For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज्वार भाटा (अन्नपूर्णा बाजपेई)

वो हिरनी सी चंचल आंखे

कभी मुसकुराती हुई 

खामोश है अब ...... 

एक ज्वार भाटा आकर  

बहा ले गया है सब ...

  वो रिक्त आंखे

अब नहीं देखती

कोई सपना मधुर

क्योंकि उनसे छीना है

किसी ने हक़

स्वप्न देखने का । 

वे  अब नहीं ताकती

किसी की राह

क्योंकि वे खामोश है

शायद पत्थर हो गई है........ 

किसी ने छीना है 

उनसे जीने की खुशी

उनकी मुस्कुराहट

उनकी चंचलता  

किसी व्याघ्र के

मुंह मे मेमेने के जैसी

वो सहमी सी रहती है

वो मुसकुराती चंचल आँखें ......

 

 अप्रकाशित एवं मौलिक 

यथा संशोधित 

 

 

Views: 521

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by annapurna bajpai on December 27, 2013 at 10:30pm

आदरणीय बृजेश जी एवं आदरणीय सौरभ जी मुझे आप दोनों की टिप्पणी से मार्ग दर्शन मिला , मै ध्यान रखूंगी । आप विदु लोगों का स्नेह मुझे इसी प्रकार टिप्पणी रूप मे मिलता रहे । सादर । 

Comment by annapurna bajpai on December 27, 2013 at 10:23pm

आदरणीय गिरिराज जी , कुंती दीदी , लक्ष्मण जी , जितेंद्र जी ,महिमा जी , नादिर खान जी आप सभी को रचना पसंद करने के लिए हार्दिक आभार । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 3:39pm

मैं भाई बृजेश जी के कहे को बार-बार अनुमोदन करना चाहूँगा.
उन्होंने लाख टके (रुपये) की बात कही है.
सादर

Comment by नादिर ख़ान on December 27, 2013 at 12:07am

सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा जी ।

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 7:42pm

एक प्रताड़ित  स्त्री  की अंतर व्यथा को अच्छी अभिवयक्ति दी है आपने .. हार्दिक बधाई आ. अन्नपूर्णा  जी ..सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 26, 2013 at 10:59am

सच! जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते है, दे जाते है केवल सूनापन, इस गहरी प्रभावशाली रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीया अन्नपूर्णा जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2013 at 6:39am

आदरणीया अन्नपूर्णा जी ,

रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by coontee mukerji on December 25, 2013 at 9:21pm

रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 25, 2013 at 8:36pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी , सुन्दर भाव पूएण रचना के लिये आपको बधाई ॥

Comment by बृजेश नीरज on December 25, 2013 at 8:16pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी आप रचना लिखकर संतुष्ट हो जाती हैं और उसे प्रकाशित कर देती हैं! हर रचना कुछ समय चाहती है, उसकी सदा इच्छा होती है कि रचनाकार उसे थोड़ा लाड़-दुलार दे! रचना से उसका हक न छीना करें!

इस अभिव्यक्ति के लिए आपको हार्दिक बधाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ग़ज़ल ~2122 1122 1122 22/112 तोड़ कर दर्द की दीवार वो बाहर निकला  दिल-ए-मुज़्तर से मिरे एक…"
11 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service