें बैठ संग में

कुछ        पाया है    किसी ने   बेवज़ह रस्साकशी से ॥

 

जब    इबादत से       कोई   रास्ता  मुझको मिलेगा  

तब    सहारा  माँग लूंगा मै भी इक दिन मयकशी से ॥

 

सब्र  थोड़ा, थोड़ी  रहमत हो  ख़ुदा  की, सब  मिलेगा 

इस तरह  कुछ भी  न पाया है  किसी ने सरकशी से ॥

****************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

 

Views: 776

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 5, 2014 at 6:43am

आदरणीय नादिर खान भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 5, 2014 at 6:42am

आदरणीय बैद्य नाथ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया के लिये , और दो शे र पसन्द करने के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by नादिर ख़ान on January 4, 2014 at 10:44pm

कुछ मुझे तू ,कुछ तुझे मै, आ समझ लें बैठ संग में

कुछ        पाया है    किसी ने   बेवज़ह रस्साकशी से ॥

आदरणीय गिरिराज जी बहुत उम्दा शेर कहा आपने, बहुत पसंद आया ।

Comment by Saarthi Baidyanath on January 4, 2014 at 9:59pm

तेरे   ग़म   तेरे    ही  हैं   ये मानता  तू  क्यों   नहीं है

कब   तलक   सोये  रहेगा   जाग जा  अब  बेखुदी से ॥.....बहुत ही खुलुसी शेर ..उम्दा है मान्यवर , इस शेर के क्या कहने 

जब    इबादत से       कोई   रास्ता  मुझको मिलेगा  

तब    सहारा  माँग लूंगा मै भी इक दिन मयकशी से ॥.....हसीनतर..:)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 4, 2014 at 9:51pm

आदरणीय विजिश भाई , सराहना के लिये आपका बहुत आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 4, 2014 at 9:50pm

आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिये आभारी हूँ ॥

Comment by M Vijish kumar on January 4, 2014 at 6:15pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल है आदरणीय अंकल जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 1:32am

बढिया ग़ज़ल हुई है..

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 17, 2013 at 10:27pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 17, 2013 at 10:20pm

बहुत बेहतरीन गजल , यह शेर खास पसंद आया दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय गिरिराज जी

कुछ मुझे तू ,कुछ तुझे मै, आ समझ लें बैठ संग में

कुछ        पाया है    किसी ने   बेवज़ह रस्साकशी से ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम. . . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। रोटी पर अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
yesterday
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Thursday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service