For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वही मै दे पाया ! … नवगीत !

वही मै दे पाया !   … नवगीत !
----------------------------------
जो था मेरे पास 
वही मै दे पाया
 
अंतर में खुशियों का सोता 
होठों पर मुस्कान 
चहरे पर है इंद्रधनुष और 
हाव-भाव में शान 
 
इठलाता मधुमास 
तुम्हारी खातिर लाया  …ज़ो था …वही मै दे पाया  
 
मन में था अवसाद 
अधर भी सूखे-सूखे 
नयन किसी दर्शन को 
जैसे  प्यासे -भूखे 
 
घुटन  नीर आभास 
यही बस लिख पाया …ज़ो था …वही मै दे पाया 
 
देने को तो दे सकता 
पर क्या है अपना
एक बार तो पूंछू 
उससे उसका सपना 
 
अपने-अपने वृत्त 
समय ने समझाया …ज़ो था …वही मै दे पाया 
 
जो था मेरे पास 
वही मै दे पाया ! …ज़ो था …वही मै दे पाया  
------------------------------------------------
अविनाश बागडे     मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 748

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by AVINASH S BAGDE on December 27, 2013 at 6:26am

राजेश कुमारीजी आपकी हौसला अफ़ज़ाई का ह्रदय से आभार 

Comment by AVINASH S BAGDE on December 27, 2013 at 6:25am

आदरणीय आपके इस विवेचन ने मेरी रचना को  जो सम्मान दियाहै उसके धन्यवाद हेतु शब्द नहीं //सौरभ जी साधुवाद आपकी भावनाओं का। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 1:16am

आदरणीय अविनाश भाईजी, आपके इस नवगीत की ऊँचाई अन्य विधाओं पर आपकी रचनाओं से कहीं ऊँची है.
एक-एक बन्द और उनकी आधार पंक्तियाँ अपने आप में अत्यंत समृद्ध हैं. हर बिम्ब पर मैं आपको बार-बार बधाइयाँ दे रहा हूँ.
इस नवगीत के कथ्य के लिए हृदय से बधाई लीजिये.

हाँ, यह भी अवश्य है कि आपने शिल्पपक्ष को अत्यंत हाशिये पर रख छोड़ा है. पंक्तियो की मात्रिकता बेहतर कसावट मांगती हैं
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 26, 2013 at 10:23am
देने को तो दे सकता 
पर क्या है अपना
एक बार तो पूंछू 
उससे उसका सपना 
 
अपने-अपने वृत्त 
समय ने समझाया …ज़ो था …वही मै दे पाया 
 

वाह बहुत सुन्दर नवगीत रचा है अविनाश जी बहुत-बहुत बधाई. 

Comment by AVINASH S BAGDE on December 26, 2013 at 10:21am
आदरणीय Satyanarayan Singh जी 
बहुत बहुत शुक्रिया ...
Comment by AVINASH S BAGDE on December 26, 2013 at 10:21am

 

आभार आदरणीय अरुन शर्मा 'अनन्त' जी 
बहुत बहुत शुक्रिया 
Comment by AVINASH S BAGDE on December 26, 2013 at 10:20am

महीमा जी आपके इस शब्द बल का आभारी हूँ 

Comment by MAHIMA SHREE on December 25, 2013 at 10:15pm
देने को तो दे सकता 
पर क्या है अपना
एक बार तो पूंछू 
उससे उसका सपना 
 
अपने-अपने वृत्त 
समय ने समझाया …ज़ो था …वही मै दे पाया ... ह्रदयस्पर्शी नवगीत आदरणीय अविनाश सर हार्दिक बधाई आपको .सादर 
 
Comment by Satyanarayan Singh on December 25, 2013 at 9:04pm

आ. अविनाश जी  विभिन्न मनोदशाओं की अभिव्यक्ति इस नवगीत के माध्यम से साकार हुई है. हार्दिक बधाई.

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 25, 2013 at 1:41pm

आदरणीय अविनाश भाई जी वाह बहुत ही सुन्दर मधुर नवगीत रचा है आपने बहुत बहुत बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service