For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

बहर-ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽ
.
ज़िंदगी कैसी बग़ावत हो गई।
मौसमों से भी अदावत हो गई॥
.
ले चली है हाँकती जाने किधर,
वासना सबकी महावत हो गई।
.
संयमी का पेट आधा ही भरा,
भोगियों की रोज़ दावत हो गई।
.
चापलूसी है चलन में इन दिनों,
वीरता केवल कहावत हो गई।
.
रुक गई थी काँप के दो पल 'रवी',
साँस मेरी फिर यथावत हो गई॥
.
-मौलिक व अप्रकाशित॥

Views: 722

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prakash on December 3, 2013 at 1:54pm
आपका आशीर्वाद मिलना सचमुच गर्व की बात है। प्रयासों को बल और लेखनी को संबल मिला है।सराहना तथा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद। आशीर्वाद बनाए रखें आदरणीय॥
Comment by वीनस केसरी on December 3, 2013 at 2:54am

गज़ब गज़ब ..

जिंदाबाद
बेहद कामयाब ग़ज़ल हुई है ... ठेरो दाद

Comment by Ravi Prakash on December 2, 2013 at 11:43am
आपसे नहीं छूटा आदरणीय, मेरा ही रचना क्रम बाधित हो गया था। बहरहाल हार्दिक धन्यवाद॥
Comment by विजय मिश्र on December 2, 2013 at 10:31am
रविजी ! बहुत दिन बाद दर्शन हुए , मुझसे छुटा या आप हीनहीं आये ,पता नहीं | सुंदर रचना , बधाई |
Comment by Ravi Prakash on November 30, 2013 at 2:11pm
सराहना तथा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय जितेन्द्र जी एवं राजेश जी। आशीर्वाद बनाए रखें॥
Comment by राजेश 'मृदु' on November 30, 2013 at 2:03pm

सुंदर प्रस्‍तुति हेतु हार्दिक बधाई, सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 30, 2013 at 9:28am

संयमी का पेट आधा ही भरा,
भोगियों की रोज़ दावत हो गई।........वाह! क्या बात कही है,

चापलूसी है चलन में इन दिनों,
वीरता केवल कहावत हो गई।............यह तो शत-प्रतिशत सच है

आज के समय में पूर्ण रूप से फिट है, हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय रवि जी

Comment by Ravi Prakash on November 30, 2013 at 7:03am
इतने सूक्ष्म विवेचन, विश्लेषण तथा मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय अजय जी। आशीर्वाद बनाए रखें॥
Comment by ajay sharma on November 29, 2013 at 11:28pm

ले चली है हाँकती जाने किधर,
वासना सबकी महावत हो गई।   bahut khoob 
.
संयमी का पेट आधा ही भरा,
भोगियों की रोज़ दावत हो गई।   100% kalyugi sach 
.
चापलूसी है चलन में इन दिनों,
वीरता केवल कहावत हो गई।      200% tathyaprna  
.
रुक गई थी काँप के दो पल 'रवी',
साँस मेरी फिर यथावत हो गई॥    bahut khoob kintu ,kuch aur .......

daud me ruk hi gayi  thi , waqt ke ,

saans meri fir yathawat ho gayi

  
.

Comment by Ravi Prakash on November 29, 2013 at 8:49pm
धन्यवाद आदरणीय। यूँ ही आशीर्वाद बनाए रखें॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"ग़ज़ल - 2122 1122 1122 22 काम मुश्किल है जवानी की कहानी लिखनाइस बुढ़ापे में मुलाकात सुहानी लिखना-पी…"
3 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"इतना काफ़ी भी नहीं सिर्फ़ कहानी लिखना तुम तो किरदार सभी के भी म'आनी लिखना लिख रहे जो हो तो हर…"
45 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"२१२२ ११२२ ११२२ २२ बे-म'आनी को कुशलता से म'आनी लिखना तुमको आता है कहानी से कहानी…"
2 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मैं इस मंच पर मौजूद सभी गुनीजनों से गुज़ारिश करता हूँ कि ग़ज़ल के उस्ताद आदरणीय समर गुरु जी को सह…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"2122 1122 1122 22 इतनी मुश्किल भी नहीं सच्ची कहानी लिखनाएक राजा की मुहब्बत में है रानी लिखना…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"भूलता ही नहीं वो मेरी कहानी लिखना।  मेरे हिस्से में कोई पीर पुरानी लिखना। वो तो गाथा भी लिखें…"
11 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

"मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२*****पसरने न दो इस खड़ी बेबसी कोसहज मार देगी हँसी जिन्दगी को।।*नया दौर जिसमें नया ही…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर

1222-1222-1222-1222जो आई शब, जरा सी देर को ही क्या गया सूरज।अंधेरे भी मुनादी कर रहें घबरा गया…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"जय हो.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह .. एक पर एक .. जय हो..  सहभागिता हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या बात है, आदरणीय अशोक भाईजी, क्या बात है !!  मैं अभी समयाभाव के कारण इतना ही कह पा रहा हूँ.…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service